डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
वंशवाद का विरोध कौन करेगा? कौन कर सकता है? वसुंधरा राजे? मेनका गांधी? अखिलेश यादव? राजनाथ? यशवंत सिंह? पासवान? लालू? ठाकरे? पवार? मायावती? उमा भारती? चंद्रा बाबू? जयंत चौधरी? पटनायक? बादल? या हरियाणा के मशहूर लालों का कुनबा? बुद्ध के सामने एक मुट्ठी चावल कौन-से घर से लेकर आएं? ये सब वंशवाद नहीं बढ़ा रहे हैं क्या?
तुरुप का पत्ता खेल की एक ही बाजी में चलता है। नई बाजी, नया तुरुप! मायावती अब कहती हैं क्या -तिलक तराजू और तलवार? भाजपा अब कहती है क्या - सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे? कांग्रेस कहती है क्या अब - चुनिए उन्हें जो सरकार चला सकें (1980)?
जब खेल जारी हो तो बाजी में तुरुप का पत्ता कोई भी चल सकता है। दूसरे भी तुरुप का पत्ता चलेंगे।
इस चुनाव में जानेमाने 'मौसम विज्ञानी' भी हवा का पूर्वानुमान नहीं लगा पाएंगे। वे भी 'तेज़ धूप में बरसाती पहनकर' बाजार जाएंगे।
अब यूपी में सपा-बसपा की सीधी टक्कर भाजपा से नहीं होगी।
भाजपा की टक्कर यूपी में होगी कांग्रेस, सपा-बसपा युति और अन्य से।
बहुकोणीय मुकाबले में किसे लाभ? कांग्रेस, भाजपा, सपा-बसपा या किसी और को? या किसी को नहीं?
क्या वोटर हारने वाले को वोट देगा?
यह तो इब्तदा की झलक है, देखते जाइये. राजनीति में जो है, दीखता नहीं, जो है नहीं, सामने नज़र आता है. क्षितिज नज़र आता है पर धरती और आकाश का मेल होता है कहीं? परमाणु होते हैं पर नंगी आँखों से कहाँ नज़र आते हैं?
राजनीति की जलेबी
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