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तलाक...! कारण कैसे—कैसे? कहीं चाय,कहीं मुहांसे,कहीं कपडे!

वामा            Aug 06, 2015


मल्हार मीडिया डेस्क आमतार पर विदेशों में तलाक के कारण बहुत छोटे होते थे और तलाक के आंकडे बडे। लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत में भी यही स्थिति बनने लगी है। कहीं मुहासे,कहीं कपडे तो कहीं सेक्स की ज्यादा मांग भारत में तलाक का कारण बनने लगी है। हाल के वर्षों में अलग होने वाले शादीशुदा लोगों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है। अगर आपसी सहमति या व्यभिचार का सबूत हो या फिर भारतीय क़ानून के अंदर आने वाले हिंसा या अन्य कारण हैं तो कोर्ट के द्वारा क़ानूनी रूप से तलाक़ की इजाज़त दी जा सकती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में तलाक़ के अधिकांश मामले का आधार हिंसा, जिसे क़ानूनी भाषा में ‘क्रूरता’ कहते हैं, होती है। लेकिन हिंसा के स्तर पर लंबे समय से बहस का मुद्दा बना हुआ है, ख़ासकर तब जब यह तय करने का मामला हो कि शादी में रहते हुए क्या एक इंसान को मानसिक सदमा पहुंचा? आख़िरकार, अदालतों को उन अजीबो ग़रीब दलीलों पर फ़ैसला सुनाना पड़ता है कि किसी चीज़ को ग़ैर शारीरिक हिंसा मानें। यहां कुछ उदाहरण हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, पिछले महीने, बांबे हाई कोर्ट ने साल 2011 में एक फ़ैमिली कोर्ट के उस आदेश को ख़ारिज कर दिया जिसमें एक भारतीय नौसैनिक को तलाक की इजाज़त दे दी गई थी। उसने अपनी पत्नी पर लगातार पार्टी करने का आरोप लगाया था। अन्य आरोपों में हिंसा का आरोप भी था। 42 साल के उस आदमी की शादी 1999 में हुई थी और वो भी मस्ती के लिए पार्टियों में जाने का आदी था। divorce-cartoon-003 कोर्ट ने कहा कि ये नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि महिला ने उस आदमी को किसी प्रकार से शारीरिक या मानसिक हिंसा का शिकार बनाया था। निचली अदालत का फ़ैसला ख़ारिज करते हुए जज एमएल ताहलियानी ने कहा, “आज के समाज में एक हद तक सामाजिक होना जायज़ है. और इसलिए क्रूरता के आधार पर पति तलाक़ लेने योग्य नहीं है। मुंबई मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक़, मुंबई में एक आदमी ने अपनी पत्नी के पोशाक पहनने की पसंद के आधार पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक़ मांगा। इस आदमी की उम्र 30 साल से अधिक थी और 2009 में इसकी शादी हुई थी। वो अपनी पत्नी से इसलिए नाराज़ था क्योंकि वो काम पर पारंपरिक भातीय पोशाक पहनने की बजाय शर्ट और पैंट पहन कर जाती थी। तीन साल पहले एक फ़ेमिली कोर्ट ने तलाक़ का आदेश जारी किया था लेकिन पिछले साल मार्च में, पिछले मामले की तरह ही बांबे हाई कोर्ट इस पर सहमत नहीं हुआ। मुंबई मिरर के मुताबिक़, अदालत ने कहा कि, “क्रूरता का दायरा इतना बड़ा नहीं बढ़ाया जा सकता, नहीं तो मिजाज़ न मिलने के हर मामले में तलाक़ देना पड़ेगा। ”टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक ख़बर के मुताबिक़, एक अन्य आदमी ने अपनी पत्नी से तलाक़ की अपील की और कारण बताया कि उसे पत्नी के मुंहासे से सदमा झेलना पड़ रहा है। अपने तलाक़ की अर्ज़ी में उसने तर्क दिया था कि उसकी पत्नी के चेहरे पर मुंहासे और दानों की वजह से 1998 में उसे अपने हनीमून के दौरान वैवाहिक संबंध बनाने में रुकावट आई थी। पति के पक्ष में फ़ैसला देते हुए साल 2002 में एक फ़ैमिली कोर्ट ने कहा कि, “बेशक डरावनी स्थिति पत्नी के लिए बहुत दुखद है लेकिन यह पति के लिए भी बहुत सदमा पहुंचाने वाली है। ”हालांकि पत्नी का इलाज कर रहे डॉक्टर ने कोर्ट को बताया कि यह बीमारी ठीक हो सकती है इससे उनकी वैवाहिक ज़िंदगी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। कोर्ट ने कहा, महिला ने अपनी बीमारी के बारे में पति को न बताकर, उसने अपने पति के साथ फ़्रॉड किया है। लेकिन साल 2008 में, जब यह मामला बांबे हाई कोर्ट में पहुंचा तो वहां यह ख़ारिज हो गया। हालांकि, भारत के हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक़, मुंहासे जैसी त्वचा की बीमारियां तलाक़ के आधार के रूप में मान्य नहीं हैं। जबकि कुष्ठ रोग और एड्स जैसी संक्रामक बीमारियां इसके दायरे में आती हैं। divorce-cartoon-oo2 दुनियाभर में आम तौर पर यौन असंतुष्टि तलाक़ का कारण है। लेकिन पिछले साल मुंबई में एक आदमी ने अपनी पत्नी से इस आधार पर तलाक़ की मांग की क्योंकि पत्नी की ओर से बहुत अधिक सेक्स की मांग की जाती थी। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, अपनी तलाक़ की अर्ज़ी में उसने अपनी पत्नी के बारे में कहा कि अप्रैल 2012 में जबसे शादी हुई है, वो “बहुत अधिक सेक्स और इसके प्रति कभी न संतुष्ट होने वाली महिला रही। ” उसने आरोप लगाया कि वो सेक्स के लिए तब भी मजबूर करती थी जब वो बीमार होता था और मना करने पर दूसरे आदमी के साथ सोने की धमकी देती थी। उसने कहा कि उसकी पत्नी का ‘क्रूर व्यवहार’ और उसके ‘अड़ियल, आक्रामक, ज़िद्दी और तानाशाही’ रवैये ने साथ रहने में मुश्किल पैदा कर दी थी। पिछले साल मुंबई की एक फ़ैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में फ़ैसला दिया और पत्नी के पेश ने होने पर उसे तलाक़ की इजाज़त दे दी। जबकि पति के आरोपों को कोई चुनौती नहीं मिली थी। साल 1985 में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निचली आदालत के उस फ़ैसले का सही ठहराया जिसमें कहा गया था कि पति के दोस्तों के लिए चाय बनाने से मना करने से पति ने अपमानित महसूस किया और अन्य मामलों के अलावा बिना बताए पत्नी द्वारा गर्भपात करा देना मानसिक प्रताड़ना के बराबर है और तलाक़ का पर्याप्त आधार है। बीबीसी


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