डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
बॉलीवुड के जाने-माने फाइट डायरेक्टर के बेटे अजय देवगन को मालूम है कि उन्हें कैसी फिल्में करनी है। चॉकलेटी हीरो का रोल तो वे कर नहीं सकते और आमिर खान जैसी अभिनय की प्रतिभा उनमें है नहीं। उन्होंने इसका बढ़िया तोड़ निकाला है और एक्शन तथा कॉमेडी की फिल्मों पर ध्यान दिया है। सिंघम और गोलमाल सीरिज की उनकी फिल्में हिट रही है। दृश्यम भी कुछ ऐसी ही थी और अब आई है रेड।
रेड एक पीरियड टाइम थ्रिलर है, जो उत्तरप्रदेश के कुख्यात नेता और व्यवसायी के यहां छापे डालने को लेकर है। पूरी फिल्म की कहानी मुख्यत: 3-4 दिनों की ही है।
कहानी इनकम टैक्स के छापे को लेकर है तो हीरो को उसमें इनकम टैक्स अधिकारी बनाना ही था। फिल्म का हीरो अमय पटनायक एक ऐसा डिप्टी कमिश्नर हैं, जो हर छापे में कुछ न कुछ माल लेकर ही निकलता है। उसके 7 साल में 49 तबादले हो चुके है। ईमानदारी की प्रतिमूर्ति और सिद्धांतों पर अडिग रहने वाला अधिकारी। ऐसा अधिकारी जो किसी की कॉकटेल पार्टी में भी जाता, तो अपनी घोड़ा छाप रम का पव्वा साथ लेकर जाता।
लखनऊ तबादला होने के बाद पटनायक को उसके सूत्र बताते है कि सांसद और कारोबारी रामेश्वर सिंह उर्पâ ताऊजी ने कम से कम 420 करोड़ रुपए का काला धन इकट्ठा कर रखा है। सूत्र पटनायक को चुनौती देता है कि अगर उसमें दम-गुर्दा है, तो रामेश्वर सिंह के यहां छापा मारकर दिखाए। हीरो भी चुनौती स्वीकार करता है और सरकारी नौकरी की सीमा के भीतर पूरी तैयारी के साथ छापा मारता है, लेकिन छापे में उसे कुछ नहीं मिलता और जब मिलता है, तब हालात यह होते है कि निजी अहम के चलते पटनायक रामेश्वर सिंह को छापे मारी के स्थल से बाहर जाने की छूट निजी आधार पर दे देता है।
अब नेता तो नेता है, वह अपने बचाव में वह सबकुछ करता है, जो आमतौर पर किया जाता है। दर्शकों को लगता है कि हीरो का काम अब तमाम हुआ, लेकिन हीरो तो हीरो है, वह हीरो है ही इसलिए कि उसमें अद्भुत क्षमताएं है। सो अजय देवगन में भी है।
इनकम टैक्स के डिप्टी कमिश्नर बने अजय देवगन के लखनऊ तबादले के पहले ही वह सुर्खियों में रहता है। धर्मयुग पत्रिका के कवर पर उसकी फोटो है। निर्माता-निर्देशक भूल गए कि धर्मयुग में इस तरह की न्यूज स्टोरीज नहीं छपती थी, लेकिन निर्देशक ने यह आजादी ली है। किसी बहाने धर्मयुग जैसी पत्रिका को यही बहुत है। फिल्म का एक डॉयलॉग यादगार है जब ईमानदार आयकर अधिकारी अपनी पत्नी को नमक का दरोगा कहानी की याद दिलाता है। मुंशी प्रेमचंद की यह कहानी एक ईमानदार साल्ट इंस्पेक्टर के बारे में है। आयकर अधिकारी की पत्नी कहती है कि सभी ने दसवीं के कोर्स में यह कहानी पढ़ी है, उसे कौन भुला सकता है?
पूरी फिल्म की कहानी 1981 के समय की है। फिल्म में चाणक्य का यह सूत्र वाक्य भी है कि राजा के लिए सेना से ज्यादा कोष का महत्व होता है, क्योंकि कोष के बिना राज्य का संचालन नहीं हो सकता। इनकम टैक्स विभाग यही कोष इकट्ठा करने का काम कर रहा है। 1981 से लेकर अब तक कर चुराने वालों के तौर-तरीके और आयकर विभाग की संरचना में भी काफी बदलाव हो चुका है।
डिमोनेटाइजेशन और डिजिटलाइजेशन के बाद इस तरह के घोटाले संभव नहीं है, लेकिन नीरव मोदी जैसे घोटाले तो हो ही रहे हैं। फिल्म में छापे के दृश्य वास्तविकता के करीब लगते है, जब इनकम टैक्स अधिकारी घर के बिस्तर तक फाड़ डालते है और अनाज की कोठी से लेकर घर के कुएं तक में माल खोजते हैं। फिल्म में जिस तरह सोने, रूपयों की गड्डियां और दूसरा माल मिलता दिखाया गया है, वह कल्पनातीत है।
इस फिल्म में सौरभ शुक्ला ने अजय देवगन के सामने ताऊजी के रोल में शानदार अभिनय किया है और अगर अभिनय की बात की जाए, तो वे कई जगह अजय देवगन पर इक्कीसे हैं। इलियाना डिक्रूज को फिल्म की सजावट के लिए रखा गया है, जो अजय देवगन की पत्नी बनी है। उनके लिए करने को कुछ खास था नहीं। फिल्म के बाकी कलाकार लखनऊ के थिएटर आर्टिस्ट हैं।
यह फिल्म उस दौर की है, जब श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी और उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का बोलबाला था। अरबों के कालेधन का स्वामी ताऊजी जब रेड के खिलाफ सफदरजंग रोड पर जाकर मैडम प्रधानमंत्री से मिलता है, तब के दृश्यों की कल्पना दिलचस्प है। निर्माता-निर्देशक ने मैडम प्रधानमंत्री का बचाव भी किया है, जो अंत में अपने पीए से कहती हैं कि सरकार को पटनायक जैसे ईमानदार अफसरों की जरूरत है। फिल्म में पहले डिस्क्लेमर में ऐलान किया गया था कि इस फिल्म की कहानी का सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि यह कहानी सच्चाई के आसपास घूमती है।
अजय और सौरभ शुक्ला के अलावा अमित सयाल, सानंद वर्मा, गायत्री अय्यर और ताऊजी की मां के रूप में 85 साल की पुष्पा सिंह ने जबरदस्त एक्टिंग की है। फिल्म का संगीत औसत है, गाने औसत से भी कम दिलचस्प है। लखनऊ और आसपास की लोकेशन्स अच्छी है। कुल मिलाकर वक्त गुजारने के लिए ठीक-ठाक फिल्म है।
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