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सरकार! उन्हें रोगी नहीं, कुष्ठपीड़ित कहें

राज्य            Apr 18, 2017


रजनीश जैन।
मध्यप्रदेश सरकार की कैबीनेट की बैठक में आश्रम में रहने वाले कुष्ठरोगियों को पांच हजार रू देने का प्रावधान किया गया है। सरकार को पता ही नहीं कि कुष्ठ की नई दवा की खुराक लेने के महीने भर में ही रोगी संक्रामक नहीं रह जाता। कोर्स पूरा कर लेने पर कुष्ठमुक्त हो जाता  है, एक सामान्य इंसान की तरह। लेकिन कुष्ठ का कलंक उनका जीवन भर पीछा नहीं छोड़ता।अतः उन्हें रोगी न कहें पीड़ित कहें। कुष्ठ मुक्त हो जाने के बाद भी रोग का कलंक ढो रहे कुष्ठ पीड़ित हैं वे।

सरकार को चाहिए कि कुष्ठ आश्रम बंद करे और आश्रम में रह रहे पीड़ितों को उनके घरों और समाज में सम्मान जनक स्थान दिलाऐं क्योंकि वे कुष्ठ को हरा कर लौटे हैं। जिलों में तैनात कुष्ठ उन्मूलन यूनिटों और एनजीओज् को चाहिए कि वे कुष्ठपीड़ितों और आमजन को एकसाथ बैठाकर भोजन आदि बरतें। कृष्णात्रे जी के साथ कुष्ठपीड़ितों के बीच काम करते हुए मैंने कई बार कुष्ठपीड़ितों द्वारा परोसा गया भोजन पानी बिना किसी झिझक के ग्रहण किया है। जो अनभिज्ञ लोग ऐसा होते हुए देखते हैं उन्हें कुष्ठपीड़ितों के साथ भेदभाव नहीं करने की प्रेरणा मिलती है। अतः ऐसा समाज बनाने की कोशिश करें जहाँ एक भी कुष्ठ आश्रम न हो।

 



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