विद्या ददाति विनयम विनयम याति पात्रताम पात्रत्वाद धनमान्प्रोति- धनाद धमस्तितः सुखं।।
अर्थात विद्या से विनय-विनय से पात्रता/योग्यता-योग्यता से धन-धन से धर्म एंव धर्म के पालन से सुख की प्राप्ती होती है।आपने तो इसका स्वरुप ही बदल दिया, आप तो विद्या के बाद अंहकार और अविनय की बात कर रहे हैं। आप तो परिवार का मुख्य ढांचे को ही तहस-नहस करने की बात कर रहे हैं कि पति को ही चलता कर दो।जनाब आप किस समाज में रहते हैं और किस समाज की बात कर रहे हैं?शायद उन मासूमों की मनोदशा का इन्हें भान भी नहीं होगा जो अलग हुये माँ बाप की देन है।उन बच्चों की मनोदशा कितनी दयनीय होती जरा उनसे जाकर मिले। शिक्षा,हुनर,हमें उदंड़ नहीं विनम्र बनाता।फिर तलाक अलग होना हमारे संस्कारों में नहीं हम तो हर जन्म में सात जन्मों तक साथ रहने का वादा करते हैं। अब आती है इनकी चौथी सलाह ----दोगुनी जिम्मेदारियां होने पर तनाव मत पालिए।....अगर लंच में चार व्यंजन नहीं बनाती तो ठीक है एक प्रकार के भोजन से भी पेट भरा जा सकता है।......हम भारतीय महिलाएं दोगुनी जिम्मेदारियों से नहीं घबराते हम तो दसगुनी जिम्मेदारी भी हँसते हुए निभा लेते हैं और जहाँ तक चार व्यंजनों की बात है तो वह हमारा शौक भी है,खुशी भी और प्रेम भी है।हम भोजन पेट भरने के लिए नहीं कराते यह हम अपनी आत्म तुष्ठी के लिए कराते हैं।इस पाक कौशल में हमारा प्यार ,स्नेह होता है जो हमारा परिवार जीवन भर याद रखता है,हमारे अतिथि हमारे भोजन के स्वाद और हमारी मेहमान नवाजी से हमें याद करते हैं और फिर हम तो चटनी -रोटी में भी स्वाद और खुशी ढूँढ लेते हैं। हम भारती महिलाओं को यूं हीं नहीं अन्नपूर्णा कहा गया है।हम नम्बर पाने के लिए नहीं अपनी आत्म संतुष्टि के लिए यह सब करते हैं। अब इनके द्वारा दी गई पांचवी सलाह--किसी अन्य महिला से अपनी तुलना या स्पर्धा मत कीजिए।यह बात मायने नहीं रखती कि उनके लिए कोई आपसे बेहतर स्क्रेबबुक लिखेगा।या कोई दूसरा बेहतर डाइट के जरिये जदा वजन कम करेगा।ऐसी कोई महिला नहीं जो आदर्श महिला हो।अगर आपसे कोई दूर जाना चाह रहा है तो यह उसकी गलती है आपकी नहीं ।....... तो सुनिए हमारा जबाव ,जीवन में अगर प्रतिस्पर्धा नहीं हो तो जीवन में उत्साह आगे बढ़ने की उमंग ही समाप्त हो जाएगी। जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा जरुरी है क्षैत्र कोई भी हो सकता है।अगर कोई हमसे दूर जा रहा है तो जरुरी नहीं की उसकी ही गलती हो हमारी भी गलती हो सकती है।फिर हमारे पास तो प्रेम,ममता,स्नेह और सबसे बड़ा क्षमा का महामंत्र है,हम अपने किसी को अपने से दूर करने या जाने का सोच भी नहीं सकते।और आपका कहना कि दुनिया में कोई महिला आदर्श ही नहीं तो अपनी इस छोटी सोच को अपने पास रखें।आपने तो हद ही कर दी महिलाओं के हितैषी बनते हुए महिला आदर्शों का प्रतिमान ही खत्म कर दिया ,हमारी माँ तो हमारी पहली आदर्श होती है ।हजारो लाखों महिलाएं हैं जिन्हें हम ही नहीं अपितु सारा समाज आदर्श मनता है।इस बात के लिए आपको विश्व भर की महिलाओं से क्षमा मांगनी चाहिए । रहा सवाल हमारे तनाव का तो भारतीय समाज अति संवेदनशील समाज है और फिर भारतीय महिलाएं वे तो अति से भी महाअति संवेदनशील होती हैं। हमारे तनाव तो घर परिवार के किसी सदस्य का चेहरा उदास है तो हमें तनाव,अगर सपने में भी किसी को देख भर लिया तो हमें तनाव,पास-पडोस की हर छोटी बड़ी बात पर हमें तनाव,भोजन करते समय ठसका लग जाये तो हमें तनाव कि जरुर कोई प्रिये भूखा होगा ,दूर कही गाय रभांती हो तो तनाव,पक्षियों के कलरव तक की पहचान होती है हमें ,कि वे खुशी से चहक रहीं हैं या उन पर कोई संकट आन पड़ा है।आधी रात को उठ कर देखती हैं कि बिल्ली- कुत्ता क्यों बोल रहे हैं हमें उसका भी तनाव होता है।सीमा पर तनाव हमें घर बैठे महा तनाव। हमारी सारी संवेदना सारी चिन्ता सरहद और सरहदों के पार तक पंहुच जाती हैं और यह तनाव ही है जो हमें अपनों के साथ-साथ प्राणी मात्र से जोड़े रखता है हमारे तनाव के कारण वो नहीं हैं जो आपने बताए।हमारे तनाव हमारी संवेदनाओं से जुड़े हैं।हमारा यही नैसर्गिक गुण हमें सबसे खूबसूरत और सबसे अलग बनाता है। हमारे इसी तनाव में कहीं दादी-नानी का आशीर्वाद छुपा होता है ,कहीं माँ का स्नेह ममता होती है तो कहीं पत्नी का प्रेम ,तो कहीं बहनों की दुआएं होती हैं तो बेटी की पुकार होती है।अगर दुनियाभर के सर्वे कर्ता इसे हमारा तनाव मानते हैं तो हम अपने तनाव से बहुत खुश हैं,हमें सलाह ना दें। इन सलाहों को देकर चेतन भारतीय महिलाओं को सबसे खुश और आनंदपूर्ण महिलाओं में देखना चाहते हैं।अगर भारतीय महिलाओं ने इनकी बात मानली तो धरती पर एक नर्क होगा और उसका नाम भारत नहीं "चेतन भगत "होगा । भारतीय महिलाओं के हित में!
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