डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
द गा़जी अटैक को बॉलीवुड की सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ युद्ध फिल्म कहा जा सकता है। फिल्म नाटकीय जरूर है, लेकिन है कसी हुई और तकनीकी रूप से सक्षम। विश्वास नहीं होता कि यह इसके निर्देशक की पहली फिल्म है। हकीकत, लक्ष्य, एलओसी कारगिल, 1971, बार्डर जैसी कई फिल्में आई, लेकिन समुद्र के भीतर की हलचल पर ऐसी युद्ध फिल्म बॉलीवुड में कभी नहीं बनी। युद्ध केवल जमीन और आकाश पर ही नहीं लड़े जाते। गहरे समुद्र में भी हमारे नोसैनिक सीमाओं की निगरानी करते है, तभी हम चैन से सो पाते है। फिल्म का एक दृश्य है, जिसमें बांग्लादेशी शरणार्थी तापसी पन्नू नौसैनिक को उसके पिता बनने पर बधाई देती है और कहती है कि वह बच्चा निश्चित ही बहुत लकी है, क्योंकि वह सीमा के उस पार (भारत में) पैदा हुआ।
युद्ध हमेशा आक्रामकता से ही जीते जाते है। फिल्म का एक संवाद है कि कोई भी जंग शहीद होकर नहीं, दुश्मन को शहीद करके ही जीती जा सकती है। अगर आपकी सीमा पर दुश्मन है, तो उसे वहां नहीं होना चाहिए। एक और बहुत अच्छा संवाद है कि जीत कभी भी चल कर नहीं आती, उसे लड़कर हासिल करना पड़ता है। इस पूरी फिल्म में हीरोइन की कोई जरूरत नहीं थी। जो शरणार्थी बड़ी मुश्किल से भारतीय सीमा में घुस पाता है, उसे नौसैना की पनडुब्बी में केवल बॉलीवुड फिल्में ही पहुंचा सकती है।
फिल्म शुरू होने के पहले लंबा-चौड़ा डिस्क्लेमर दिखाया और सुनाया जाता है, जिसमें कहा जाता है कि यह फिल्म काल्पनिक है और इसका यथार्थ से कोई संबंध नहीं है। कई दृश्य अतिनाटकीय है, लेकिन अच्छा लगता है कि जब पनडुब्बी में फंसे नौसैनिक जोश में जन-गण-मन गाते है और सिनेमा हाल के दर्शक भी खड़े होकर उसे सम्मान देते है, जबकि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट की रुलिंग कहती है कि अगर कहानी के बीच में जन-गण-मन आए, तो खड़ा होना जरूरी नहीं है।
यह फिल्म ओम पुरी को समर्पित है, जो इसमें नौसेना कमान अधिकारी की भूमिका में है। फिल्म बताती है कि हमारी खुफिया एजेंसियां कितनी सक्रिय है और भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू होने के पहले ही उन्हें इसकी सूचना मिल जाती है कि पाकिस्तान समुद्री मार्ग के रास्ते तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) पर हमला करना चाहता है। इसके पहले उसकी एक पनडुब्बी गा़जी का लक्ष्य होता है भारत के एक मात्र समुद्री बेड़े आईएनएस विक्रांत पर हमला करके उसे तबाह करना। भारतीय नौसेना केवल टोह लेने के इरादे से एक पनडुब्बी रवाना करती है। पनडुब्बी के प्रमुख को साफ निर्देश होता है कि उसे केवल टोह लेनी है। टोह लेना ही उसका मिशन है, किसी पर आक्रमण करना नहीं। अगर शत्रु दिख जाए, तब भी पहले मुख्यालय को सूचित करना जरूरी है। क्योंकि मिशन की एक जरा सी चूक भारत और पाकिस्तान के बीच जंग शुरू करा सकती है, जिससे भारत के 65 करोड़ लोग (1971 में भारत की इतनी ही आबादी थी) प्रभावित हो सकते है।
