एकता शर्मा।
समाज में आज महिलाएं शिक्षित होने के बावजूद अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ रहती हैं! सिर्फ शिक्षित या अशिक्षित महिलाएं ही नहीं! समाज का एक बड़ा वर्ग भी अपने कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होता! महिलाएं आज हर क्षेत्र में कामयाबी की बुलंदियां छू रही हैं। हर जगह अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। इसके बावजूद उन पर होने वाले अन्याय, बलात्कार, प्रताड़ना, शोषण आदि में कोई कमी नहीं आई! कई बार तो उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी तक नहीं होती।
घरेलू हिंसा (डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005)
- शादीशुदा या अविवाहित स्त्रियाँ अपने साथ हो रहे अन्याय व प्रताड़ना को घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत दर्ज कराकर उसी घर में रहने का अधिकार पा सकती हैं जिसमे वे रह रही हैं। यदि किसी महिला की इच्छा के विरूद्ध उसके पैसे, शेयर्स या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किया जा रहा हो तो इस कानून का इस्तेमाल करके वह इसे रोक सकती है। साथ ही किसी महिला की कुरूपता पर टिपण्णी करने या बेटा पैदा नहीं करने का ताना दिया जाए और वो उससे परेशान हो तो इस कानून के तहत न्याय मांग सकती है । इस कानून के तहत घर का बंटवारा कर महिला को उसी घर में रहने का अधिकार मिल जाता है और उसे प्रताड़ित करने वालों को उससे बात तक करने की इजाजत नहीं दी जाती! विवाहित होने की स्थिति में अपने बच्चे की कस्टडी और मानसिक, शारीरिक प्रताड़ना का मुआवजा मांगने का भी उसे अधिकार है। घरेलू हिंसा में महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचार के लिए सीधे न्यायालय से गुहार लगा सकती है, इसके लिए वकील को लेकर जाना जरुरी नहीं है। अपनी समस्या के निदान के लिए पीड़ित महिला- वकील प्रोटेक्शन ऑफिसर और सर्विस प्रोवाइडर में से किसी एक को साथ ले जा सकती है और चाहे तो खुद ही अपना पक्ष रख सकती है। इसके अलावा अपने क्षेत्र की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को जानकारी देकर भी प्रकरण दर्ज करा सकती है ।
दहेज़ प्रताड़ना
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 (ए) के तहत किसी भी शादीशुदा महिला को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करना कानूनन अपराध है। इसके अलावा दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम के अंतर्गत भी दहेज़ प्रताड़ना से सम्बंधित प्रावधान है । जिसमे दहेज़ लेना और देना दोनों अपराध बनाये गए है।
तलाक का अधिकार
हिन्दू विवाह अधिनियम १९९५ के तहत निम्न परिस्थितियों में कोई भी पत्नी अपने पति से तलाक ले सकती है। पहली पत्नी होने के वावजूद पति द्वारा दूसरी शादी करने पर, पति के सात साल तक लापता होने पर, परिणय संबंधों में संतुष्ट न कर पाने पर, मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने पर, धर्म परिवर्तन करने पर, पति को गंभीर या लाइलाज बीमारी होने पर, यदि पति ने पत्नी को त्याग दिया हो और उन्हें अलग रहते हुए दो वर्ष से अधिक समय हो चुका हो तो!
तलाक के बाद महिला को गुजारा भत्ता, स्त्रीधन और बच्चों की कस्टडी पाने का अधिकार भी होता है, लेकिन इसका फैसला साक्ष्यों के आधार पर अदालत ही करती है।
भरण पोषण का अधिकार
तलाक की याचिका पर शादीशुदा स्त्री 'हिन्दू मैरेज एक्ट' के सेक्शन-24 के तहत गुजारा भत्ता ले सकती है| तलाक लेने के निर्णय के बाद सेक्शन-25 के तहत परमानेंट एलिमनी लेने का भी प्रावधान है। विधवा महिलाएं यदि दूसरी शादी नहीं करती हैं, तो वे अपने ससुर से मेंटेनेंस पाने का अधिकार रखती हैं। यदि पत्नी को दी गई रकम कम लगती है, तो वह पति को अधिक खर्च देने के लिए बाध्य भी कर सकती है। गुजारे भत्ते का प्रावधान 'एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट' में भी है।
सीआरपीसी के सेक्शन 125 के अंतर्गत वैध पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार मिला है। बशर्ते वह किसी योग्य कारण से पति से अलग रह रही हो । तथा खुद अपना भरण पोषण करने में सक्षम नहीं हो। जिस तरह हिन्दू महिलाओं को ये तमाम अधिकार मिले हैं, उसी तरह या उसके समकक्ष या समानांतर अधिकार अन्य महिलाओं (जो कि हिन्दू नहीं हैं) को भी उनके पर्सनल लॉ में उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग वे कर सकती हैं।
बच्चे की कस्टडी का अधिकार
यदि पति बच्चे की कस्टडी पाने के लिए कोर्ट में पत्नी से पहले याचिका दायर कर दे, तब भी महिला को बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है। पति की मृत्यु या तलाक होने की स्थिति में महिला अपने बच्चों की संरक्षक बनने का दावा कर सकती है!
