औरतों के लिये धार्मिक नियम बदलते क्यों नहीं?
वामा
Jan 30, 2016
धीरज सिंह
दुनिया की आधी आबादी को किसी भी धर्म मे सुरक्षा प्रदान नही की गई है, हमेशा से दबाई,कुचली गई है। औरतों के विषय में लगभग हर व्यक्ति दोगला होता है,कोई भी इनको बराबरी का हक देना नहीं चाहता? किसी भी धर्म व समाज में इनको बराबरी का हक नहीं मिला है,हर समाज,हर धर्म ने औरतों को सिर्फ भोग वस्तु व सजावट की चीज ही समझा है।
हाॅ कुछ धर्म कहीं—कहीं औरतों के मामले में थोड़े से लिबरल हुए हैं, लेकिन पूर्णतया नहीं ? हिंदू धर्म,जैन धर्म, बौद्ध धर्म,इसाई धर्म मे औरतों के विषय मे थोडी आजाद सोच बनी है,वह भी ऊट के मुह में जीरा ही है। लेकिन बाकी के धर्म में अभी भी दकियानूसी से बाहर निकलना नहीं चाहते?
वैसे मूढ़ता में तो किसी भी धर्म के अनुयायी भी कम नही हैं?देखा जाए तो हिंदू धर्म मे शक्ती,विद्या, धन की प्रधान देवियां ही है,पर कितने लोग सचमुच महिला को देवी की इज्जत देते हैं?
रजस्वला स्त्री को मंदिर तो क्या उसके किचन में जाने की मनाही है,उसके वैज्ञानिक कारण भी लोग गिनवाने लगते हैं?इस मनाही के पीछे कौन सा विज्ञान है,आज तक मुझे समझ नहीं आया?
इसलाम में औरतों को मस्जिद में जाने की मनाही है, दरगाह में जाने की मनाही है वहीं पुरूषो को एक वक्त में चार शादीयों की परमीशन है। औरतों को क्यों नहीं? मेहर की रकम 786 जैसे पवित्रता पर बेवकूफ बनाने की कोशिश सिर्फ औरतों के साथ होती है,इसलाम में औरत सूफी हो सकती है पर बांगी,मौलवी,इमाम या मुफ्ती नही?
कुरान को पढते समय बाकायदा औरतों के विषय मे आप भेदभाव महसूस कर सकते हैं। इसाईयों में भी कमोवेश यही स्थिति है जबकि औरतों के लिए मेरे हिसाब से इसाई धर्म सबसे महफूज है, प्रगतिशील सोच का धर्म है, यहा दुसरे धर्मो के मुकाबले औरतों को ज्यादा आजादी है। यहा औरतें संत बनी हैं, नन बनी हैं, चर्च की मुख्य प्रीस्ट बनी हैं पर पोप बनना अब तक इनको नसीब नहीं हुआ है। वैसे इसकी मनाही नहीं है पर पुरूष सत्ता ने इन्हें कभी बनने नहीं दिया है ।
हिंदू धर्म में एक महिला साध्वी बन सकती है,पंडित बन कर कर्म कांड करा सकती है,लेकिन आज भी हिंदू धर्म मे कोई औरत शंकराचार्य जैसा दर्जा नहीं पा सकी है? या कोई बनी है? मुझे तो याद नहीं पड़ता?
बौद्ध धर्म में भी कमोवेश यही स्थिति है कि सर्वोच्च शिखर साधु नहींं बन सकते हैं।
सभी धर्मों के सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान होने का अधिकार महिलाओं को कभी नहीं मिला है और निकट भविष्य में मुझे यह आस नजर भी नहीं आती है।
महिलाओं के हक की बात सभी धर्म करते हैं,कहते हैं लेकिन कोई धर्म, समाज उनको हक देना नही चाहता?औरतों को हर धर्म और समाज सिर्फ सजावट की वस्तु बनाकर रखना चाहता है,ताकी वह खुबसूरत लगे, लेकिन कोई धर्म या समाज उसे बराबरी का हक देना नहीं चाहता जिससे कि वह स्वस्थ,मजबूत और बलशाली भी हो ?
धीरज सिंह के फेसबुक वॉल से
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