पीएनएस (पाकिस्तान नेवल शिप) गा़जी नामक पनडुब्बी को समुद्र में तबाह हुए 46 साल हो गए। पाकिस्तान अब तक यही कहता आया है कि गा़जी में विस्फोट और उसका डूबना महज एक दुर्घटना है। भारतीय सेना के सूत्र कहते है कि गा़जी अपने आप नहीं डुबी, उसे आईएनएस राजपूत ने तबाह किया था। यह एक ऐसी लड़ाई थी, जो घोषित युद्ध के पहले लड़ी गई। इसका इशारा फिल्म शुरू होते ही अमिताभ बच्चन की आवाज में कर दिया जाता है कि भारत ने पाकिस्तान से चार जंगे लड़ी, लेकिन इसके अलावा भी कई लड़ाइयां लड़ी गई और यह उसमें से एक है।
दो घंटे पांच मिनिट की फिल्म पूरे समय दर्शकों को बांधे रखती है, गहरे समुद्र के नीचे जब समुद्र के पानी का दबाव लाखों टन वजन के बराबर होता है। ऐसे में सैनिक किस तरह काम करते है। उनकी मनोदशा कैसी होती है। ऐसे में अगर कप्तान के अतिआक्रामक रुख को देखते हुए मुख्यालय एक और सहकप्तान को नियुक्त कर दें, तब क्या होता है। सैनिकों के युद्ध कितने बहुमुखी हो सकते है, इसकी तरफ भी फिल्म इशारा करती है। जहां सैनिक दुश्मन से तो लड़ता ही है, कई बार अपनी टीम के सदस्यों से भी लड़ता है, अपने आप से लड़ता है। परिवार से लड़ता है और प्रकृति से तो लड़ता ही है।
इस फिल्म की 90 प्रतिशत कहानी और घटनाक्रम गहरे समुद्र में ही दिखाया गया है। गहरे समुद्र में गोता लगाती पनडुब्बी दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए किस तरह नागिन डांस जैसी चाल चलती है। दुश्मन के हमले से ‘घायल’ होकर भारतीय पनडुब्बी आईएनएस राजपूत के कई कलपुर्जे काम करना बंद कर देते है। ऑक्सीजन और खाने-पीने की कमी हो जाती है। बैटरियां दम तोड़ देती है। हालत यह होती है कि वह गहरे समुद्र में 400 मीटर नीचे तलहटी में डूब जाती है, लेकिन फिर भी बहादुर नौसैनिक उसे किसी तरह काम करने लायक बनाते है, वह पनडुब्बी केवल इतना ही काम कर सकती है कि केवल ऊपर और नीचे ही हो सकती है। आगे-पीछे या बायें-दायें नहीं घूम सकती और दुश्मन है, जिसकी सर्वश्रेष्ठ पनडुब्बी आक्रामण करने के लिए आमादा है। समुद्र के अंदर के पहाड़ों में दुश्मन बारूदी सुरंगें बिछा देता है। यह सब बातें हैरतअंगेज कर देने वाली है।
फिल्म में गाने नहीं है। यह अच्छा ही है, अगर हीरोइन को भी नहीं रखा जाता, तो और अच्छा होता। वैसे भी अतिथि कलाकार जैसी ही है, उसकी भूमिका। लेखक, निर्देशक संकल्प रेड्डी ने वाकई कमाल किया है। कलाकारों में गा़जी के कप्तान बने राहुल सिंह उर्फ रज्जाक ने भी ठीक-ठीक ही काम किया है। ओम पुरी, केके मेनन, अतुल कुलकर्णी, राणा डग्गुबाती, तापसी पन्नू तो गजब के कलाकार है ही। अवश्य देखनीय फिल्म है, जो आपको नया अनुभव देगी।
बेशक, यह बॉलीवुड की सर्वश्रेष्ठ युद्ध फिल्म है।
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