डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
जिन लोगों ने बाल ठाकरे को करीब से देखा होगा, वे इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखेंगे कि सरकार 3 के हीरो अमिताभ बच्चन सुभाष नागरे के रोल में कोई ख़ास नहीं जंचे। फिल्म में गरीबों का मसीहा की छवि वाला हीरो, उसके पीछे पड़े गुंडे, बिल्डरों और राजनेताओं का गठजोड़, घर के भीतर की राजनीति, उत्तराधिकारी बनने के लिए किया जानेवाला संघर्ष, जबरन ठूंसी गई हीरोइन, दुबई में अय्याशी करता बिल्डर, गणेश विसर्जन के दृश्य और गणेश वंदना, गोलीबारी, षड्यंत्र आदि सभी फार्मूले हैं, लेकिन फिल्म एकदम सतही जान पड़ती है।
बाल ठाकरे इतने भी हल्के-पतले नहीं थे, जितने अमिताभ इस फिल्म में हैं। रामगोपाल वर्मा ने बाल ठाकरे की छवि पर आधारित फिल्म में ठाकरे की जगह नागरे कर दिया है और उनके बंगले 'मातोश्री' में शेर की जगह एक खतरनाक बुलडॉग की मूर्ति रख दी। बाल ठाकरे अपने ख़ास 'सिंहासन' पर विराजते थे, फिल्म में नागरे बने अमिताभ बच्चन साधारण से सोफे पर बैठते हैं पर उनके गले और कलाई में रूद्राक्ष की माला ठाकरे की तरह ही है। चाय को कप से बशी (सॉसर) में डालकर ख़ास अंदाज में चाय सुड़कने के कई सीन हैं। रामगोपाल वर्मा ने सरकार और सरकार राज के बाद तीसरी बार सरकार 3 में बाल ठाकरे को चित्रित किया है।
आजकल 'संत-महात्माओं' के नाम के आगे सरकार शब्द लगाने का फैशन है, कई लोग अपने आका को सरकार कहते हैं और ऐसे बहुत लोग भी हैं जो बीवी को सरकार कहते हैं। रामगोपाल वर्मा के सरकार अमिताभ बच्चन हैं; मनोज वाजपेयी हैं; जैकी श्रॉफ, अमित साध, रोणित रॉय, शिव शर्मा, रोहिणी हट्टंगड़ी, शिव शर्मा, पराग त्यागी, सुप्रिया पाठक के साथ भारत दाभोलकर भी हैं और मॉ डल से हीरोइन बनीं यामी गौतम भी हैं। यामी ने फिल्म में अभिनय कम और मॉडलिंग ही ज़्यादा की है।
यह कोई बाल ठाकरे पर बनी बायोपिक नहीं है, बाल ठाकरे विवादास्पद रहे हैं लेकिन वे एक बेहद जुझारू व्यक्ति रहे हैं। वे संघर्षशील नेता, आग उगलते रहनेवाले वक्ता, स्थानीय लोगों के हितों के संरक्षक, कभी दक्षिण भारतीयों के लिए तो कभी अल्पसंख्यकों के दुश्मन के तौर पर देखे गए। वे एक साथ कई मोर्चों पर काम करते रहते -- जैसे क़ानून के क्षेत्र में रजनी पटेल जैसों का सहयोग पाते रहे, मुंबई के साथ दिल्ली की राजनीति के दिग्गजों के साथ तालमेल बनाकर अपन सिक्का जमाये रहे। बॉलीवुड और क्रिकेट के साथ ही जाने माने पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के साथ भी संपर्क में रहे। लेकिन इस फिल्म में हीरो नागरे एक ऐसा व्यक्ति है, जो अपने तीन सिपहसालारों में ही घिरा रहता है। उन्हीं के साथ भी उसका शाह और मात का खेल चलता रहता है।
फिल्म में ट्विस्ट हैं, एक्शन है, अभिनय भी ठीक ही है, लेकिन फिल्म में जो कुछ घटता है वह कुछ भी कल्पनातीत नहीं है। अंदाज़ हो जाता है कि अब फिल्म में यह मोड़ आ जाएगा। इससे फिल्म का मज़ा काम हो जाता है। फिल्म के तमाम किरदार अगल—अलग लगते हैं, वे एक दूसरे से जुड़े नहीं लग पाते। पीछे से आने वाला बैकग्राउंड स्कोर कानफाड़ू है। रोणित रॉय ने कुछ दृश्यों में बिना एक भी शब्द कहे अच्छे भाव व्यक्त किये हैं, जैसे कि अपने चश्मे को उतारकर फिर से पहनना।
अगर आप इस फिल्म को देखने जा रहे हों तो नागरे (अमिताभ) को नागरे ही समझे, ठाकरे नहीं। ठीक लगेगी।
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