चेतन भगत को भारतीय महिलाओं की ओर से ऋचा अनुरागी का जवाब:हमें मुफ्त की सलाह ना दो!

वामा            Sep 23, 2016


  richa-anuragi-1मल्हार मीडिया। तथाकथित महान लेखक चेतन भगत की एक रिर्पोट जिसमें यह खुलासा हुआ कि भारतीय महिलाएं विश्व की अन्य महिलाओं की तुलना में सबसे ज्यादा तनाव में होती हैं,पर विचलित हो गये और उन्होंने पूरी भारतीय महिला समाज को अपनी पाँच सूत्री सलाह दे मारी।यूं भी इस देश में मुफ्त के सलाहकारो की कमी नहीं है।हाँ एक बात और हो सकती है ,महानायक अमिताभ बच्चन की अपने घर की बेटियों के लिए लिखे खत के बाद चेतन भगत भी कोई मौका खोज रहे हो देश की बेटियों के लिए पर बेटियां ना सही महिलाओं के लिए ही सही,उन्हें मौका मिला और उन्होंने ने जो, जी में आया सलाह दे मारी।अब सुनिए पहली सलाह सीधे सास पर प्रहार। तो सबसे पहली बात ही हास्यास्पद लगती है कि क्या सास महिला नहीं है?वह कोई ओर प्राणी है?वे बड़ी चतुराई से भारतीय महिलाओं को दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाएं कहते हैं हम सबके पास आइने हैं ?बहराल आपका शुक्रिया हमें खूबसूरत मानने के लिए।पर यह बेचारी सास कैसे बदसूरत हो गई?जिसके लिए चेतन कहते हैं अगर आपकी सास आपको पंसद नही करती हो तो उनके विचार उन पर ही छोड़ दें ,आप जैसी हैं वैसी ही रहें। चेतन साहब जो किसी महिला की सास है वह किसी बेटी की माँ भी होगी ,जो किसी बेटी की माँ है वह किसी की सास भी है और यह सास पहले माँ है इस शब्द ही में सारी खूबसूरती समाहित है।यह भारतीय समाज ही है जहाँ हर घर में माँ किसी ना किसी रुप में मौजूद है और उसके बगैर घर की कल्पना नहीं की जा सकती। आप युवा महिलाओ को,बुजुर्ग महिलाओं के खिलाफ यूं बरगला नहीं सकते। अगर एक माँ अपनी बेटी की किसी बात पर नारजगी जाहिर करती है उसे समझाइश देती है तब आपके अनुसार अगर वह सास है तो उसकी बात को गोली मारो।कदम -कदम पर हमें हमारे बड़ों की वे नसीहते काम आती हैं जो वे हमें गाहे-वगाहे देते रहते है,और यह नसीहते उन्हें अपने अनुभव अपने बड़ों सी मिली होती हैं।चेतन अगर तुम्हारी बात मानकर भारतीय महिलाएं चली तो वो दिन दूर नहीं जब हर गाँव,शहर ही नहीं हर मोहल्ले में वृध्द आश्रम और परित्यागता नारी घर खोलने पड़ जायेगे। अब आते हैं इनके द्वारा दी गई दूसरी सलाह पर,कार्य स्थल पर किसे तनाव नहीं होता क्या पुरुषों को नहीं होता? परिवार का मुखिया होने के नाते उसके ऊपर परिवार के भरण-पोषण की पूरी जबावदारी होती है।उसे भी सारे तनाव झेलते हुए घर-परिवार चलना होता है ।यह दीगर बात है वह अपने तनाव गाता नहीं फिरता। अगर वह इस तरह नौकरियां छोड़ता रहे तो परिवार का भूखों मरना तय है।रहा सवाल महिलाओ का तो जरुरी नहीं कि बॉस उनसे खुश हो और उन्हें महत्व दे।जरुरी है कि उनके काम की सरहाना हो और आज जिस तरह के काम हो रहे हैं उनमें तो टीम वर्क ही अधिकतर होते हैं किसी एक को व्यक्तिगत महत्व मिलना कहाँ तक उचित है ?इसमें भी मुझे आपकी दोहरी मानसिकता की बू आती है।सबसे अहम बात यह है कि क्या वह अपने काम से खुश है?उसे उस काम में अगर खुशी मिलती है तो फिर जरुरी नहीं कि कौन उसे महत्व देता है या नहीं।हाँ अगर उसे उस काम से खुशी नहीं मिलती तो बगैर देर किये छोड़ देना ही उचित है।बॉस के महत्व देने न देने से इसका कोई सरोकार नहीं। अब आती है तीसरी सलाह --अपने को शिक्षित करे हुनर सीखें पहुँच बनाए और आर्थिक रुप से मजबूत बनाने के लिए प्रयास करे और फिर पति को जबाव दें और बात बिगड़ जाए तो उसे चलता करे। चेतन क्या खूब सलाह?जहाँ तक शिक्षा, हुनर और आर्थिक मजबूती की बात है भारतीय महिलाएं अब इस ओर अग्रसर हो गई हैं उन्हें शिक्षा का महत्व भी समझ आ रहा है आज हमारा पुरुष समाज भी उन्हें इसमें उनकी मदद् कर रहा है।महिलाएं अर्थिक रुप से स्वतंत्र भी हो रही हैं और होना भी चाहिए, उन्हें शिक्षित और हुनरमंद भी होना चाहिए पर इसलिए नहीं कि वे अपने मूल्यों, संस्कारों को तज कर पति और परिवार से अलग हो जायें।

