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सदन की गरिमा नेता के हाथ में होती है, सीएम योगी ने इसे कायम रखा

उत्तरप्रदेश, राजनीति            Jun 03, 2022


अमलेंदु भूषण।
विधानसभा में मारपीट व गाली गलौच की घटना अब आम बात सी लगती है लेकिन सदन के नेता अपनी मर्यादा को बनाए रखें तो सभी लोग प्रशंसा करते हैं।

इसी मर्यादा को बनाए रखने में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कामयाब रहे।

विधानसभा में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव के बीच जब विवाद की स्थिति बनी तब उनकी शालीनता और शब्दों के वाक्य विन्यास ने सभी राजनीतिक दलों खासकर विपक्षी दलों को मर्यादा में रहने की सीख दी।

यह बात सच है कि उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या विधानसभा भारी मतों के अंतर से चुनाव हार चुके हैं और उन्हें हराने वाली उम्मीदवार अपना दल( कमेरा ) राजनीतिक दल से थीं।

इस पार्टी को यह कतई आभास नहीं था कि पल्लवी पटेल राज्य के उप मुख्यमंत्री रहे प्रत्याशी को करारी शिकस्त देगी।

खैर भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें फिर भी उप मुख्यमंत्री की कुर्सी दी।

विधानसभा में विपक्ष के नेता अखिलेश यादव शायद यह सोचकर केशव प्रसाद मौर्या पर तू तड़ाक करते हुए हमलावर हुए कि उनके बचाव में योगी नहीं आएंगे।

लेकिन योगी ने सदन की मर्यादा का पाठ पढ़ाते हुए अखिलेश को ऐसा जवाब दिया कि लोग इस घटना को वर्षों तक याद रखेंगे।

27 मई 2022 को बजट सत्र के दौरान एक पल के लिए तो ऐसा लगा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा 25 साल पहले के इतिहास को दोहराने जा रहा है।

लेकिन सदन के नेता योगी आदित्यनाथ ने जो नीति अपनाई वह काबिले तारीफ है।

यदि योगी थोड़ी सी भी ढिलाई देते तो क्या होता उसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

22 अक्टूबर 1997 का दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा में हुई हिंसा इतिहास में दर्ज है, उस वक्त कल्याण सिंह को विश्वास मत साबित करना था।

इस दौरान विधानसभा में जमकर जूते चले और माइक फेंके गए। विधायकों के बीच हुई हिंसा इस कदर बढ़ी जिसमें कई विधायक घायल भी हुए।

यूपी की 13वीं विधानसभा अबतक सबसे विवादित मानी जाती है, ये विधानसभा शुरुआत से ही विवादों में घिरी रही।

राजनीतिक अस्थिरता का प्रतीक बनी और इसमें विधायकों की खुलेआम ख़रीद-फ़रोख़्त और दल-बदल बार-बार देखे गए। उस दौरान उत्तरप्रदेश ने चार मुख्य मंत्री देखे।

वहीं एक मौक़ा ऐसा भी आया जब एक ही समय मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार विधानसभा में एक साथ बैठे रहे और आख़िरकार शक्ति प्रदर्शन के बाद ही तय हुआ कि असली मुख्यमंत्री कौन है।

उस समय का सबसे सबसे बड़ा काला अध्याय सदन में मारपीट होना था।

21 अक्टूबर 1997 भारत के लोकतंत्र के काले दिन के रूप में याद रखा जाएगा। उस दिन विधानसभा के भीतर विधायकों के बीच माइकों की बौछार, लात-घूंसे, जूते-चप्पल भी चले।

ऐसी, बात नहीं है कि सिर्फ उत्तर प्रदेश विधानसभा में ही लात घूंसे चले हैं,  फरवरी 2017 में तमिलनाडु विधानसभा में विश्वास मत के लिए विशेष सत्र बुलाया गया था।

बहुमत परीक्षण से पहले विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ। सदन में कुर्सियां उछलने लगीं। स्पीकर की कुर्सी और माइक्रोफोन तोड़ दिया गया, उनकी शर्ट फाड़ी गई।

विधायक स्पीकर की कुर्सी पर जा बैठे। उनका माइक्रोफोन तोड़ दिया गया। यहां तक की एक अधिकारी भी इस उग्र प्रदर्शन में घायल हो गया।

इससे पहले 1 जनवरी 1988 को भी तमिलनाडु विधानसभा के लिए काला दिन के रूप में याद किया जाता है।

जानकी रामचंद्रन ने विश्वास मत के लिए विशेष सत्र बुलाया था, अपने पति एमजीआर के निधन के बाद वो सीएम बनीं थीं, लेकिन ज्यादातर विधायक जयललिता के साथ थे।

इस दौरान सियासी गठजोड़ के बीच विधानसभा की बैठक में माइक और जूते चले। सदन में लाठीचार्ज भी करना पड़ा।

बाद में जानकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। तमिलनाडू की कहानी यहीं पर खत्म नहीं होती है। 25 मार्च 1989 को बजट पेश करने के दौरान तमिलनाडु विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ।

डीएमके और एडीएमके विधायकों के बीच हिंसा इस कदर बढ़ी कि वहां दंगे जैसे हालात पैदा हो गए।

हंगामा करने में महाराष्ट्र के विधायक भी पीछे नहीं है। 10 नवंबर 2009 को महाराष्ट्र विधानसभा में विधायकों के शपथ ग्रहण के दौरान सपा के विधायक अबु आजमी ने हिंदी में शपथ ली तो एमएनएस के चार विधायक हिंसक हो गए।

इसके बाद चार साल तक इन विधायकों को सस्पेंड किया गया।

13 मार्च 2015 केरल विधानसभा में तत्कालीन वित्तमंत्री केएम मणि ने मार्शलों के घेरे में बजट पढ़ा, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे।

बजट पेश करने के दौरान विपक्षी दलों ने हंगामा करते हुए हाथपाई शुरु कर दी। इस दौरान दो विधायक घायल हो गए।

सदन की मर्यादा बनाए रखने में सदन के नेता की जिम्मेदारी होती है, यदि योगी की तरह सभी नेता शालीनता बरते तो गरिमा बनी रहेगी।

 



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