डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
शानदार विजुअल इफेक्ट और डायलॉग्स के लिए बाहुबली-2 देखी जा सकती है। राजा-महाराजाओं की कहानी, क्षत्रीय की जुबान, कटप्पा द्वारा बाहुबली को मारने का राज आदि अन्य कारण हैं, जिनके लिए फिल्म देखी जा सकती है। फिल्म में हिंसा का अतिरेक है और क्रूरतम तरीके से हिंसा दिखाई गई है। हिंसा की तुलना मेंं प्रेम के दृश्य कम है। विजुअल इफेक्ट्स के जरिए युद्ध का वर्णन, शानदार राज-प्रासाद, खूबसूरत झरने, प्राकृतिक नजारे और पानी तथा वायु में तैरता रथनुमा जहाज इतनी सुंदरता से रचे गए हैं कि वह मन मोह लेते हैं और दर्शक हिंसा का अतिरेक भूल जाता है।
बाहुबली-2 की कहानी में नएपन की आशा तो फिजूल है। बहुप्रचारित बड़े बजट की इस फिल्म ने दो साल से लोगों के मन में जिज्ञासा जगा रखी थी, इसलिए इस फिल्म को देखने तो दर्शक आएंगे ही। भव्यता में आप इसे मुगले आजम का आधुनिक संस्करण कह सकते हैं, लेकिन मुगले आजम जैसी मोहब्बत और नजाकत इसमें नहीं है। राजा-महाराजाओं के जमाने की काल्पनिक कहानियों को पसंद करने वाले लोगों को यह अवश्य पसंद आएगी।
क्षत्रीय राजा-रानियों द्वारा अपने वचनों का मान रखने के लिए जैसा किया जाता होगा, वैसी ही कहानी बुनी गई है। इसमें एक सत्तासीन व्यक्ति के वचन की कीमत सैकड़ों और हजारों लोग चुकाते हैं। राजसत्ता, राजसी वैभव, विलासिता, षड्यंत्र, लालच यहीं सब इस फिल्म की विषयवस्तु है। कुल मिलाकर पूरी फिल्म अमरेन्द्र बाहुबली और उसके पुत्र महेन्द्र बाहुबली तथा देवसेना के इर्द-गिर्द घूमती है। प्रभास ने बाहुबली के रूप में दोहरी भूमिका काफी मेहनत से निभाई है, फिर भी कई लोग यह कहते पाए गए कि बाहुबली द बिगनिंग में प्रभास और विजुअल इफेक्ट ज्यादा अच्छे थे। दर्शक यह भी कहते सुने गए कि इस तरह की फिल्म तो थ्रीडी में ही होनी चाहिए। अगर थ्रीडी में होती, तो इसका मजा कहीं और ज्यादा होता।
फिल्म की शुरुआत ही युद्ध के सीन से होती है और वह पिछली कहानी कहती हुई लगती है। इंटरवल के पहले राजकुमार और राजकुमारी के प्यार-मोहब्बत के किस्से चलते हैं। आपस की लुकाछुपी और गाने भी मनोरंजन करते हैं, लेकिन इंटरवल के बाद केवल बदला, बदला, बदला। युद्ध के दृश्य, मारपीट, चिंघाड़ते हाथियों और घोड़ों पर बैठकर लड़ा जा रहा युद्ध, षड्यंत्र, झूठ, फरेब, वफादारी, नाफरमानी आदि।
बताया जाता है कि बाहुबली की शुरूआती स्क्रिप्ट में कटप्पा द्वारा बाहुबली को मारने का सीन नहीं था, कहानी कुछ और ही कह रही थी, लेकिन बाद में कहानी को नाटकीय बनाने के लिए इस तरह के दृश्य जोड़े गए। बजरंगी भाईजान और बाहुबली की कहानी लिखने वाले विजयेन्द्र का दावा है कि इस फिल्म के प्रदर्शन के पहले तक बाहुबली को मारने का राज पूरी तरह दबा कर रखा गया था और उसे पूरी फिल्म बनने के बाद जोड़ा गया। कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा, इस सवाल को लेकर सोशल मीडिया पर इतने लतीफे आ चुके है कि कई लोग इसी जिज्ञासा में फिल्म देखने पहुंचे कि आखिर कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?
शायद यहीं इस फिल्म की जान भी है। इस राज को छुपाए रखने के लिए निर्माता-निर्देशक ने सीन की शूटिंग के पहले शूटिंग टीम के करीब 150 लोगों को गोपनीयता की शपथ भी दिलवाई थी। शपथ के अलावा सभी 150 लोगों से लिखित में बांड भी भरवा लिए गए थे। यह व्यवस्था थी कि अगर टीम का कोई व्यक्ति इस राज को उजागर करेगा, तो उसे आर्थिक जुर्माना भी देना पड़ेगा। शूटिंग के दौरान क्रू के सभी मोबाइल फोन रखवा लिए जाते थे। (यहां मैं यह राज नहीं लिखने वाला, क्योंकि इससे फिल्म देखने का मजा खत्म हो सकता है।)
युद्ध और लड़ाई के दृश्य अविश्वसनीयता की हद तक है। जितना बाहुबली और उसके विरोधियों को दिखाया गया है, उतना व्यक्तिगत जीवन में संभव ही नहीं है। फिल्म आखिर फिल्म ही है। अब न तो बाहुबली जैसा बाहुबल और साहस नजर आता है और न ही भल्लाल देव जैसी क्रूरता। राणा दग्गुबती ने खतरनाक खलनायक का रोल किया और वह उसमें खरे उतरे। अनुष्का शेट्टी ने देवसेना की भूमिका में दमदार एक्टिंग की। तमन्ना भाटिया, रामिया कृष्णन अपने-अपने रोल में अच्छे लगे। फिल्म का छायांकन और संपादन कसा हुआ है। निर्देशक और पटकथा लेखक एस.एस. राजामौली की फिल्म पर पकड़ साफ नजर आती है। तमिल, तेलुगु, मलयालम में भी यह फिल्म रिलीज हुई है। हिन्दी में इसके को-प्रोड्यूसर धर्मा प्रोडक्सन्स है। पिछले वर्ष जुलाई में यह फिल्म रिलीज होनी थी, लेकिन अनेक कारणों से इसमें देरी होती चली गई।
पैसा वसूल फिल्म है। पौने तीन घंटे का नयनाभिराम मनोरंजन, जिसमें दिमाग के उपयोग की कोई जरूरत नहीं है।
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