डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
जिस हिन्दुस्तान टाइम्स अखबार को पंडित मदनमोहन मालवीय ने 1924 में घनश्याम दास बिड़ला से 50 हजार रुपए चंदा लेकर डूबने से बचाया था, चर्चा है कि उसे 2017 में उद्योगपति मुकेश अंबानी ने पांच हजार करोड़ में खरीद लिया है। यह भी कहा जा रहा है कि 1 अप्रैल 2017 से हिन्दुस्तान टाइम्स का ‘जियोकरण’ हो रहा है। यानी अखबार कुछ दिनों के लिए फोकट में बंटेगा। विज्ञापनों से जो आय होगी, उसी में अंबानी गुजारा कर लेंगे। साथ ही वे पांच हजार करोड़ को 25 हजार करोड़ बनाने की जुगत में भिड़ेंगे।
हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के पत्रकारों और कर्मचारियों के साथ जो हो रहा है, चिंता की बात वह है, यह नहीं कि उसकी मिल्कियत बिड़लाओं से हटकर अंबानियों को चली जाएगी। अभी भी हिन्दुस्तान टाइम्स समूह में रिलायंस समूह की दो कंपनियों के 3.71 और 1.68 प्रतिशत शेयर हैं ही। घनश्याम दास बिड़ला के बेटे केके बिड़ला ने हिन्दुस्तान टाइम्स अपनी बेटी शोभना के हवाले कर दिया था। कह सकते है कि हिन्दुस्तान टाइम्स ‘दहेज का माल’ है(जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया समूह भी दहेज का माल था, जब वह कानूनी बंधनों से बचने के लिए इन्दु जैन को दहेज में दे दिया गया था)। शोभना भरतिया दहेज में मिली इस अमानत में 68.83 प्रतिशत की मालिक अब भी हैं (अपने दो बेटों प्रियव्रत और शमित सहित)।
शमित, मुकेश अंबानी का दामाद है, क्योंकि मुकेश अंबानी की भानजी नयनतारा शमित भरतिया की पत्नी हैं। इस तरह मुकेश अंबानी और शोभना भरतीया मारवाड़ी बोली में ब्याईजी और ब्यानजी हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स समूह कोई समाजसेवा का उपक्रम तो है नहीं, वह है शुद्ध धंधे के लिए। केके बिड़ला की लड़की जैसा बिजनेस संभाल रही थी, हो सकता है, धीरूभाई अम्बानी का लड़का उससे अच्छी तरह इसे संभाल ले। मुनाफे के लिए जितने कठोर फैसले शोभना भरतिया लेने में सक्षम है, मुकेश अंबानी उससे ज्यादा कठोर फैसले में सक्षम है। लक्ष्य है मुनाफा, मुनाफा और मुनाफा। मुनाफे के लिए हिन्दुस्तान टाइम्स समूह किस-किस तरह के व्यवसाय करता है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है।
बात 1922 की है। आजादी का आंदोलन जोर पकड़ रहा था। पंजाबी भाषा में निकलने वाले अखबार आजादी के आंदोलन को समर्थन दे रहे थे। तब स्वाधीनता संग्राम में जुटे प्रमुख अकाली नेताओं को लगा कि अगर कोई अखबार अंग्रेजी का हो तो आंदोलन से जुड़ी खबरें अंग्रेजोें तक और अच्छी तरह पहुंच सकेगी। अकाली आंदोलन के संस्थापक और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख नेता सुंदर सिंघ लायलपुरी, मंगल सिंघ गिल और एस. चंचल सिंघ आदि ने इसकी पूरी व्यवस्था की। मदन मोहन मालवीय और तारा सिंघ इसकी मैनेजिंग कमेटी में आए। के.एम. पणिक्कर इसके संपादक बनाए गए और 26 सितंबर 1924 को नया बाजार दिल्ली से अखबार की पहली प्रति छपकर बाहर आई। महात्मा गांधी ने इसका लोकार्पण किया था।
आजादी के दिनों में इस अखबार में लिखने वालों में मो. अली जिन्ना, सी रामलिंगा रेड्डी, टीएल वासवानी, रूचिराम साहनी, हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय, डॉ. सैफुद्दीन किचलु, रूबी वाटसन, सीएफ एंड्रूज आदि शामिल थे। गांधीजी के बेटे देवदास गांधी भी अखबार के संपादकों में रहे है। शुरू में यह अखबार उत्तर भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाला अखबार था। अखबार की तीन हजार प्रतियां छपने और बिकने लगी थी, लेकिन अकाली आंदोलन के धीमा पढ़ने के बाद अखबार को मदद मिलना बंद हो गई। ऐसे में पंडित मदन मोहन मालवीय इस अखबार के बचाव के लिए सामने आए। मदन मोहन मालवीय ने लाला लाजपत राय, एनआर जयकर, उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला आदि की मदद से करीब पचास हजार रुपए का चंदा इकट्टा किया और इस अखबार पर अपना नियंत्रण जमाया। चंदा देने वालों में सबसे बड़ी राशि घनश्याम दास बिड़ला की थी, इसलिए वे इस अखबार के मालिक हो गए। स्वतंत्रता आंदोलन की खबरें इस अखबार में प्रमुखता से छपती रही। तब टाइम्स ऑफ इंडिया अंग्रेजों का मुखपत्र था, उसके ठीक विपरीत हिन्दुस्तान टाइम्स स्वाधीनता संग्राम समर्थक प्रमुख अखबार बन गया। हिन्दुस्तान टाइम्स वह अखबार है, जो 1941 में सेंसरशिप के खिलाफ करीब साढ़े चार महीने बंद रहा।
