कीर्ति राणा।
इंदौर जिले की (महू सहित) नौ विधानसभा सीटों में से 2018 के चुनाव में भाजपा ने 5 और कांग्रेस ने 4 सीटें जीती थीं। सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद उपचुनाव में सांवेर सीट से फिर तुलसी सिलावट भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत गए थे। जबकि 2013 के चुनाव में भाजपा ने 9 में 8 सीटें जीती थीं। इस बार 17 नवंबर को मतदान के बाद 3 दिसंबर को घोषित होने वाले परिणाम को लेकर उत्सुकता अभी से है कि कौन प्रत्याशी जीतेगा और किस दल को कितनी सीटें मिलेंगी।कांग्रेस में अभी तो असंतोष का लावा फैला हुआ है और भाजपा बहुत पहले से अपने प्रत्याशी के पक्ष में हर बूथ पर 51 प्रतिशत मतदान की प्लॉनिंग कर चुकी है।
नौ सीटों का इतिहास गवाह है
इंदौर 1 से संजय शुक्ला (कांग्रेस) ने तब सुदर्शन गुप्ता (भाजपा) को 8163 मतों से हराया था। इस बार भाजपा ने कैलाश विजयवर्गीय को यहां से प्रत्याशी बना दिया है। विजयवर्गीय की उपलब्धियों में हरियाणा में भाजपा की सरकार बनाना और पं बंगाल में भाजपा की सीटें बढ़ाने जैसी उपलब्धियां दर्ज हैं किंतु उन्हें एक नंबर क्षेत्र की गली-गली भटकने के साथ मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भी पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में सभा-प्रचार के लिए जाना पड़ रहा है।प्रदेश की हॉट सीट माने जा रहे एक नंबर में क्षेत्र में संजय इस बार(पुराने आंकड़े 8163) से अधिक मत प्राप्त कर के चौंकाएंगे या विजयवर्गीय ऐतिहासिक मत प्राप्त कर के कांग्रेस से यह सीट झपट लेने का चमत्कार दिखाएंगे।
क्षेत्र क्रमांक 2 तो जैसे भाजपा विधायक रमेश मेंदोला के लिए अमरपट्टा हो गया है।कृपाशंकर शुक्ला से लेकर पंकज संघवी, सुरेश सेठ, रेखा गांधी, छोटू शुक्ला यहां से हारते रहे हैं। मेंदोला ने पिछला चुनाव कांग्रेस के मोहन सिंह सेंगर को 71011 मतों से हराया था। अब सेंगर भी सिंधिया के साथ भाजपा में तो आ गए हैं लेकिन दो नंबर में विजयवर्गीय-मेंदोला समर्थकों से उनकी पटरी ना तब बैठी और ना अब। कांग्रेस ने यहां से इस बार नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे को प्रत्याशी बनाया है। माना जा रहा है कि एक नंबर की तरह दो नंबर में भी कांग्रेस एकजुट है किंतु चौकसे के ‘जीत पक्की है’ जैसे दावे से पहले उन्हें 71011 मतों के पहाड़ पर चढ़ना है।जीत वाली पायदान तो इसके बाद नजर आएगी।इस पहाड़ जैसी लीड को यदि वे कम करने में भी सफल हो जाते हैं तो यह जीत से कम नहीं होगी।
इंदौर 3 में गोलू शुक्ला को यह सीट एक तरह से विजयवर्गीय के सुझाव पर भाजपा ने तो गिफ्ट में दी है लेकिन मतदाता भी भाजपा की इच्छा पर खरे ही उतरेंगे यह 3 दिसंबर को ही पता चलेगा।पिछली बार आकाश विजयवर्गीय ने पूर्व विधायकअश्विन जोशी को 5751 मतों से हराया था, तब भी जोशी ने आरोप लगाए थे कि आकाश तो हार गए थे, प्रशासन ने जिताया उन्हें। इस बार गोलू के सामने दीपक जोशी पिंटू हैं जो अश्विन के चचेरे भाई हैं।
पहली बार अश्विन को टिकट उन्हीं महेश जोशी की बदौलत मिला था जिनके पुत्र पिंटू हैं।टिकट कटने से नाराज अश्विन कुछ समय तक मुंह फुलाए बैठे थे, दीपक शरणागत हुए तो वो अब मान गए हैं। गोलू शुक्ला के पास उपलब्धियों के नाम पर आकाश-कैलाश विजयवर्गीय का गुणगान है तो पिंटू के साथ अश्विन जोशी को पिछली बार मिली हार की खुन्नस वाला अनुभव है।कुछ दिनों में यह सीट भी एक नंबर की तरह चर्चा में आ जाएगी।गोलू को निराश होना पड़ा तो ‘बाहर प्रत्याशी’ जैसा बड़ा कारण रहेगा, दीपक के चेहरे की चमक बढ़ी तो कांग्रेस की एकजुटता, अश्विन समर्थकों की ईमानदारी से मेहनत प्रमुख कारण रहेंगे।
