डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
काबिल कोई प्रेम कहानी नहीं है। यह बदले की आग में झुलसते एक दृष्टिबाधित डबिंग आर्टिस्ट की कहानी है। जो अपनी पत्नी के बलात्कारियों को खुद सजा देता है, क्योंकि कानून उसकी मदद नहीं कर पाता। बदले की भावना को लेकर कई फिल्में बनी हैं और यह फिल्म भी खून भरी मांग और करन-अर्जुन जैसी बदले की भावना वाली फिल्में बनाने वाले राकेश रोशन की फिल्म है। कोई इसे हॉलीवुड की ब्लाइंड फ्यूरी फिल्म से और कोई इसे कोरियन फिल्म ब्रोकन से प्रेरित बताता है। निर्देशन संजय गुप्ता को एक्शन फिल्में बनाने का अच्छा अनुभव है और राकेश रोशन कामर्शियल प्रोड्यूसर है ही।
दृष्टिबाधितों से आमतौर पर लोगों को सहानुभूति रहती ही है और अगर दृष्टिबाधित युवा दंपत्ति सुंदर हो, तो यह सहानुभूति और बढ़ जाती है। कानून और व्यवस्था के आगे मजबूर एक दृष्टिबाधित किस तरह अपनी चतुराई और बहादुरी से अपनी पत्नी के बलात्कार और मौत का बदला लेता है। वह दृष्टिबाधित ऐसे काम करता है, जिन्हें देखने वाले भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं होते। एक पुलिस अधिकारी को केबीसी स्टाइल में दी गई चुनौती में वह कहता है कि मैं इस काम को इस तरह अंजाम दूंगा कि आप भरोसा नहीं कर पाएंगे। कई जगह बेहतरीन एक्शन के बावजूद यह फिल्म विश्वसनीय नहीं लगती, क्योंकि आज के दौर में जब हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हो, पुलिस का खुफिया तंत्र तेजी से बढ़ रहा हो, मीडिया की पहुंच हर अपेक्षित तक हो, एनजीओ का जाल बिछा हो, ऐसे में कहानी की विश्वसनीयता थोड़ी कम लगने लगती है।
इंदौर की पलक मुछाल ने भी इसमें गाना गाया है और संजय मासूम ने चुटीले संवाद लिखे हैं। बदले की फिल्मों की कहानी और हिंसा के दृश्यों की कहानी लिखने में संजय मासूम को महारथ है ही। सनी देओल की फिल्में उन्होंने खूब लिखी है और वे फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट रही।
दृष्टिबाधित हीरो को दृष्टिबाधित हीरोइन से मिलते ही ‘लव एट फर्स्ट साइट’ हो जाता है। दोनों ही गोरे-चिट्टे है और इमामी के फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन करते है। फिल्म में एक डायलॉग भी डाल दिया गया है कि ये दोनों इतने गोरे है, तो इनका बच्चा तो इंडियन लगेगा ही नहीं। दृष्टिबाधित हीरो अपने काम में इतना निपुण है कि कपड़ों की गंध और आवाज से हर व्यक्ति और जगह को पहचान लेता है। याददाश्त इतनी मजबूत कि कभी भी फिसलता नहीं। सह्रदय तो है ही। हीरो है तो अच्छा डांसर भी होना ही है। कुल मिलाकर ऋतिक रोशन की हर प्रतिभा का उपयोग इस फिल्म में कर लिया गया है। अपनी पत्नी की आत्महत्या को लेकर वह पुलिस थाने के चक्कर काटता है, जहां उसे कोई मदद नहीं मिलती। अपराधी का नेता भाई आकर धमकी दे जाता है कि अगर एनजीओ या मीडिया में गए, तो खैर नहीं। धमकी से प्रभावित हीरो मीडिया में नहीं जाता, लेकिन हर बदले को खुद ही अंजाम देता है और दुश्मनों को एक-एक करके ठिकाने लगाता है। अपनी पत्नी की खुदकुशी पर वह पुलिस अधिकारी को कहता है कि कोई भी हर खुदकुशी का कोई ना कोई कातिल होता है। फिल्म का पहला आधा भाग प्यार मोहब्बत और गाने में खर्च हुआ है और दूसरा बदले और हिंसा की आड़ में।
इस फिल्म में एक्शन के तमाम सीन बहुत ही कुशलता से फिल्माए गए है। ऋतिक रोशन ने इस फिल्म में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है, इसमे दो मत नहीं है। कुछ दृश्य तो विलक्षण बन पड़े है, जैसे दो दृष्टिबाधित किसी मॉल में जाते हैं और वहां वे भीड़ में बिछड़ जाते हैं। ऋतिक और यामी गौतम दोनों ने ही चंद मिनटों के उन दृश्यों को जीवंत कर दिया है।
फिल्म कुछ पुराने फॉर्मूलों पर भी चलती है। जैसे दृष्टिबाधितों के प्रति समाज में बहुत सकारात्मक रवैया नहीं है। भ्रष्ट नेता और पुलिस अधिकारियों का गठजोड़ हमेशा खतरनाक ही होता है और कमजोर लोग उसका नुकसान उठाते है। समाज में मीडिया और एनजीओ की भूमिका इस फिल्म में कुछ भी नहीं है। ऐसा इस फिल्म से लगता है। नेता का भाई बलात्कारी ही क्यों होता है। कुछ मुस्लिम चरित्रों को भी परंपरागत ढर्रे पर ही दिखाया गया है। दो पुराने छोंक लगे गाने भी इस फिल्म में हैं।
काबिल मनोरंजन तो करती है, लेकिन यह एक खास तरह का मनोरंजन है। दृष्टिबाधित प्रेमी-प्रेमिका के भावनात्मक दृश्य भी इसमें हैं और कॉमेडी के कुछ सीन भी। कई बार आप सन्न रह जाते हैं और कई बार फिल्म एक्शन दृश्य आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं। जब आप सिनेमाघर से निकलते हैं, तब उतने सामान्य नहीं रहते, जितने आमतौर पर होते हैं। आपका सिर भन्नाया हुआ रहता है।
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