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न्यायपालिका में सबऑर्डिनेट शब्द की कोई जगह नहीं

राष्ट्रीय            Oct 27, 2024


मल्हार मीडिया।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि न्यायपालिका हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, इसमें सबऑर्डिनेट शब्द की कोई जगह नहीं है। कोई भी न्यायालय सबॉर्डनेट नहीं, इसमें बदलाव होना चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका पर टिप्पणी करते हुए कहा, “जब मजिस्ट्रेट या जिला जज फैसला लिखता है उनके मन में एक शंका रहती है कि मेरे फैसले पर क्या टिप्पणी होगी। वह फैसला उसके भविष्य को निर्वहन करता है।” उन्होंने आगे कहा कि हम सभी को इनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए।

राजस्थान के जयपुर में एआईआर पुस्तकालय के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि अधिवक्ता संघ को संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि उद्योगपति एवं कॉर्पोरेट समूहों को अन्य संस्थानों को प्रदान की जाने वाली सहायता की तर्ज पर न्यायपालिका के कार्यान्वयन में भी सहायता प्रदान करनी चाहिए। अधिवक्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि कॉर्पोरेट्स के पास CSR फंड है और उनको लोकल अदालतों में इन्वेस्ट करना चाहिए।

संसद में कानून पारित कर नागरिक संहिता में हुए परिवर्तन पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने इसे औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना बताया। उन्होंने इसे दंडविधान से न्यायविधान की यात्रा बताते हुए कहा कि लंबे समय की मांग के बाद अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इन कानूनों को निरस्त किया गया है जोकि नए वकीलों के लिए एक वरदान हैं।

भारतीय न्याय संहिता सहित तीन कानूनों के पारित होते समय राज्यसभा के सभापति के रूप में स्वयं की उपस्थिति के अनुभवों को याद करते हुए कहा कि एक बहुत शक्तिशाली समिति ने इन कानूनों के प्रत्येक प्रावधान पर विचार किया। उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने इस बदलाव में गहराई से जांच की है तथा तकनीक की मदद से प्रत्येक प्रावधान की पृष्ठभूमि को बारीकी से देखा गया है।

 देश में ज़िला न्यायालयों, वहाँ कार्यरत वकीलों एवं आम आदमी की न्याय प्राप्ति पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “यदि हमें न्याय प्राप्ति को सस्ता और सुलभ बनाना है तो हमें लोगों को गुणवत्तापूर्ण न्याय देना होगा, आइए हम अपने जिला न्यायालयों, हमारे मजिस्ट्रेट, हमारे जिला न्यायाधीशों, हमारे युवा वकीलों पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित करें, जिला न्यायालय में वकील बहुत ही चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं।” कोविड काल पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि, “सुप्रीम कोर्ट तक के कुछ वकीलों ने वकालत छोड़ दी। ऐसे पेशे को कोई छोड़ता है तो वह आप और हम पर बहुत बड़ी टिप्पणी है।”

कानून की गुणात्मक शिक्षा के बावजूद वकीलों की स्थिति के विरोधाभास पर सामूहिक प्रयास का आह्वान करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि, “हमें युवा वकीलों को संभालना होगा, हमें उनमें निवेश करना होगा। देश में वकीलों और कानून स्नातकों के लिए अच्छी संस्थाएं हैं। कहीं ऐसा न हो कि वह टिक न पाएँ। इसके लिए एक सामूहिक प्रयास होना चाहिए।”

 


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