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फिल्म समीक्षा:'रईस' धर्म का धंधा नहीं करता

पेज-थ्री            Jan 25, 2017


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

रईस में नवाजुद्दीन सिद्दीकी शाहरुख खान से ज्यादा छाए रहे। जितनी तालियां शाहरुख की एंट्री पर बजी, वैसी ही तालियां नवजादुद्दीन सिद्दीकी की एंट्री पर भी बजती हैं। फिल्म में कुछ वनलाइनर बड़े जोरदार है जैसे - "कोई धंधा छोटा नहीं होता, और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।" "हरेक का अपना-अपना धंधा होता है, जैसे पुलिस का अपना धंधा है, वैसी ही तस्करों का अपना धंधा है।" फिल्म में शाहरुख खान कई डायलॉग पर वाह-वाही लूट ले जाते है। जैसे- "मैं धर्म का धंधा नहीं करता" और लोगों के दिन और हफ्ते होते है, लेकिन शेरों का जमाना होता है।

शाहरुख खान बहुत अच्छे कलाकार हैं, लेकिन उससे भी बड़े व्यवसायी है। अपने व्यवसाय को चमकाने के चक्कर में वे अपनी कला के साथ बेईमानी कर जाते हैं। अगर वे इतने बड़े व्यवसायी नहीं होते, तो बॉलीवुड के सबसे धनी फिल्मी व्यक्ति नहीं होते। रईस फिल्म में उन्होंने अपने आप को नए रूप में पेश करने की कोशिश की है, जो दर्शकों को पचती नहीं, क्योंकि दर्शकों की निगाह में शाहरुख खान की छवि एक रोमांटिक हीरो की ही है।

रईस गुजरात में 80 और 90 के दशक के तस्कर की कहानी है, जो आर्थिक हालात के कारण शराब की तस्करी करने पर मजबूर होता है और उसे ही अपना धंधा बना लेता है और धीरे-धीरे उस धंधे के शीर्ष पर पहुंच जाता है। अब उसका संघर्ष डॉन बनने के लिए रहता है। इस पूरी लड़ाई में वह क्या-क्या नहीं करता, हथियार चलाता है, लोगों को धोखा देता है, पुलिस को चकमा देता है, नेताओं से गलबय्या करता है और उनको भी धोखा देता है, दंगे फैलाने की कोशिश करता है, गरीबों का मसीहा बनने की कोशिश करता है। रॉबिन हुड की छवि बनाने के लिए गरीबों को मकान देने की योजना बनाता है। दंगे की स्थिति में लोगों को मुफ्त में खाना खिलाता है, लंगर लगवाता है और सोने की तस्करी करने से भी पीछे नहीं हटता, जिसे वे सोने की तस्करी समझता है, और उसी सोने के साथ आरडीएक्स बम भी होते है और धमाके में अनेक लोग मारे जाते है। अब तस्कर अपने आप को जनता का हितैषी दिखाने के लिए आत्मसमर्पण करता है और अंत में एक ईमानदार पुलिस अधिकारी के हाथों अंजाम तक पहुंचता है।

फिल्म का सबसे दिलचस्प मोड़ उसका अंत है, जो अनपेक्षित होता है। फिल्म में कई दृश्य बड़े अच्छे है। जैसे शराब का माफिया का चुनाव में शामिल होना। अपनी हाथघड़ी दूसरे को देना। चाय के गिलास से कट चाय पीना और शुरूआत में एक गरीब बच्चे द्वारा कमजोर आंखों के कारण चश्मे की जरूरत होने पर गांधीजी की मूर्ति से चश्मा उतार लेना।

पता नहीं क्या सोचकर शाहरुख खान ने रईस बनाने की सोची। कोई भी तस्कर चाहे उसका जीवन कितना भी रंगीन क्यों न हो, कभी भी लोगों के लिए आदर्श नहीं हो सकता। लोग उसे घृणा की नजर से ही देखेंगे। सनी लियोनी को लेना ये दर्शाता है कि फिल्म के बारे में शाहरुख खान खुद मुतमईन नहीं थे, इसीलिए सनी का सहारा लिया गया। पाकिस्तानी हीरोइन माहिरा खान से अच्छी बॉलीवुड में दर्जनों हीरोइनें है। अगर आप यह देखना चाहते हैं कि शाहरुख खान ने कितनी खराब फिल्म बनाई है, तो ये जरूर देखें।



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