अरूण पांडे।
बहुत से ऐसे दुकानदार होते हैं जिनकी दुकान जब नहीं चलती तो ग्राहक के चाल चलन पर ही सवाल उठाने लगते हैं दोष खुद में ना देखकर पीठ पीछे कस्टमर को ही खरी खोटी सुना देते हैं।
चलिए उदाहरण दे देता हूं। बॉलीवुड वाले कूड़ा फिल्लम बना रहे हैं और फिलाप होने पर कहते हैं कि जानबूझकर ऐसा कराया जा रहा है।
अरे नासमझों तुम आइडिया के दीवालेपन की वजह से कूड़ा फिल्लम बना रहे हो और लोगों से उम्मीद करते हो कि ये सब जानते समझते भी वो इन्हें देखकर धन और धर्म दोनों खराब करे। नो नो ऐसा नहीं होगा।
बॉलीवुड वाले इकोनॉमी समझते ही नहीं जब तक नहीं समझेंगे तो अइसा ही होगा। मैं बताता हूं फिल्मों की इकोनॉमी कैसी होती है।
करीब 5 साल पहले आर माधवन और विजयपति की तमिल फिल्म विक्रम वेदा आई और दक्षिण भारत के बॉक्स ऑफिस में ऐसा धमाल मचा दिया।
अब इसकी फिल्म बनी सिर्फ 11 करोड़ रुपए में और उसने 60 करोड़ रुपए कमा डाले। यानी लागत का 5 गुना ज्यादा।
अब वही विक्रम वेदा 5 साल बाद बॉलीवुड के दो कथित सुपरस्टार रितिक और सैफ अली खान के साथ आ रही है। एक तो फिल्म 5 साल पुरानी है और रीमेक है, मतलब कॉपी है।
पर बॉलीवुड में इस फिल्म की लागत 175 करोड़ रुपए हो गई है।
ऊपर से गज़ब की ओवरएक्टिंग, जरूरत से ज्यादा भाव भंगिमा यानी फिल्म का फ्लॉप होना तय है। जब ये फिल्म फ्लॉप होगी तो उसकी वजह बॉयकॉट ट्रेंड नहीं फिल्म का कूड़ापन जिम्मेदार होगा।
ठीक यही बीमारी लाल चड्डा और पृथ्वीराज चौहान फिल्म में भी थी, खराब थी।
अमेजन के मालिक जैफ बेजोज कहते हैं कि सफलता के लिए खुद को और असफलता के लिए पड़ोसियों और परिस्थितियों को ज़िम्मेदार ठहराने वालों से धन दूर होता जाता है और दुख करीब होता जाता है।
)) सच यही है कि अपनी सफलता या असफलता के लिए खुद आप और सिर्फ आप ही उत्तरदायी हैं। इसलिए ये रोना पीटना छोड़ दीजिए कि आसपास के लोग बेईमान थे वरना हम भी महान थे।
)) असल जीवन ही नहीं सोशल मीडिया में रोने पीटने वाले को पास फटकने ना दें। इससे आपके शरीर के प्रदूषित तत्व निकल जाएंगे। जान लीजिए जो लोग अपने जीवन में हुई अच्छी बातों के लिए खुद और विफलताओं के लिए पड़ोसी को जिम्मेदार मानते हैं मानसिक तौर पर उनसे ज्यादा कमजोर कोई नहीं।
)) जैफ बेजोज कहते हैं कि जीवन में आदर्श परिस्थितियां कुछ नहीं होती। जैसे पहाड़ों पर चढ़ने में हमेशा रिस्क होता है। वैसा ही जीवन होता है। मैं बेजोज की बातें इसलिए बता रहा हूं कि हमारे यहां धन को सफलता या असफलता का पैमाना माना जाता है और बेजोज से बड़ा धनबाज कोई नहीं है।
बेजोज के मुताबिक अगर उम्रदराज होने पर पश्चाताप की अग्नि मेें नहीं जलना है तो खुद के अंदर झांककर इन सवालों का जवाब मांगिए..
- दिल की सुनेंगे या समाज की?
- ओरिजनल रहेंगे या नकलची दकियानूसी ?
- जीवन में रोमांच चाहिए या जोखिम रहित जीवन?
- आलोचना से घबराने वाले हैं या खुद पर यकीन करने वाले?
- बहानेबाज हैं या जिम्मेदारी लेने वाले?
- इनकार सुनने का माद्दा रखने वाले या हमेशा हां का इंतजार करने वाले ?
- रक्षात्मक कदमों पर भरोसा है या आक्रामक फैसलों पर?
- मुश्किलों के सामने समर्पण करते हैं या मुकाबला
9 . चिड़चिड़े हैं या दिलेर?
- दूसरों को चूना लगाकर मजे लेते हैं या उनकी केयर करते हैं?
खुद को बेहद ईमानदारी से इन सवालों का जवाब दीजिए और आगे बढ़ चलिए, करोड़पति की गारंटी नहीं है लेकिन इतनी गारंटी जरूर है कि 75 साल की उम्र में पहुंचकर ये गिनने या गिनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि मैं तो सर्वगुण संपन्न था पर क्या करें पूरा जमाना दुश्मन बनकर हमारे खिलाफ खड़ा था.
लेखक राजनीतिक एवं बिजनस विषय के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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