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भाजपा का पटेल प्रेम

राजनीति            Oct 07, 2023


कीर्ति राणा।

असंतोष को लगातार दबाते जाएं तो वह ज्वालामुखी बन कर कैसे फूटता है इसे भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को समझना हो तो उसे अपने जासूसों से देपालपुर विधानसभा सीट की रिपोर्ट  जरूर मंगवानी चाहिए तो समझ आ जाएगा कि कभी ये पटेल तो कभी वो पटेल, हर बार पटेल…पटेल…पटेल। इस पटेल प्रेम के चलते इस क्षेत्र के बाकी समाजों के मान-सम्मान की अनदेखी ही होती रही है-चार दशक से अधिक का यह पटेल प्रेम ही अब पार्टी को झुलसा रहा है।

इस क्षेत्र के हिन्दूवादी नेता राजेंद्र चौधरी के समर्थन में यदि माहौल बनता जा रहा है और मनोज की दावेदारी के खिलाफ पुतला दहन के साथ भाजपा कार्यालय का घेराव करने का दुस्साहस इसीलिए कर रहे हैं कि स्थानीय प्रत्याशी को अवसर क्यों नहीं दे रही पार्टी। एक अन्य दावेदार-भाजपा ग्रामीण के उपाध्यक्ष श्रवण सिंह चांवड़ा भी देपालपुर क्षेत्र में राजपूत समाज की बहुतायत के चलते भाजपा से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।

कांग्रेस के विशाल पटेल दूसरी बार भी यदि पिछली बार से अधिक मतों से जीत जाते हैं तो भाजपा को समझ आएगा कि इन दोनों दावेदारों के प्रभाव को कमतर आंकना कितना घातक रहा।दोनों दलों की इस पटेल परिक्रमा का ही परिणाम है कि अन्य समाजों के प्रतिनिधि को विधानसभा में जाने का मौका ही नहीं मिल पाया है अब तक।

कांग्रेस विधायक विशाल पटेल की राह यदि इन दोनों दावेदारों के सहयोग से आसान हो भी जाती है तो खुद उन्हें अपनी ही पार्टी के मोती सिंह पटेल से कम खतरा नहीं है। पिछले चुनाव में मोती सिंह ने खुलकर सहयोग इसी वादे के कारण किया था कि अगले चुनाव में वो यहां से चुनाव लड़ना चाहें तो विशाल सपोर्ट करेंगे-तब पार्टी ने इंदौर दुग्ध संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा कर मोती सिंह को अध्यक्ष बना कर उन्हें मना लिया था, अब मोती सिंह खुल कर मैदान में आ गए हैं। पार्टी यदि उन्हें अन्य किसी क्षेत्र से चुनाव लड़ाने का ऑफर दे भी तो जरूरी नहीं कि उस क्षेत्र के मतदाता ऐसे किसी बाहरी प्रत्याशी को सिर पर बैठा ही लें।

भाजपा की दूर की नजर इतनी कमजोर रही कि उसे पटेलों के अलावा कोई दिखा ही नहीं।दो बार यहां से धन्नालाल पटेल विधायक रहे जो निर्भय सिंह पटेल के मामा थे।उनके बाद पार्टी ने भाजे निर्भय सिंह पटेल को लगातार चार बार चुनाव लड़ाया वे विधायक रहे, मंत्री भी बने और नगर भाजपा के अध्यक्ष भी रहे। उस दौर में उनके एक बयान ‘बैलगाड़ी के नीचे चलने वाला कुत्ता यह मान लेता है कि बैलगाड़ी उसी के दम पर चल रही है’ से कार्यकर्ता भड़क गए थे और पार्टी की बहुत किरकिरी भी हुई थी।उस बयान से सबक लेने वाली पार्टी  लंबे समय से अपने कार्यकर्ताओं को ‘देव दुर्लभ’ शब्द का सम्मान देने लगी है।

निर्भय सिंह पटेल के निधन पश्चात प्रेम पटेल को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया यानी घी फिर खिचड़ी में ही ढुला। प्रेम पटेल उन्हीं धन्ना पटेल के पुत्र थे जो पहले दो बार यहीं से विधायक रहे थे। इस बीच निर्भय सिंह के पुत्र मनोज की उम्र चुनाव लड़ने लायक हो गई तो पार्टी ने प्रेम की जगह मनोज को प्रत्याशी बना दिया।उन्हें लगातार पांच बार देपालपुर से चुनाव लड़ाया। कभी हारे, कभी जीते। इस बार फिर उन्हें प्रत्याशी बनाया है।

रही कांग्रेस की बात तो देपालपुर से पहले रामेश्वर पटेल लगातार लड़े, उनके बाद पुत्र सत्यनारायण पटेल मैदान में उतारे गए। इन पटेल के बाद जगदीश पटेल मैदान में आ गए, विधायक बने।जगदीश की मौत के बाद सहानुभूति टिकट उनके पुत्र विशाल को मिला, वो जीते और इसी जीत के आधार पर इस बार भी पार्टी उन पर अधिक भरोसा कर रही है।सत्यनारायण पटेल ने तो बोरिया-बिस्तर समेट कर पांच नंबर क्षेत्र की मतदाता सूची में नाम दर्ज करा लिया है।

भाजपा का पटेल परिवार प्रेम अन्य पदों पर भी जारी रहा है। पूर्व विधायक धन्ना पटेल के पुत्र उमा नारायण पटेल को दो बार जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष, उमा नारायण के साले रवि रावलिया दो बार भाजपा ग्रामीण अध्यक्ष सहित पार्टी में अन्य पदों पर रहे। जिस धाकड़ समाज का यह पटेल परिवार प्रतिनिधित्व करता है उस समाज की अपेक्षा देपालपुर में कलोता समाज की संख्या 65 हजार, राजपूत समाज की संख्या 50 हजार बताई जा रही है।

ऐसा नहीं कि देपालपुर से विधानसभा चुनाव के लिए टिकट की दावेदारी करने वालों की ही अनदेखी हुई अन्य पदों के लिए भी उन्हें योग्य नहीं समझा गया। राजपूत समाज यदि गुस्से से उबल रहा है तो उसका कारण यह भी है कि जिला पंचायत अध्यक्ष का पद सामान्य होने के बाद भी पिछड़ा वर्ग से कविता पाटीदार को इस पद के लिए योग्य माना गया क्योंकि उनकी एक बड़ी उपलब्धि पूर्व मंत्री भेरुलाल पाटीदार की पुत्री होना भी रही।जबकि अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए श्रीमती कोमल राजेंद्र सिंह परमार ने भी दावेदारी की थी।कविता पाटीदार प्रदेश भाजपा महामंत्री, महिला मोर्चा की प्रदेश प्रभारी और राज्यसभा सदस्य तो हैं ही।

जिला पंचायत के उपाध्यक्ष के पद के लिए मोहन सिंह कछावा ने दावेदारी की लेकिन यहां भी राजाराम गोयल को मौका दे दिया। कृषि उपज मंडी अध्यक्ष का पद सामान्य वर्ग महिला के लिए होने के बावजूज पिछड़ा वर्ग की शांता सोमेश्वर पटेल को भाजपा ने प्रत्याशी बना दिया। इंदौर कृषि उपज मंडी अध्यक्ष का पद सामान्य पुरुष के लिए होने के बावजूद पार्टी ने पिछड़ा वर्ग के सोमेश्वर पटेल को अवसर दे दिया। पाटीदार समाज की संख्या करीब 25 हजार है लेकिन लगातार चार बार इसी समाज का सदस्य जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष रहा है।

 



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