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पहली भारतीय महिला हाई कोर्ट जज को भी सहना पड़ा लैंगिक भेदभाव

वामा            Apr 23, 2015


मल्हार मीडिया ब्यूरो भारत की पहली महिला हाई कोर्ट जज लीला सेठ का कहना है कि उन्हें अपनी सेवा के शुरुआती वर्षों में लैंगिक भेदभाव का सामना करना पडा था, लेकिन उन्होंने दृढ रुख अपनाया और यह सीखा कि एक कनिष्ठ पद से शीर्ष पद तक कैसे पहुंचा जाता है। 84 वर्षीय लीला सेठ ने अपनी वकालत पटना उच्च न्यायालय में शुरू की और उसके बाद वह आयकर विभाग के लिए कनिष्ठ स्थायी वकील बन गयी। उन्होंने कलकत्ता जाने से पहले पटना में 10 वर्ष बिताये। अंतत: उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बसने का निर्णय किया जहां दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय दोनों स्थित हैं। उन्होंने कहा, दिल्ली में संवैधानिक और कर मामलों सहित कानून के सभी पहलुओं को लेकर पांच वर्ष तक वकालत करने के बाद मुझे जनवरी 1977 में उच्चतम न्यायालय का एक वरिष्ठ अधिवक्ता बना दिया गया। इसके बाद 25 जुलाई 1978 को मुझे दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया। उन्होंने हाल में पत्रिका ‘‘द इक्वेटर लाइन’’ में लिखे एक लेख में लिखा है, परंपरा यह थी कि नया न्यायाधीश शपथ ग्रहण करने के बाद मुख्य न्यायाधीश के साथ अदालत में बैठेगा ताकि वह उसके अनुभव से लाभ प्राप्त कर सके। यद्यपि मुख्य न्यायाधीश अपने रुढिवादी विचारों के चलते किसी महिला के साथ बैठने को लेकर आशंकित थे, क्योंकि इसका मतलब न केवल साथ में खुली अदालत में बैठना था बल्कि चर्चा और निर्णय के लिए बंद चैंबर में भी साथ बैठना पडता। लीला सेठ ने लिखा कि मुझसे कहा गया कि उन्होंने कहा है मैं यह नहीं कर सकता। ‘इसलिए मैं एक वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ बैठी. वह सहज थे और उन्होंने बारीकी से सिखाया कि कैसे एक नौसिखिये से एक निर्णायक तक की भूमिका में पहुंच सकते हैं। सेठ कहती है कि जब वकील उन्हें ‘माई लॉर्ड’ कहकर संबोधित करते थे तो वह सहज महसूस नहीं करती थीं। उन्होंने लिखा है, ‘‘मेरे अधिकतर न्यायाधीश भाई बाहरी लोगों से मेरा परिचय कराते समय कहते थे, ‘हमारी नयी महिला न्यायाधीश से मिलिये। जैसे मेरा महिला होना दृष्टिगोचर नहीं था। इसके साथ ही किसी समारोह आदि में वे चाहते थे कि मैं चाय की व्यवस्था संभाल लूं। लीला ने यह भी दावा किया है कि जब वह दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश थीं तब एक शीर्ष न्यायाधीश ने एक बार उनसे टेलीफोन पर बडे ही आक्रामक तरीके से बात की थी। उन्होंने कहा, मैंने अपना विरोध दर्ज कराया। पांच अगस्त 1991 को लीला सेठ को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश के रुप में शपथ दिलायी गयी. इसके साथ ही वह भारत में किसी राज्य की पहली महिला न्यायाधीश बन गयी।


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