अशोक भल्ला।
डाक्टर राही मासूम रज़ा और लालकृष्ण आडवाणी जी दूरदर्शन पर कोई वार्ता कर रहे थे।
डाक्टर राही मासूम रज़ा ने पूछा कि भारत में कितने दंगे हुए होंगे?
आडवाणी जी ने जवाब दिया' चालीस हज़ार के आसपास।
डाक्टर रज़ा ने कहा चलिए मान लेते हैं बीस हज़ार ही हुए होंगे और आप एक ही दंगे में अपना वतन पाकिस्तान छोड़कर भाग आए और जो हज़ार दंगों के बाद भी अपना वतन, अपनी बोली-भाषा नहीं छोड़ना चाहते उन्हें आप समझाएँगे कि देशभक्ति क्या होती है।
आडवाणी जी से कुछ कहते नहीं बना।
डाक्टर राही मासूम रज़ा साहब उसूल के पक्के और समर्पित कामरेड थे।
उसूलों के खातिर वे अपने पिताजी से भी टकरा गए।
कांग्रेस के प्रत्याशी अपने ही पिताजी के विरोध में राही साहब ने एक मजदूर को चुनाव में खडा किया, उसे जिताया और अपने पिता को हराया।
'आधा गाँव' , 'टोपी शुक्ला' , 'हिम्मत जौनपुरी' , 'ओस की बूँद' , 'दिल एक सादा काग़ज़' , 'कटरा बी आर्ज़ू' , 'मुहब्बत के सिवा' , 'असंतोष के दिन' और 'नीम का पेड़' राही मासूम रज़ा साहब के बहुचर्चित उपन्यास हैं।
राही साहब ने लोकप्रिय टीवी सीरियल 'महाभारत ' की पटकथा हक के साथ और पूरी तन्मयता से लिखी।
डाक्टर राही मासूम रज़ा ने 'समय' को 'महाभारत' का अहम पात्र बनाया।
महाभारत सीरियल के लिए बी आर चोपड़ा साहब के पास 'महाभारत सीरियल की पटकथा लिखने के लिए एक मुस्लिम डाक्टर राही को चुने जाने के खिलाफ लोगों के ढेरों खत आए।
चोपड़ा साहब ने ये तमाम ख़त राही साहब के पास भेज दिए। इन्हें पढ़कर राही ने बीआर चोपड़ा को तुरंत फोन करके बताया , ‘‘चोपड़ा साहब, ‘महाभारत’ अब मैं ही लिखूंगा।
मैं गंगा का बेटा हूं, मुझसे ज्यादा हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति को कौन जानता है ?’’
हम सभी जानते हैं, ‘महाभारत’ सीरियल की कामयाबी के पीछे डाक्टर राही साहब द्वारा लिखी स्क्रिप्ट और डायलॉग का बहुत बड़ा हाथ रहा।
आनंद पांडे के फेसबुक वॉल से।
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