इंदौर 4 अयोध्या के नाम से पहचान बना चुका है। इसे भाजपा का मजबूत किला बनाने का श्रेय कैलाश विजयवर्गीय को जाता है। फिर लक्ष्मण सिंह गौड़ और उनके बाद से मालिनी गौड़ परिवार की परंपरागत सीट हो गई है।पिछला चुनाव मालिनी गौड़ से सुरजीत सिंह चढ्डा 43090 मतों से हारे थे।अब वे शहर कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। चड्डा के सामने चुनौती है इस क्षेत्र सहित अन्य शहरी क्षेत्र की सीटों पर कांग्रेस को जितवाएं।यहां से राजा मांधवानी प्रत्याशी हैं। उन्हें भरोसा है सिंधी समाज के एकतरफा वोट मिल जाएंगे, सवाल तो यह भी है कि मालिनी गौड़ की जीत में पिछली बार मिले 43090 मत कितने कम कर पाएंगे।उनसे पहले गोविंद मंघानी भी कांग्रेस से लड़ चुके हैं, मुस्लिम समाज के इकबाल खान भी अजित जोगी की कृपा से लड़ चुके हैं सब हार गए। जैन समाज के भरोसे अक्षय कांति बम भी इस बार खूब खर्चा कर चुके थे, टिकट मांधवानी को मिलने के बाद कुछ दिन रूठे रहे, अब साथ हो गए हैं।
इंदौर 5 ऐसा क्षेत्र है जहां भाजपा विधायक महेंद्र हार्डिया कह चुके थे पार्टी जिसे टिकट देगी उसके लिए काम करेंगे। दौड़ में गौरव रणदिवे, नानूराम कुमावत, डॉ निशांत खरे थे लेकिन पार्टी ने उन्हें ही प्रत्याशी बना दिया। महेंद्र हार्डिया ने सत्यनारायण पटेल (कांग्रेस) को 1113 मतों से हराया था। इस बार दोनों फिर सामने हैं। कांग्रेस से डॉ स्वप्निल कोठारी भी दावेदारी में थे।उन्होंने कह दिया है कांग्रेस के पक्ष में काम करेंगे, पांच नंबर में उनकी टीम कितना काम करेगी यह परिणाम बताएंगे।
राऊ में जीतू पटवारी (कांग्रेस) ने मधु वर्मा (भाजपा) को 5703 मतों से हराया था। यहां फिर दोनों मैदान में है। भाजपा से जीतू जिराती का नाम भी उछला था।पटवारी को भरोसा है जीत पिछली बार की अपेक्षा अधिक मतों से होगी, मधु वर्मा को पिछली बार की अपेक्षा इस बार पर्याप्त समय मिला है, हार के कटु अनुभव से सबक भी ले लिया है। भाजपा की एकजुटता पटवारी की राह में रोड़ा बनेगी या नहीं 3 दिसंबर को देखेंगे।
महू (अंबेडकर नगर) ने मप्र में स्थानीय प्रत्याशी की मांग को आग में बदलने का कामने किया है।खुद भाजपा विधायक उषा ठाकुर यहां की अपेक्षा इंदौर के एक या तीन नंबर से लड़ना चाहती थीं।पिछली बार उन्होंने पूर्व विधायक अंतरसिंह दरबार को 7157 मतों से हराया था। महू के नामचीन एक दर्जन से अधिक भाजपा नेताओ ने लिखित में अनुरोध कर दिया था कि उषा ठाकुर की अपेक्षा किसी स्थानीय को टिकट दें लेकिन पार्टी नेतृत्व ने अपने मन की ही की। भाजपा से कांग्रेस में आए राम किशोर शुक्ला का विरोध कर रहे पूर्व विधायक अंतरसिंह दरबार विरोध में जंगी रैली निकालने के साथ निर्दलीय लड़ने की घोषणा कर चुके हैं।उनके समर्थकों का उषा ठाकुर को तो नाराज भाजपाइयों का भरोसा रामकिशोर शुक्ला को है क्यों कि वो स्थानीय हैं।
देपालपुर में विशाल पटेल (कांग्रेस) ने मनोज पटेल (भाजपा) को 9044 मतों से हराया था। इस बार यहां भी स्थानीय को प्रत्याशी बनाने की मांग ने भाजपा में जोर पकड़ा जरूर लेकिन भाजपा ने एक की नहीं सुनी।राजेंद्र चौधरी निर्दलीय लड़ें यह विशाल पटेल चाहते हैं तो कांग्रेस के मोती सिंह पटेल की दिली तमन्ना है कि विशाल हार जाए।जिसे जीतना है उसे 9044 मतों से अधिक अपने पक्ष में लाना होंगे।
सांवेर में पहले कांग्रेस से जीते तुलसी सिलावट (कांग्रेस) ने भाजपा के राजेश सोनकर को 2945 मतों से हराया था। उपचुनाव में सिलावटने कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू को 53264 से पराजित किया। सिलावट को जहां 129676 और गुड्डू को 76412 मतों से संतोष करना पड़ा था। उपचुनाव में रमेश मेंदोला की टीम ने सिलावट को ऐतिहासिक जीत दिलाई थी, सिलावट के खिलाफ अंडर करंट है। कांग्रेस ने गुड्डू की अपेक्षा उनकी पुत्री रीना बोरासी सेतिया को टिकट दिया है। नाराज-बीमार गुड्डू आलोट से टिकट नहीं मिलने से अब निर्दलीय लड़ेंगे। वहां उनकी जीत संदिग्ध है तो यहां सिलावट के लिए पिछली जीत का आंकड़ा बनाए रखना बड़ी चुनौती है।
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