प्रकाश भटनागर।
एक लोकसभा का चुनाव और क्या हारे और एक राहुल गांधी ने इस्तीफा क्या दिया, कांग्रेस सुलझने की बजाय उलझती जा रही है। क्या पता किस ने कहा है, तुम तो मेरी हर उलझन का जवाब थे, न जाने कब खुद एक उलझन बन गए।
राहुल गांधी से किसी को ऐसी उम्मीद नहीं थी। गजब की ऊहापोह में फंसा है देश का सबसे पुराना और अनुभवी राजनीतिक दल। लोकसभा चुनाव की हार को लगभग दूसरा महीना बीत गया है, लेकिन कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि करे तो क्या करें और करे तो कौन करें?
उसकी प्रतिद्वंद्वी और देश के साथ सर्वाधिक राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा रोज खुद को मजबूत करने का कोई कदम बाकी नहीं छोड़ रही है। इसलिए मंगलवार को अमेठी के राजा और कांग्रेस से राज्यसभा सांसद संजय सिंह शायद तीसरी बार कांग्रेस का साथ छोड़ गए हैं और दूसरी बार भाजपा में शामिल हो गए।
उन्होंने अपनी राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया जिसे सभापति ने तत्काल स्वीकार कर लिया। संजय सिंह ने इस बार सुल्तानपुर से मेनका गांधी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा था और जाहिर है हार गए।
इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें असम से राज्यसभा के लिए भेज दिया था। जाहिर है, संजय सिंह के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर शायद संजय सिंह ही भाजपा के टिकट पर फिर राज्यसभा में लौट आएंगे। उनका कार्यकाल 2020 तक है।
अमेठी के राजा संजय सिंह गांधी परिवार और खासकर संजय गांधी के खास लोगों में गिने जाते रहे हैं। उनकी पहली पत्नी गरिमा सिंह इस समय अमेठी से भाजपा की विधायक हैं और दूसरी पत्नी कभी बेडमिंटन खिलाड़ी रही अमिता मोदी, विधानसभा का चुनाव हारी थीं।
संजय सिंह 1989 में जनता दल में शामिल हुए थे। जनता दल से राज्यसभा में रहे फिर 1998 में भाजपा में शामिल हो गए और लोकसभा का चुनाव जीता। फिर सोनिया के कांग्रेस में आगमन पर सोनिया से हारे और वापस कांग्रेस में आ गए।
जाहिर है संजय सिंह की निष्ठाएं बदलती रही हैं। पर इस बार उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का जो कारण बताया है, वो शायद कांग्रेस के पतन की स्थिति का एक बड़ा कारण भी है।
संजय सिंह ने कहा है कि कांग्रेस में संवादहीनता की स्थिति है। संजय सिंह के इस आरोप ने हेमंत बिस्वा शर्मा की याद भी ताजा कर दी। हेमंत इस समय असम की भाजपा सरकार में उपमुख्यमंत्री और उत्तर पूर्व में भाजपा का जनाधार मजबूत करने वाले एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित हैं।
कांग्रेस छोड़ने से पहले हेमंत बिस्वा शर्मा की बड़ी मुश्किल से राहुल गांधी से मुलाकात हो पाई थी। तब हेमंत बिस्वा शर्मा ने कहा था कि वे अपनी समस्या बता रहे थे और राहुल गांधी अपने कुत्ते से खेल रहे थे, उसे बिस्कुट खिला रहे थे।
नतीजा, असम जैसे राज्य में भाजपा ने पहली बार बहुमत से सरकार बना ली। राहुल गांधी शरमाते-सकुचाते 2004 में सीधे जनरल सेक्रेट्री के तौर पर कांग्रेस में आए थे और 2019 में कांग्रेस की फिर से हुई शर्मनाक हार से गुस्सा होकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का एलान कर बैठे।
उन्होंने और उनकी बहन, जो कांग्रेस में शामिल होते ही राहुल की तरह पार्टी में महासचिव बन गई, ने इस हार के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को पार्टी का हत्यारा ठहरा दिया और अमेठी में हार के लिए कांग्रेस के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार। परिवार कैमरों के सामने सिर्फ औपचारिक जिम्मेदारी स्वीकार करता है।
अब उन्हीं प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर शशी थरूर ने कहा है कि उन्हें पार्टी की जिम्मेदारी ले लेना चाहिए। थरूर निश्चिंत तौर पर इस ताजा तथ्य को तो नहीं ही भूले होंगे कि उत्तरप्रदेश में जहां प्रियंका ने कांग्रेस के उत्थान की जिम्मेदारी ली थी, वहां कांग्रेस दो से एक सीट पर आ गई।
करीब 70 लोकसभा सीटों पर उसकी जमानत जब्त हुई, सो अलग। इसके बावजूद थरूर ने फरमाया है कि राहुल के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर 'स्पष्टता की कमी से' पार्टी को नुकसान हो रहा है।
शशी थरूर ने कहा कि पार्टी की कमान किसी युवा नेतृत्व को सौंपे जाने की जरूरत है। कांग्रेस में सुधार का यही तरीका है कि कांग्रेस कार्यसमिति सहित पार्टी के सभी महत्वपूर्ण पदों के लिए चुनाव करवाएं जाएं। इन चुनावों में जीतने वाले नेताओं को पार्टी की स्वीकार्यता मिलेगी।
बेचारे थरूर नहीं जानते कि कांग्रेस में संगठन के चुनाव कैसे हुआ करते हैं, वरना वे शायद ऐसा कहने की हिमाकत नहीं करते। एक तरफ वे चुनाव की बात कर रहे हैं और लगे हाथों शीर्ष पद पर प्रियंका गांधी की वकालत भी।
प्रियंका भी अब कांग्रेस के लिए बंद मुट्ठी तो रहीं नहीं। जिम्मेदारी ली पूर्वी उत्तरप्रदेश की और जो दो सीटें कांग्रेस जीतती आ रही थीं, उनमें से भी एक गंवा दी।
जाहिर है, कांग्रेस में हर कोई उलझन का शिकार है। इसलिए थरूर के बयान पर केरल कांग्रेस ने तत्काल असहमति जता दी और वहां के अध्यक्ष एम रामचंद्रन ने कह दिया कि कांग्रेस अनाथ पार्टी नहीं है।
दूसरी तरफ केरल से ही राहुल के इन दिनों खास महासचिव केसी वेणुगोपाल ने शशी के बयान पर कहा कि उन्होंने आम कांग्रेसी की भावना को ही जाहिर किया है।
यानि आम कांग्रेसी की भावना परिवार से बाहर जाने की नहीं है। कांग्रेस की इन उलझनों पर इक़बाल सफ़ी का एक शेर मौजूं हैं, 'नाकामी-ए-किस्मत क्या शय है, क्या चीज शिकस्ता-पाई है, दो-गाम पे मंज़िल है लेकिन, दो गाम भी चलना मुश्किल है।'
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