डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
यशराज खेमा अपनी बहू रानी मुखर्जी को लेकर फिल्म के साथ न्याय नहीं कर पाया। 4 साल पहले एक्शन फिल्म मर्दानी में रानी मुखर्जी ने वापसी की कोशिश की थी, लेकिन आज भी रानी के 2005 में आई ब्लैक फिल्म में शानदार अभिनय का लोहा माना जाता है।
ब्लैक में वे अमिताभ बच्चन के साथ आई थी और एक दृष्टिबाधित युवती की भूमिका में थी। तब अभिषेक और ऐश्वर्या की शादी नहीं हुई थी और यह चर्चा थी कि बंगाली परिवार की होने के कारण जया भादुड़ी बच्चन रानी को अपनी बहू बनाना चाहती थी।
बेहतर विकल्प के कारण अभिषेक ने पाला बदल लिया और आदित्य चोपड़ा ने तलाक लेकर रानी मुखर्जी से शादी कर ली। यह भूमिका इसलिए जरूरी है कि आप हिचकी की पृष्ठभूमि समझ पाएं।
अब यशराज परिवार की बहू पर केन्द्रित कोई फिल्म बनाना हो, तो वह हिचकी जैसी ही होगी। अंग्रेजी में 2008 में आई फ्रंट ऑफ द क्लास अमेरिकी फिल्म से प्रेरित हिचकी में कुछ परिवर्तन किए गए है। अमेरिकी फिल्म पुरूष पात्र पर केन्द्रित थी और यह नारी पात्र पर। दोनों की बीमारी एक ही है टॉरेट सिन्ड्रोम। मुझ जैसे करोड़ों लोगों ने इस बीमारी का नाम पहले नहीं सुना होगा।
फिल्म से यह सामान्य ज्ञान बढ़ता है कि यह एक ऐसी न्यूरो प्रॉब्लम है, जिसमें दिमाग के तार ठीक से मिलते नहीं और पीड़ित हिचकी की तरह अजीबो-गरीब आवाज निकालता है। नर्वस होने की दशा में हिचकी जैसी यह आवाज ज्यादा आती है। हॉलीवुड की फिल्म में हीरो के माता-पिता में अनबन हो जाती है। हिचकी में भी इसे दिखाया गया है, जबकि भारतीय परिवार विपरीत स्थितियों में ज्यादा मिल-जुलकर रहते हैं।
फ्रंट ऑफ द क्लास और हिचकी दोनों ही एक कहानी पर बनी हैं। हॉलीवुड की फिल्म में बीमारी से ग्रस्त हीरो टीचर बनना चाहता है। यहां यह काम हीरोइन करती है। हॉलीवुड की फिल्म के हीरो को 24 स्कूलों में नौकरी से मना कर दिया जाता है। इस फिल्म में भी बीएड, एमएससी होने के बावजूद रानी मुखर्जी को 18 स्कूल मना कर देते हैं। मजबूरी में उन्हें अपने ही स्कूल में पढ़ाने का काम मिलता है।
अब यहीं से फिल्म की कहानी झोलदार हो जाती है। रानी मुखर्जी ९एफ क्लास की टीचर हैं। 9 ए कक्षा में स्कूल ने सबसे होनहार बच्चों को इकट्ठा किया है। जैसे हमारे इंदौर के कई स्कूल करते हैं। इंदौर के स्कूल नौवीं कक्षा में बच्चों को जबरन फेल कर देते हैं, ताकि अगले वर्ष उनके अच्छे नंबर आए या उसे स्कूल से निकलने पर मजबूर कर देते हैं।
मुंबई के इस स्कूल की इस कक्षा में झोपड़पट्टी से आए 14 बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है। उनका सेक्शन ही अलग कर दिया गया है। इन्हीं सब बच्चों को शिक्षा के अधिकार कानून के तहत स्कूल में प्रवेश मिला है। कोई टीचर इन बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहता। न ये बच्चे पढ़ना चाहते हैं। रानी मुखर्जी फिजिक्स, केमेस्ट्री, मेथ्स आदि सभी विषय उन्हें पढ़ाती है। 4 महीने में ही बच्चे कमाल कर जाते हैं। अब रानी मुखर्जी तो रानी मुखर्जी हैं, जब वे आदित्य चोपड़ा को पट्टी पढ़ा सकती हैं, तो बच्चों की क्या बिसात?