आज भी हिन्दुस्तान टाइम्स का दावा है कि वह अभिव्यक्ति के माध्यम से जनता की आवाज को बुलंद कर रहा है। आजादी की लड़ाई में सहभागी रहे इस अखबार के प्रबंधन का दावा है कि वह ऊर्जा से लबरेज प्रोफेशनल लोगों का एक ऐसा संस्थान है, जो आम जनता को शक्ति प्रदान कर रहा है। कंपनी अपने विस्तार, विविधता और गुणवत्ता के कारण लगातार तरक्की कर रही है और अपने लक्ष्यों को हासिल कर रही है। एचटी मीडिया का दावा है कि वह अपना दायित्व पूरी जिम्मेदारी और साहस के साथ निभा रही है और खुद का नवीनीकरण करते हुए जनकेन्द्रीत कार्य में जुटी है। इस दावे के विपरीत एचटी मीडिया की कर्मचारी यूनियन का कहना है कि एचटी मीडिया की मालकिन शोभना भरतिया केवल अपने मुनाफे और सत्ता के लिए प्रतिबद्ध हैं। कर्मचारियों के लिए वे कठोरतम न्योक्ता हैं। कर्मचारी यूनियन का कहना है कि भारी मुनाफे के लालच में एचटी मीडिया पेड न्यूज और फेक न्यूज को बढ़ावा दे रही है। पत्रकारों के लिए भय का माहौल क्रिएट किया जा रहा है। आजादी की लड़ाई में सहभागी रहे ऐसे अखबार के लिए यह डूब मरने की बात है।
कर्मचारी यूनियन का कहना है कि नोटबंदी के बहाने कर्मचारियों की छटनी की गई। बरसों पुराने कर्मचारियों को निकालने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। पत्रकारों से जबरदस्ती यह लिखवाया गया कि उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड की सैलेरी नहीं चाहिए। यह सब कर्मचारियों के लिए भयादोहन से कम नहीं। साथ ही यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की खुली अवहेलना है। पत्रकार और कर्मचारियों के यूनियन हिन्दुस्तान टाइम्स के दिल्ली और मुंबई कार्यालयों के सामने लगातार प्रदर्शन भी करते रहे है और आरोप लगाते रहे है कि सैकड़ों पत्रकार और कर्मचारियों को एचटी मीडिया ने नौकरी से हटा दिया है। कर्मचारियों का यह भी आरोप है कि बिना किसी सूचना और नोटिस के हिन्दुस्तान टाइम्स के सीनियर स्टाफ अरविन्द शर्मा को निकाल दिए जाने के कारण उन्हें भारी आघात लगा, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
एचटी मीडिया की बैलेंस शीट कहती है कि उसके ‘कर्मचारियों’ का खर्चा लगातार बढ़ता जा रहा है और उस गति से विज्ञापन से होने वाली आय नहीं बढ़ रही। सितंबर 2016 के अंत वाली तिमाही में कंपनी के कर्मचारियों का खर्च 152 करोड़ 76 लाख था, जो कि इस कंपनी के कुल खर्च का 26.24 प्रतिशत होता है। दो साल पहले यहीं खर्च 116 करोड़ 2 लाख रुपए था, जो कि कुल खर्च का 22.8 प्रतिशत ही था। कंपनी प्रबंधकों के अनुसार ‘कास्ट ऑप्टिमाइजेशन’ की समस्या थी। खास करके कंपनी के प्रिंट कारोबार को लेकर।
कर्मचारियों की खर्चे को ‘युक्तियुक्त’ बनाने के लिए कंपनी ने अपने कुछ संस्करणों पर ताले डाल दिए। कुछ ब्यूरो में छटनी की गई। इंदौर, भोपाल, नागपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और बंगाल के ब्यूरो में काम कर रहे लोगों को पिंक स्लिप दे दी गई। कुछ का ऐसी जगह तबादला कर दिया गया, जहां जाकर काम करना उनके लिए आसान नहीं था। वर्तमान में एचटी मीडिया इन बातों की खुलकर जानकारी नहीं दे रहा है :
एचटी मीडिया के संपादकीय विभाग में कार्यरत पत्रकारों की संख्या।
जुलाई 2016 से अब तक कितने पत्रकारों को इस्तीफा देने के लिए कहा गया।
जुलाई 2016 के बाद कितने पत्रकारों ने एचटी छोड़ा।
एचटी मीडिया अपने पत्रकारों को इस्तीफे के लिए प्रेरित कर रहा है, या उन पर दबाव बना रहा है।
पत्रकारों की इस छंटनी से एचटी मीडिया का कितना पैसे बचेगा?
