पंकज मिश्रा।
लोगों को अंदाज़ नहीं है कि किसी भी फील्ड में ब्यूरोक्रेसी की जकड़ धृतराष्ट्र की जकड़ से भी ज्यादा मजबूत होती है। वह लोहे को भी चकनाचूर कर देती है।
यह समझ सकेंगे फिर इन पहलवानों का दर्द समझ मे आएगा।
ये चेस नही खेलतीं कि 50 साल तक खेल सकें। इनकी पूरी लाइफ ही एक से दो ओलंपिक तक होती है।
दीपा करमाकर याद है एक इंजरी और करियर खत्म।
2016 की रियो की इंजरी ने विनेश को खत्म कर दिया। हालांकि वह फिर खड़ी हुई मगर पीक तो जा चुकी थी बावजूद इसके वह अब तक कि बेस्ट महिला पहलवान है।
साक्षी इकलौती महिला पहलवान है जिसने ओलंपिक पदक लिया।
यानी इनके स्टेक्स वैसे भी बहुत vulnerable होते हैं।
एक कैम्प से बाहर तो पता नहीं फिर लौटना होगा कि नहीं।
एक डोप टेस्ट और बाहर , नरसिंह यादव लौट सका नहीं न इनका दुख ये है, इनकी सीमा ये है।
और फिर ये कोई बहुत ज्यादा पोलिटिकली अवेयर लोग नहीं हैं, जो धारा के विरुद्ध स्टैंड ले सकें, ऊपर से कंडीशनिंग।
तो इन पर जब बीतती है तो ही इन्हें पता चलता है, यह अनुभव से सीखती हैं।
इन्हें या इन जैसों को इनके पुराने स्टैंड को लेकर कोसना या मजाक उड़ाना बन्द करें।
इन्होंने तो फिर भी मोर्चा लिया और पूरी मजबूती से लिया। ये काबिले एहतराम काबिले सलाम लोग हैं।
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