विद्या ददाति विनयम विनयम याति पात्रताम पात्रत्वाद धनमान्प्रोति- धनाद धमस्तितः सुखं।।

अर्थात विद्या से विनय-विनय से पात्रता/योग्यता-योग्यता से धन-धन से धर्म एंव धर्म के पालन से सुख की प्राप्ती होती है।आपने तो इसका स्वरुप ही बदल दिया, आप तो विद्या के बाद अंहकार और अविनय की बात कर रहे हैं। आप तो परिवार का मुख्य ढांचे को ही तहस-नहस करने की बात कर रहे हैं कि पति को ही चलता कर दो।जनाब आप किस समाज में रहते हैं और किस समाज की बात कर रहे हैं?शायद उन मासूमों की मनोदशा का इन्हें भान भी नहीं होगा जो अलग हुये माँ बाप की देन है।उन बच्चों की मनोदशा कितनी दयनीय होती जरा उनसे जाकर मिले। शिक्षा,हुनर,हमें उदंड़ नहीं विनम्र बनाता।फिर तलाक अलग होना हमारे संस्कारों में नहीं हम तो हर जन्म में सात जन्मों तक साथ रहने का वादा करते हैं। अब आती है इनकी चौथी सलाह ----दोगुनी जिम्मेदारियां होने पर तनाव मत पालिए।....अगर लंच में चार व्यंजन नहीं बनाती तो ठीक है एक प्रकार के भोजन से भी पेट भरा जा सकता है।......हम भारतीय महिलाएं दोगुनी जिम्मेदारियों से नहीं घबराते हम तो दसगुनी जिम्मेदारी भी हँसते हुए निभा लेते हैं और जहाँ तक चार व्यंजनों की बात है तो वह हमारा शौक भी है,खुशी भी और प्रेम भी है।हम भोजन पेट भरने के लिए नहीं कराते यह हम अपनी आत्म तुष्ठी के लिए कराते हैं।इस पाक कौशल में हमारा प्यार ,स्नेह होता है जो हमारा परिवार जीवन भर याद रखता है,हमारे अतिथि हमारे भोजन के स्वाद और हमारी मेहमान नवाजी से हमें याद करते हैं और फिर हम तो चटनी -रोटी में भी स्वाद और खुशी ढूँढ लेते हैं। हम भारती महिलाओं को यूं हीं नहीं अन्नपूर्णा कहा गया है।हम नम्बर पाने के लिए नहीं अपनी आत्म संतुष्टि के लिए यह सब करते हैं। अब इनके द्वारा दी गई पांचवी सलाह--किसी अन्य महिला से अपनी तुलना या स्पर्धा मत कीजिए।यह बात मायने नहीं रखती कि उनके लिए कोई आपसे बेहतर स्क्रेबबुक लिखेगा।या कोई दूसरा बेहतर डाइट के जरिये जदा वजन कम करेगा।ऐसी कोई महिला नहीं जो आदर्श महिला हो।अगर आपसे कोई दूर जाना चाह रहा है तो यह उसकी गलती है आपकी नहीं ।....... तो सुनिए हमारा जबाव ,जीवन में अगर प्रतिस्पर्धा नहीं हो तो जीवन में उत्साह आगे बढ़ने की उमंग ही समाप्त हो जाएगी। जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा जरुरी है क्षैत्र कोई भी हो सकता है।