लखनऊ से अनिल कुमार।
सुना है सतीश महाना के दौर में उत्तरप्रदेश विधानसभा कवरेज पास बनवाना प्लासी के आठवीं लड़ाई लड़ने से भी ज्यादा मुश्किल हो गया है।
पास उसी का बन रहा है जो महाना जी के गुट का पत्रकार है।
गुटबाजी का आलम यह है कि आप उनके चिंटू-पिंटू के परिचित नहीं हैं तो आप का कवरेज पास बनना मुश्किल है।
बताया जा रहा है कि पास के लिये रविवार को हर तरफ अराजकता का माहौल रहा।
ऐसा माहौल, जो इससे पहले विधानसभा में कभी नहीं देखा गया।
विधानसभा के इतिहास में यह पहली बार रहा जब पटल का दरवाजा बंद रखा गया और पत्रकारों के लिये मार्शल लगाये गये।
अब तक मार्शल विधायकों की मारपीट रोकने के लिये लगाये जाते थे, अबकी पत्रकारों को रोकने के लिये लगाये गये।
वरिष्ठ पत्रकारों तक को बेइज्जती का सामना करना पड़ा।
कुछ पत्रकार बता रहे थे कि आप महाना या उनके चेलों के जान-पहचान के नहीं हैं तो पास बन पाना मुश्किल है।
विधानसभा प्रमुख सचिव एवं आजीवन इस पद पर बने रहने का लेख ब्रह्मा से लिखाकर आये प्रदीप दुबे भी पास के मामले में बेचारे बने दिखाई दिये।
जब पत्रकारों ने उनसे विधानसभा सत्र कवरेज पास के संदर्भ में पूछा तो उन्होंने बताया कि इस बार हम नहीं देख रहे, महाना साहब के मीडिया वाले हैं वही सब देख रहे हैं।
बेचारे सी हालत देखकर लगा कि दीक्षित साहब के जमाने में गलत नियुक्तियां करने के बाद भी टाइट रहने वाले दुबेजी जब तक नई भर्तियां नहीं निकालेंगे महाना जी खुश नहीं होने वाले हैं।
कोई पत्रकार अगर आज के मौका-ए-वारदात पर मौजूद रहा हो तो कृपया कमेंट बाक्स में अच्छा-बुरा जो भी हो वर्णन जरूर करे।
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