डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
श्री रमेशचन्द्र अग्रवाल बेहद व्यावसायिक बुद्धि के धनी व्यक्ति तो थे ही, लेकिन इसके साथ ही वे बेहद सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी भी थे। उनसे मिलने पर जिस सहजता से वे बातें करते थे, उससे यह कभी एहसास नहीं होता था कि वे फोर्ब्स की सूची में भारत के 100 सबसे धनी और शक्तिशाली लोगों में से एक है। एक प्रसिद्ध भारतीय पत्रिका ने उन्हें भारत के 50 सबसे ताकतवर लोगों में शामिल किया था। इसके बाद भी वे अपने समाचार पत्र समूह के लोगों से बेहद सादगी से मिलते थे। सैकड़ों कर्मचारियों को वे उनके नाम से जानते थे और उनके निजी सुख-दुख में भी शामिल होते थे। अग्रवाल महासभा के प्रमुख आधार स्तम्भ होने के नाते उन्होंने अपने समाज के लोगों के लिए भी बहुत से कल्याण के कार्य किए। इन कल्याण के कार्यों में समाज की लड़कियों को आगे ले जाने का काम प्रमुख है।
दैनिक भास्कर छोड़े जाने के डेढ़ दशक बाद भी मैं जब कभी उनसे मिलता वे मुझे मेरा नाम लेकर ही पुकारते और कंधे पर हाथ रखकर स्नेह से बात करते । कुछ समय पहले मैं अपने चैनल के लिए उनका इंटरव्यू लेना चाहता था। मैंने उन्हें फोन किया, तो उन्होंने बगैर हिचके कहा कि आप तो घर के ही आदमी हो भाई साहब। कल सुबह 10 बजे आ जाना। अगले दिन जब मैं गया और वहां के सुरक्षाकर्मियों ने हमारे चैनल के कैमरामेन और अन्य स्टॉफ को रोका, तो मैंने उन्हें फोन लगाया। वे खुद बाहर आए और सादगी से सबको ले जाकर अपने कक्ष में बैठाया।
दैनिक भास्कर समूह के साम्राज्य को खड़ा करने में उनके तीनों पुत्रों सुधीर अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल और पवन अग्रवाल का योगदान तो है ही, लेकिन इस साम्राज्य की नींव रमेश अग्रवाल जी ने अपने खून-पसीने से तैयार की थी। उनका सहज स्वभाव ऐसा था कि वे किसी की भी मदद करने से कभी पीछे नहीं हटते। चाहे कोई निजी समस्या लेकर उनके पास गया हो या प्रोफेशनल समस्या लेकर। दैनिक भास्कर छोड़े जाने के बाद भी कई लोग अपने व्यावसायिक कामों से उनसे मिलते थे और वे सबकी मदद बिना किसी भेदभाव के कर देते थे।
अपने व्यावसायिक प्रतिस्पर्धियों से वे कभी ईर्ष्या का भाव नहीं रखते। जब दैनिक भास्कर का प्रकाशन इंदौर में शुरू हुआ, तब उन्होंने अखबार को स्थापित करने के लिए बहुत कड़ी मेहनत की। इंदौर के आदर्श माने जाने वाले अखबार की अच्छी बातों को उन्होंने अपने समूह में अपनाया और हमेशा खुलकर कहते रहे कि भई हम तो उनके पीछे-पीछे चले, हमारे आदर्श तो वे ही थे। जब मुंबई से डीएनए का प्रकाशन शुरू हुआ और जी न्यूज के सुभाष चंद्रा के साथ उनका गठजोड़ हुआ, तब भी उनमें अहम का कोई भाव नहीं था। जी समूह से अलग होने के बाद भी उनके संबंध सुभाष चंद्रा से वैसा ही मधुर बने रहे।
उन्होंने अपने तीनों पुत्रों को समाचार पत्र व्यवसाय से जुड़ी तीन क्षेत्रों में विशेषज्ञ बनाया। सुधीर अग्रवाल दैनिक भास्कर समूह के संपादकीय विभाग की रीड की हड्डी है। मंझले बेटे गिरीश अग्रवाल डीबी समूह के विज्ञापन विभागों का काम देखते है और सबसे छोटे बेटे पवन अग्रवाल प्रिंटिंग की टेक्नोलॉजी में नए प्रयोग करने के लिए आगे आते रहते है। उनके दत्तक पुत्र समान डॉ. भरत अग्रवाल पेशे से चिकित्सक होने के बावजूद दैनिक भास्कर समाचार पत्र समूह के अन्य उद्यमों की तरफ ध्यान रखते है। उन्होंने अपनी बहुओं को भी व्यवसाय के क्षेत्र में आगे लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। श्री रमेश अग्रवाल ने समाचार पत्र उद्योग को उद्योग का दर्जा दिलाने में महती भूमिका निभाई। उन्होंने समाचार पत्र की सीमाओं से परे जाकर अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाया। एक कुशल व्यवसायी होने के नाते उनकी सक्रियता व्यवसाय के हर क्षेत्र में रही और वे अपने उत्तराधिकारियों को क्रमश: दायित्व सौंपते चले गए। श्री रमेशचन्द्र अग्रवाल का निधन समाचार पत्र उद्योग के साथ ही संपूर्ण उद्योग जगत की बहुत बड़ी क्षति है। श्रद्धासुमन।
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