बचत के नाम पर पत्रकारों की छंटनी कब तZक जारी रहेगी?
विचित्र बात है कि एचटी मीडिया की बैलेंस शीट ही कह रही है कि दिसंबर 2016 में खत्म हुई तिमाही में कंपनी का शुद्ध मुनाफा 24.88 प्रतिशत बढ़ा। क्योंकि इस तिमाही में कच्चे माल की कीमतों में मामूली कमी आई थी। कच्चा माल यानी न्यूज प्रिंट, स्याही आदि-आदि। इस तिमाही में कंपनी का मुनाफा 85 करोड़ 20 लाख से बढ़कर 106 करोड़ 40 लाख हो गया है। यह मुनाफा तब भी बढ़ा जब कि कंपनी का कुल कारोबार 0.7 प्रतिशत घट कर 709 करोड़ 50 लाख से 704 करोड़ 80 लाख हो गया। कंपनी कहती है कि इस दौरान अखबार के छपे हुए संस्करणों का विज्ञापन 5.7 प्रतिशत घटकर 511 करोड़ 40 लाख रह गया। जबकि सर्कुलेशन से होने वाली आय 2.1 प्रतिशत बढ़कर 76.6 करोड़ हो गई।
ये सब आंकड़े कंपनी के ही है। अगर इन आंकड़ों का विश्लेषण करें, तो आप ये पाएंगे कि दिसंबर में खत्म हुए तिमाही में कंपनी का शुद्ध मुनाफा करीब एक चौथाई बढ़ा। कंपनी की कुल आवक लगभग एक प्रतिशत कम हुई। विज्ञापन की आय घटी, लेकिन सर्कुलेशन से होने वाला मुनाफा बढ़ा। कच्चे माल की कीमतों में कमी का फायदा भी कंपनी को हुआ। कर्मचारियों के वेतन आदि का खर्च 1.1 प्रतिशत बढ़ा, जबकि दूसरे खर्चे करीब पौने पांच प्रतिशत कम हुए।
कंपनी की बैलेंस शीट कहती हैं कि ब्याज, टैक्स, घीसारा आदि के बाद भी कंपनी का मुनाफा करीब 10.5 प्रतिशत बढ़ा। एचटी मीडिया का डिजिटल वेंचर शाइन.कॉम का कारोबार भी करीब 3 प्रतिशत घटा। एचटी मीडिया दो रेडियो स्टेशन भी चलाता है और कंपनी का कहना है कि उसके रेडियो स्टेशन ठीक कारोबार कर रहे है।
हिन्दुस्तान टाइम्स समूह में हिन्दुस्तान टाइम्स के अलावा दैनिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, कामनंदन आदि के साथ ही मिंट, एचटी सिंडिकेशन, एचटी कैम्पस, दो रेडियो स्टेशन आदि भी है। जिस तरह यह कंपनी मुनाफा कमाती है, उसे देखकर कई लोग कहते है कि यह कंपनी अखबार नहीं नोट छापने का धंधा करती है। निश्चित ही यह बात सही होगी, क्योंकि बिड़लाओं और अंबानियों का खानदान कोई समाजसेवा करने थोड़े ही बैठा है। चिंता है तो पत्रकारों, कर्मचारियों की। पाठकों का क्या है, वे तो कहीं से भी सूचनाएं पा लेंगे।
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