मुंबई के जिस इलाके में यह क्रिश्चियन स्कूल है, वहां स्कूल के आम बच्चे भी शिक्षा के अधिकार के तहत पढ़ने आए बच्चों से घृणा करते हैं। ये बच्चे जुआ खेलते हैं, ड्रग्स लेते हैं, आवारागर्दी करते है, आपस में मारपीट करते है और यह सब स्कूल में भी करते है। यह दिखाने की कोशिश की गई है कि गरीब बस्तियों में रहने वाले बच्चे होते ही आवारा है।
यह पूरी तरह गलत है। शिक्षा के अधिकार में पढ़ने वाले बच्चों का बौद्धिक स्तर भी देखा जाता है और पढ़ाई में रूचि भी। शिक्षा के अधिकार के तहत किसी को भी किसी भी स्कूल में एडमिशन नहीं मिल जाता और फिर इस अधिकार के तहत स्कूल आने वाले सभी बच्चों को एक अलग कक्षा में नहीं रखा जाता। उनसे भी स्कूल की साख जुड़ी होती है और उनकी तरफ भी ध्यान दिया जाता है।
हिचकी में रानी मुखर्जी के पढ़ाने का तरीका नया और दिलचस्प दिखाया गया है, लेकिन हमारी परीक्षा प्रणाली में इसके लिए कोई जगह नहीं है। परीक्षा की कॉपी में बच्चे क्या लिखते है, इसी पर बच्चों की पढ़ाई का मूल्यांकन होता है। यह बात अब भारत का हर व्यक्ति समझ चुका है। इसलिए गरीब से गरीब परिवार भी शिक्षा पर पूरा जोर देता है। हॉलीवुड की नकल करने के चक्कर में ऐसा क्या है कि मौलिक प्रयोगों से ही बचने की कोशिश की गई। मुंबई की झोपड़पट्टियों से निकलकर कई बच्चे आईएएस, आईपीएस भी बने है और फिल्मों के निर्माता भी।
फिल्म के कुछ संवाद यादगार हैं, जैसे रानी मुखर्जी से उसके पिता पूछते हैं कि वो टीचर ही क्यों बनना चाहती हैं? जबकि वह एनिमेशन का कोर्स कर चुकी हैं। रानी कहती हैं कि आपको अपने जीवन में ऐसे किसी टीचर का नाम जरूर याद होगा, जिसने आपको पढ़ाया होगा। एक और डायलॉग है - आम टीचर पढ़ाता है, अच्छा टीचर समझाता है और बहुत अच्छा टीचर करके दिखाता है, लेकिन कोई खास टीचर आपकी प्रेरणा बन जाता है, जिसे आप जिंदगीभर नहीं भूल सकते।
फिल्म में 7 गाने हैं। जिनमें से अधिकांश गैरजरूरी है। क्लाइमेक्स तक आते-आते फिल्म अझेलनीय होने लगती है और अधिकांश दर्शक तो इंटरवल तक ही ऊब जाते हैं। स्कूल के प्रिंसिपल का गरीब बच्चों से चिढ़ना जायज नहीं लगता। रानी मुखर्जी भी अपने वरिष्ठ शिक्षक से अदावत करती लगती है। जो फिल्म की कमजोरी दर्शाते हैं। फिल्म की अच्छी बात यह है कि किसी भी शिक्षक को खलनायक नहीं दिखाया गया है।
हॉलीवुड की फ्रंट ऑफ द क्लास यू-ट्यूब पर उपलब्ध है। आप मुफ्त में यह फिल्म देख सकते हैं। हॉलीवुड वालों ने कहानी और विषय को प्रमुखता दी है, जबकि यशराज ने केवल और केवल रानी मुखर्जी को। अगर आप भी रानी मुखर्जी को इतना तवज्जोंं देते हैं, तो फिल्म देखने जा सकते हैं। वरना यू-ट्यूब ही भली।
Comments