राकेश दुबे।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में नागपुर जाने से से कांग्रेस को भूले-बिसरे गीत की तरह कांग्रेस सेवा दल याद आ गया है। शायद कल से उसे कोई काम मिल जाये।
हर बार सत्ता मिलते ही सेवादल को भूल जाना कांग्रेस की शैली है और हाँ! कांग्रेस में तो 'राष्ट्रीय कांग्रेस स्वयंसेवक संघ' भी है। पता नहीं राहुल गाँधी इसके गठन से अवगत हैं या नहीं।
बहरहाल राहुल गाँधी सेवादल को जो महत्वपूर्ण जवाबदारी सौंपना चाहते हैं, वह है हर महीने के आखिरी रविवार को संघ की तर्ज पर सेवा दल के स्वयंसेवक देश के एक हजार शहरों में ध्वज वंदन कार्यक्रम आयोजित करें।
जिम्मेदार सूत्रों के अनुसार सेवादल पहले भी यह करता था, बीच में बंद हो गया था।
कांग्रेस सेवादल के बारे में जब भी मध्यप्रदेश संदर्भित होता है, तो शुजालपुर याद आता है। मध्यभारत के मुख्यमंत्री स्व. लीलाधर जी जोशी जैसे व्यक्तित्व याद आते हैं जिन्होंने अपने परिवार में सेवादल को संस्कार के रूप में जोड़ा था।
उनके परिवार में सेवा दल की परम्परा आज भी कायम है। मध्यप्रदेश शासन में मंत्री रहे उनके बेटे स्व. विद्याधर जी जोशी और अब उनके बेटे श्री महेंद्र जोशी सेवादल के माध्यम से ही राजनीति में आये।
वहीं अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की बात करें तो वहां ऐसी पीढियां मौजूद हैं। कांग्रेस से ठीक विपरीत सत्ता में रहते हुए भी संघ और भाजपा दोनों एक दूसरे का पूरा ध्यान रखते हैं।
भाजपा,संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोगों को ज़िम्मेदारी सौंप रही है। इससे सत्ता में रहते हुए संगठन अर्थात संघ और मज़बूत हो रहा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व ओलंपियन और पूर्व केन्द्रीय मंत्री असलम शेर खान ने भी 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' की तर्ज पर 'राष्ट्रीय कांग्रेस स्वयंसेवक संघ' यानी आरसीएसएस ' के गठन की घोषणा की थी।
उनका दावा था ये संगठन ठीक उसी तरह से कांग्रेस की मदद करेगा, जैसे संघ चुनावों में भाजपा की सहायता करता है।
उनकी घोषणा के बाद प्रदेश में अनेक उप चुनाव आये- गये असलम भाई की तरफ कुछ हुआ ऐसा नहीं दिखा। तत्समय उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस सेवा दल लगभग खत्म हो चुका है| उन्होंने यह भी कहा था उनके सन्गठन [आरसीएसएस] में जल्द ही एक लाख तक स्वयंसेवक हो जाएंगे' और आरसीएसएस की मदद से कांग्रेस आने वाले दिनों में भाजपा को चुनावों में कड़ी टक्कर देगी।
चुनाव मध्यप्रदेश के नजदीक है। कांग्रेस अपनी पूरी ताकत लगा रही है। दिल्ली में बैठे कांग्रेस नेताओं को यह समझ में आने लगा है कि मुख्य राजनीतिक सन्गठन के साथ उसके अनुषांगिक संगठनों की भूमिका भी होती है, सेवादल का उपयोग सिर्फ झंडा वन्दन तक न करें, उसे झंडा थमाएं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रतिदिन पत्रिका के संपादक हैं।
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