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अटकलों के अनार की फुस्स आतिशबाजी और 13 कठपुतलियों की डोर

राजनीति            Jul 14, 2023


कीर्ति राणा।

 केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का भोपाल आने का कार्यक्रम तय क्या हुआ, अटकलबाजी का बाजार गर्म हो गया था। जिस तरह केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल दिल्ली से ताबड़तोड़ भोपाल आए, पुरानी भाजपा के आशादीप बने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भोपाल आते ही सीधे राज्यपाल से मिलने चले गए तो शिवराज विरोधियों ने अटकलों वाले अनार और रस्सी बम सब तरफ बिछा दिए थे लेकिन ये सारी आतिशबाजी इतनी गीली रही कि धमाकों की जगह फुस्स… होकर रह गई।

सिंधिया समर्थक बार-बार मोबाइल देखते रहे, यहां-वहां फोन लगा कर टोह लेते रहे कि यह सुन कर सुकून मिल जाए कि श्रीमंत शपथ लेने वाले हैं या कि डिप्टी सीएम बना रहे हैं, पर सारी आस तो निरास हो गई, श्रीमंत तो राज्यपाल को निमंत्रित करने गए थे कि राष्ट्रपति ग्वालियर आने वाली हैं तो आप भी आमंत्रित हैं।

प्रह्लाद पटेल समर्थक तो एक पखवाड़े में दूसरी बार डिजिटल ठगी के शिकार हो गए।

पहले चर्चा चली थी कि बस प्रदेश अध्यक्ष बनने वाले है, इस बार तो लड्डू इसलिए भी जोर से फूटने लगे थे कि शाह की यात्रा वाले दिन ही उन्हें भी तुरंत भोपाल आने के लिए कहा गया था, इस बार चोंट पर फिर चोंट हो गई।

इन सभी को तो चुनावी तैयारी संबंधी बैठक में बुलाया गया था और 13 सदस्यों वाली बैठक में सभी को अमित शाह ने सख्ती से समझा दिया कि अब ऐसी कोई हरकत मत करना कि मप्र में पार्टी की तेरहवीं की हालत बने।

कम से कम ऊपर से तो एक हो जाओ, कोई बदलाव नहीं है, अपने को बदल लो, ऊपरी तौर पर ही सही शिवराज ही सब कुछ रहेंगे, 13 कठपुतलियों की डोर भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव के हाथों में रहेगी।

मप्र यात्रा पर आने वाले प्रधानमंत्री मोदी नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव से तो हंस कर मिलते हैं लेकिन सतत 18 साल से मप्र में भाजपा का एकमात्र मजबूत चेहरे के रूप में पहचान बन गए शिवराज सिंह से फुलाए मुंह और चढ़ी त्योरियों वाली मुख मुद्रा के बाद भी शिवराज सिंह का विकल्प नहीं तलाश पाने वाले मोशाजी भोपाल यात्रा से प्रदेश के बाकी तमाम क्षत्रपों और उनके कार्यकर्ताओं को भी यह संदेश देकर गए हैं कि चुनाव तो शिवराज सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।

प्रदेश में पांच यात्राओं के लिए उन क्षेत्रों के नेताओं को दायित्व सौंप कर एक तरह से संदेश भी दे गए हैं कि पहले अपने-अपने क्षेत्रों की सभी सीटों पर प्रत्याशियों को जिताने की मेहनत कर के दिखाओ।

परिणामों में सरकार बनने जैसी स्थिति हो जाएगी तब दिल्ली तय करेगी कौन होगा प्रदेश का अगला मुखिया।

नई भाजपा, पुरानी भाजपा वाली खाई को पाटने के लिए यह जरूरी नहीं कि श्रीमंत पर भरोसा करे या उनकी इच्छा मुताबिक उनके साथ आए सभी विधायकों को फिर से टिकट दिए ही जाएं।

लेखक हिंदुस्तान मेल के संपादक हैं।

 

 



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