सुधीर निगम।
अयोध्या और राम मंदिर एक बार फिर भारतीय राजनीति की धुरी बन गया है। पूरी राजनीति इसी के इर्दगिर्द घूम रही है। श्री राम प्राण प्रतिष्ठा समारोह से भाजपा की चमकती राजनीति को एक और आयाम मिल रहा है।
वहीं, कांग्रेस इस चक्रव्यूह में उलझ कर रह गई है। कुल मिलाकर ये समय भाजपा के लिए 'राम-राम' और कांग्रेस के लिए 'हे राम' का है।
भाजपा पहले भी ये करती रही है और इस बार भी उसने यही किया। वो जिस पिच पर चाहती है, कांग्रेस और विपक्ष को उसी पर खेलने के लिए मजबूर कर देती है। कांग्रेस को न चाहते हुए भी भाजपा के मन मुताबिक बनी पिच पर खेलना पड़ता है।
इस मामले में कांग्रेस बैकफुट पर है। कांग्रेस ने इसे राजनीतिक कार्यक्रम बता कर इससे दूरी बना ली, लेकिन पार्टी के अंदर ही कई नेता इसके पक्ष में खुलकर बोल रहे हैं। कांग्रेस इस मुद्दे पर बंटी हुई नजर आ रही है।
दरअसल देखा जाए तो कांग्रेस के पास ये स्टैंण्ड लेने के अलावा कोई चारा नहीं था। इस मामले में अयोध्या नहीं जाने का निर्णय लेकर उसने दिखाने की कोशिश की है कि वो अपनी राजनीतिक विचारधारा से कोई समझौता नहीं करेगी।
हालाँकि, समझने वाले समझते हैं कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह इस समय क्यों हो रहा है, लेकिन आम मतदाता को इससे कोई मतलब नहीं है। उसके लिए एक तरह से श्री राम का वनवास खत्म हो रहा है और यही जनभावना राजनीति में काम आती है।
क्या, कब, क्यों, कहाँ, कैसे हुआ, इससे जनता को बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, उसे फर्क पड़ता है कि उसकी भावनाओं के अनुरूप काम हुआ या नहीं। भाजपा इस खेल को बहुत पहले समझ चुकी है और कांग्रेस अभी उसका ककहरा सीख रही है।
राजनीति में विचारधारा बहुत महत्व रखती है और किसी भी पार्टी का कोर वोटर उससे ही तय होता है। जितना तगड़ा कोर वोटर, उतनी ज्यादा सफलता। लेकिन, इसके बीच उस तटस्थ वोटर को नहीं भूलना चाहिए, जो समय के साथ आपकी रीति-नीति के आधार पर मतदान करता है। यही मतदाता चुनाव में मुख्य भूमिका निभाता है। इसमें जनभावना काम करती है।
जो राजनीतिक दल अपनी मूल विचारधारा को कायम रखते हुए, समय के साथ कुछ चीजों का समावेश और कुछ चीजों का त्याग करेगा, वही सफल होगा। अब देखिए कांग्रेस की मूल विचारधारा को मानने वाले उनकी ही पार्टी में कितने नेता बचे हैं? वहाँ समय के साथ बदलाव नहीं हुए, तो पार्टी किस स्थिति में पहुंच गई।
भाजपा पहले ही कांग्रेस को हिंदू विरोधी प्रोजेक्ट करने में लगी है और अयोध्या प्रकरण ने उसे एक मौका दे दिया। कांग्रेस के नेता जनता को ये समझाने में सफल नहीं हैं कि ये एक राजनीतिक समारोह है। और भाजपा ने उस पर पूरी तरह हिंदू विरोधी का ठप्पा लगा दिया है।
एक बात और है, आज कांग्रेस की हालत भले खराब हो, लेकिन भाजपा जानती है कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई पार्टी उसके लिए चुनौती बन सकती है तो वो कांग्रेस ही है। इसलिए भाजपा उसे इस स्थिति में पहुंचा देना चाहती है कि वो उससे उबर ही न पाए और कोई दूसरा दल वैसी चुनौती दे नहीं पायेगा।
पिछले चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को उसी स्थिति में लगभग पहुंचा ही दिया। अब प्राण प्रतिष्ठा समारोह के सहारे भाजपा उसी दिशा में अग्रसर है। क्योंकि कोई कुछ भी कहे या करे, वर्तमान में तो जनभावना श्री राम प्राण प्रतिष्ठा के पक्ष में है। कोई किसी भी कारण से इसका बहिष्कार करे, जनता उसकी सुनने को तैयार नहीं होगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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