- भारतीय कानून के अनुसार, गर्भपात कराना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन गर्भ की वजह से यदि किसी महिला के स्वास्थ्य को खतरा हो तो वह गर्भपात करा सकती है। ऐसी स्थिति में उसका गर्भपात वैध माना जाएगा। कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे गर्भपात के लिए बाध्य नहीं कर सकता! यदि वह ऐसा करता है तो महिला कानूनी दावा कर सकती है।
लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े अधिकार
लिव इन रिलेशनशिप में महिला पार्टनर को वही दर्जा प्राप्त है, जो किसी विवाहिता को मिलता है। लिव इन रिलेशनशिप संबंधों के दौरान यदि पार्टनर अपनी जीवनसाथी को मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना दे तो पीड़ित महिला घरेलू हिंसा कानून की सहायता ले सकती है। लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुई संतान वैध मानी जाएगी और उसे भी संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार होगा। पहली पत्नी के जीवित रहते हुए यदि कोई पुरुष दूसरी महिला से लिव इन रिलेशनशिप रखता है तो दूसरी पत्नी भी गुजाराभत्ता पाने के लिए न्यायालय में आवेदन लगा सकती है।
बच्चों से सम्बंधित अधिकार
प्रसव से पूर्व गर्भस्थ शिशु का लिंग जांचने वाले डॉक्टर और गर्भपात कराने का दबाव बनानेवाले पति दोनों को ही अपराधी करार दिया जायेगा| लिंग की जाँच करने वाले डॉक्टर को 3 से 5 साल का कारावास और 10 से 15 हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है। लिंग जांच का दबाव डालने वाले पति और रिश्तेदारों के लिए भी सजा का प्रावधान है। हिन्दू मैरेज एक्ट1955 के सेक्शन-26 के अनुसार, पत्नी अपने बच्चे की सुरक्षा, भरण-पोषण और शिक्षा के लिए भी निवेदन कर सकती है। 'हिन्दू एडॉप्शन एंड सेक्शन एक्ट' के तहत कोई भी वयस्क विवाहित या अविवाहित महिला बच्चे को गोद ले सकती है। यदि महिला विवाहित है तो पति की सहमति के बाद ही बच्चा गोद ले सकती है। दाखिले के लिए स्कूल के फॉर्म में पिता का नाम लिखना अब अनिवार्य नहीं है। बच्चे की माँ या पिता में से किसी भी एक अभिभावक का नाम लिखना ही पर्याप्त है।
जमीन जायदाद से जुड़े अधिकार
विवाहित या अविवाहित, महिलाओं को अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का हक है। इसके अलावा विधवा बहू अपने ससुर से गुजारा भत्ता व संपत्ति में हिस्सा पाने की भी हकदार है। हिन्दू मैरेज एक्ट 1955 के सेक्शन-27 के तहत पति और पत्नी दोनों की जितनी भी संपत्ति है, उसके बंटवारे की भी मांग पत्नी कर सकती है। इसके अलावा पत्नी के अपने ‘स्त्री-धन’ पर भी उसका पूरा अधिकार रहता है।
1954 के हिन्दू मैरेज एक्ट में महिलाएं संपत्ति में बंटवारे की मांग नहीं कर सकती थीं, लेकिन अब कोपार्सेनरी राइट के तहत उन्हें अपने दादाजी या अपने पुरखों द्वारा अर्जित संपत्ति में से भी अपना हिस्सा पाने का पूरा अधिकार है। यह कानून सभी राज्यों में लागू है।
- अन्य समुदायों की महिलाओं की तरह मुस्लिम महिला भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने की हक़दार है। मुस्लिम महिला अपने तलाकशुदा पति से तब तक गुजारा भत्ता पाने की हक़दार है जब तक कि वह दूसरी शादी नहीं कर लेती। (संदर्भ : शाह बानो प्रकरण)
