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भ्रष्टो सरकारी स्कूल भी तो हमारे टैक्स से चल रहे हैं

राज्य            Mar 31, 2017


रजनीश जैन।
प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों और उनके अभिभावकों को इस बदनाम व्यवस्था ने उस माफिया के हवाले कर दिया है जो नेता, अफसर और स्कूल मालिकों के गठजोड़ से मध्यमवर्गीय परिवारों का खून चूसता है।...इस मुर्दा शहर के लोग बच्चों के अरमानों और खुद की बची खुची हैसियत (इज्जत) की खातिर लाइन में खड़े होकर जेबें हल्की कर रहे हैं। स्कूल बताता है कि अमुक किताब उस दुकान से लेना है, ड्रेस फलाना टेलर से, बैल्ट मोजे जूते स्कूल से।

सारी सामग्री दस गुने दाम पर। आपत्ति लो तो यह कह कर इज्जत उतारी जाती है कि हैसियत नहीं है तो बच्चे को सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ाते। अफसर और स्कूल वाले एक सुर में यह डायलाग बोलते हैं।

अरे भ्रष्टो! सरकारी स्कूल भी तो हमारे ही टैक्स के पैसों से चल रहे हैं। एक सरकारी स्कूल के खर्चे में चार प्राइवेट स्कूल खुल जाऐं इतना खा रहे हो वहाँ भी।

व्यापमं वाले मामाजी तुम अपने ही भाँजे भाँजियों, बेटा बेटियों के हक का निवाला छीन कर खा रहे हो। बच्चों के माँ बाप धरने पर हैं। तुम्हारी सागर कलेक्ट्रेट के अंधेरों में भी वे रात भर जागते रहे और तुम हेलीकाप्टर से श्यामला हिल लौट कर मार्च एंडिंग का कमीशन गिन रहे होओगे।...31 मार्च जो है। बचे खुचे की बंदर बांट का सालाना पर्व।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से ली गई है।



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