अगर कोई हमसे दूर जा रहा है तो जरुरी नहीं की उसकी ही गलती हो हमारी भी गलती हो सकती है।फिर हमारे पास तो प्रेम,ममता,स्नेह और सबसे बड़ा क्षमा का महामंत्र है,हम अपने किसी को अपने से दूर करने या जाने का सोच भी नहीं सकते।और आपका कहना कि दुनिया में कोई महिला आदर्श ही नहीं तो अपनी इस छोटी सोच को अपने पास रखें।आपने तो हद ही कर दी महिलाओं के हितैषी बनते हुए महिला आदर्शों का प्रतिमान ही खत्म कर दिया ,हमारी माँ तो हमारी पहली आदर्श होती है ।हजारो लाखों महिलाएं हैं जिन्हें हम ही नहीं अपितु सारा समाज आदर्श मनता है।इस बात के लिए आपको विश्व भर की महिलाओं से क्षमा मांगनी चाहिए । रहा सवाल हमारे तनाव का तो भारतीय समाज अति संवेदनशील समाज है और फिर भारतीय महिलाएं वे तो अति से भी महाअति संवेदनशील होती हैं। हमारे तनाव तो घर परिवार के किसी सदस्य का चेहरा उदास है तो हमें तनाव,अगर सपने में भी किसी को देख भर लिया तो हमें तनाव,पास-पडोस की हर छोटी बड़ी बात पर हमें तनाव,भोजन करते समय ठसका लग जाये तो हमें तनाव कि जरुर कोई प्रिये भूखा होगा ,दूर कही गाय रभांती हो तो तनाव,पक्षियों के कलरव तक की पहचान होती है हमें ,कि वे खुशी से चहक रहीं हैं या उन पर कोई संकट आन पड़ा है।आधी रात को उठ कर देखती हैं कि बिल्ली- कुत्ता क्यों बोल रहे हैं हमें उसका भी तनाव होता है।सीमा पर तनाव हमें घर बैठे महा तनाव। हमारी सारी संवेदना सारी चिन्ता सरहद और सरहदों के पार तक पंहुच जाती हैं और यह तनाव ही है जो हमें अपनों के साथ-साथ प्राणी मात्र से जोड़े रखता है हमारे तनाव के कारण वो नहीं हैं जो आपने बताए।हमारे तनाव हमारी संवेदनाओं से जुड़े हैं।हमारा यही नैसर्गिक गुण हमें सबसे खूबसूरत और सबसे अलग बनाता है। हमारे इसी तनाव में कहीं दादी-नानी का आशीर्वाद छुपा होता है ,कहीं माँ का स्नेह ममता होती है तो कहीं पत्नी का प्रेम ,तो कहीं बहनों की दुआएं होती हैं तो बेटी की पुकार होती है।अगर दुनियाभर के सर्वे कर्ता इसे हमारा तनाव मानते हैं तो हम अपने तनाव से बहुत खुश हैं,हमें सलाह ना दें। इन सलाहों को देकर चेतन भारतीय महिलाओं को सबसे खुश और आनंदपूर्ण महिलाओं में देखना चाहते हैं।अगर भारतीय महिलाओं ने इनकी बात मानली तो धरती पर एक नर्क होगा और उसका नाम भारत नहीं "चेतन भगत "होगा । भारतीय महिलाओं के हित में!


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