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६ के तहत, विधवा अपने मृत पति की संपत्ति में अपने हिस्से की पूर्ण मालकिन होती है। पुनः विवाह कर लेने के बाद भी उसका यह अधिकार बना रहता है। यदि पत्नी-पति के साथ न रहे तो भी उसका दाम्पत्य अधिकार कायम रहता है। यदि पति-पत्नी साथ नहीं भी रहते हैं या विवाहोत्तर यौन संपर्क नहीं हुआ है, तो भी दाम्पत्य अधिकार के प्रत्यास्थापन (रेस्टीट्यूशन ऑफ़ कॉन्जुगल राइट्स) की डिक्री पास की जा सकती है।
कामकाजी महिलाओं के अधिकार
इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट रूल-5, शेड्यूल-5 के तहत यौन संपर्क के प्रस्ताव को न मानने के कारण कर्मचारी को काम से निकालने व एनी लाभों से वंचित करने पर कार्रवाई का प्रावधान है। समान काम के लिए महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन पाने का अधिकार है।
धारा 66 के अनुसार, सूर्योदय से पहले (सुबह ६ बजे) और सूर्यास्त के बाद (शाम ७ बजे के बाद) काम करने के लिए महिलाओं को बाध्य नहीं किया जा सकता। भले ही उन्हें ओवरटाइम दिया जाए, लेकिन कोई महिला यदि शाम 7 बजे के बाद ऑफिस में न रुकना चाहे तो उसे रुकने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। ऑफिस में होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ महिलायें शिकायत दर्ज करा सकती हैं|
प्रसूति सुविधा अधिनियम 1961 के तहत, प्रसव के बाद महिलाओं को तीन माह की वैतनिक मेटर्निटी लीव दी जाती है। इसके बाद भी वे चाहें तो तीन माह तक अवैतनिक मेटर्निटी लीव ले सकती हैं।
पुलिस स्टेशन से जुड़े विशेष अधिकार
सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद किसी भी तरह की पूछताछ के लिए किसी भी महिला को पुलिस स्टेशन में नहीं रोका जा सकता! पुलिस स्टेशन में किसी भी महिला से पूछताछ करने या उसकी तलाशी के दौरान महिला कॉन्सटेबल का होना जरुरी है। महिला अपराधी की डॉक्टरी जाँच महिला डॉक्टर करेगी या महिला डॉक्टर की उपस्थिति के दौरान कोई पुरुष डॉक्टर! किसी भी महिला गवाह को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन आने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता! जरुरत पड़ने पर उससे पूछताछ के लिए पुलिस को ही उसके घर जाना होगा।
अधिकारों से जुड़े कुछ मुद्दे
मासूम बच्चियों के साथ बढ़ते बलात्कार के मामले को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर महत्वपूर्ण निर्देश दिया है। अब बच्चियों से सेक्स करने वाले या उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेलने वाले लोगों के खिलाफ बलात्कार के आरोप में मुकदमें दर्ज होंगे! क्योंकि, 'चाइल्ड प्रोस्टीट्यूशन' बलात्कार के बराबर अपराध है।
कई बार बलात्कार की शिकार महिलायें पुलिस जाँच और मुकदमें के दौरान जलालत व अपमान से बचने के लिए चुप रह जाती हैं। सरकार ने सी. आर. पी. सी. में दिल्ली निर्भया काण्ड के बाद कुछ संशोधन किये हे जो इस प्रकार है : बलात्कार से सम्बंधित मुकदमों की सुनवाई महिला जज ही करेगी। ऐसे मामलों की सुनवाई दो महीनों में पूरी करने के प्रयास होंगे। बलात्कार पीडिता के बयान महिला पुलिस अधिकारी ही दर्ज करेगी। बयान पीडिता के घर में उसके परिजनों की मौजूदगी में लिखे जाएंगे! साथ ही बलात्कार पीड़िता को किसी भी असपताल में तुरंत मुफ़्त इलाज दिया जाएगा । और यदि कोई डॉक्टर इलाज से इनकार करता है तो उसके खिलाफ कार्यवाही का भी प्रावधान है।
(लेखिका स्वतं. पत्रकार और कानून की जानकार हैं)
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