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फिल्म समीक्षा:एक बार देखनीय गुलशन नंदा छाप कहानी हाफ गर्लफ्रेंड

पेज-थ्री            May 19, 2017


डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
हाफ गर्ल फ्रेंड एक बार देख सकते हैं। 2 घंटे की फिल्म में 50 मिनिट के गाने हैं, लेकिन सुनने में अच्छे हैं, इसलिए अच्छे लगते हैं, एक्टिंग भी ठीक ही है, अश्लीलता, फूहड़पन, दो अर्थवाले संवाद नहीं हैं और गुलशन नंदा छाप कहानी है, जिसे चेतन भगत ने लिखा है। दिल्ली, इण्डिया गेट, संयुक्त राष्ट्र, पटना और न्यू यॉर्क की लोकेशंन्स का उपयोग बुद्धिमत्ता से किया है। बॉस्केटबॉल खेल का अच्छा इस्तेमाल इमोशंस को दिखाने के लिए किया गया है। न्यूयॉर्क में सुबह चार बजे क्लाइमेक्स शूट किया गया है, अच्छा लगेगा।

बिहारी बॉयफ्रेंड बने अर्जुन कपूर बिहारी नहीं लगते, पर कोशिश उन्होंने ठीक की है। ऐसा हीरो, जिसे तकदीर से बहुत कुछ मिलता है, लेकिन वह कहता है कि मैं चाहता हूँ कि बाकी लोगों को भी वह मिले और उनके हक़ से मिले, मुकद्दर से नहीं। हीरो की मॉं कहती है, आपको हारना नहीं है, हार को हराना है। ऐसी शिक्षा बिहार की माँ ही दे सकती है। फिल्म में बिहार के लोगों की कई खूबियाँ भी सामने रखी गई हैं जैसे उनकी परस्पर सहयोग की भावना, भावुकता और हालात से झूझने का जज़्बा। लेकिन कहीं कहीं लगता है कि बिहारियों का अपमान भी रहा है। बिहारी लोग न केवल अंग्रेजी, बल्कि दुनिया की कोई भी भाषा बहुत अच्छी जानते, समझत और बोलते हैं। अगर किसी भयहारी को मौका मिले और दिल्ली विश्विद्यालय के सेंट स्टीवेंस में एडमिशन हो जाए तो वह क़यामत ढा सकता है। दुर्भाग्य से हीरो नहीं कर पाता।

हाफ गर्लफ्रेंड मुम्बइया रोमांटिक फिल्म है। बी आर चोपड़ा जैसी फ़िल्में तो अब कोई बना नहीं सकता, लेकिन यह फिल्म एकता कपूर से जो अपेक्षा की जा सकती है, उससे कहीं ज़्यादा है।

संयोग से इस शुक्रवार को दो फ़िल्में रिलीज़ हुई हैं, दोनों का नाम अंग्रेजी में हैं और दोनों में हिन्दी और अंग्रेज़ी की बात कही गई है।


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