ये कवितायें आपको कचोटेंगी आपके मन को कुरेदेंगी बहुत भीतर तक

वामा            Aug 11, 2016


प्रकाश हिन्दुस्तानी। 'कवि हूँ, आदिवासी हूँ, संघर्षों भरी अपनी कथा है।" प्राइवेट स्कूल में टीचर। अलीराजपुर में स्कूल और बस्तर विश्विद्यालय में पढ़ना बताया है उन्होंने।'' बस यही परिचय दिया है दोपदी ने अपना। मैंने उनकी कभी कोई किताब पढ़ी तो क्या देखी भी नहीं। मैं उनसे कभी मिला नहीं। संयोग से फेसबुक पर उनकी पोस्ट की हुई कविताएँ पढ़ीं और फिर पढ़ता चला गया। मुझे लगता है कि ये सभी कविताएँ नायाब हैं और स्त्री, आदिवासी समाज और आदिवासी समाज की स्त्री के बारे में बहुत कुछ कह रही हैं।

15 अगस्त बासी भात खाके भागे भागे पहुँचे ठेकेदार न इंजिनीर था दो तीन और मजूर बीड़ी फूँक रहे थे दो एक ताड़ी पीके मस्ताते थे

ठेकेदार बोला आज १५ अगस्त है गांधी बाबा ने आजादी करवाई है आज आज परब मानेगा आज त्योहार मनेगा

आज खुशी की छुट्टी होगी आज काम न होगा

गाँठ में बँधा था सत्रह रूपैया घर के भांडे खाली

'बाऊजी अदबांस दे दो कल की पगार रोटी को हो जाए इतना दे दो कुछ काम करा लो लाओ तुम्हारा पानी भर दूँ लाओ तुम्हारा चिकन बना दूँ लाओ रोटी सेंक दूँ'

डरते डरते बोली मैं तो वो बोला 'भाग छिनाल रोज माँगने ठाढ़ी हो जाती है माथे पे

आजादी आज त्योहार है खुशी की बात हो गई ये मंगती भीख माँगने हमेशा आ जाती है

जा जाके त्योहार माना गांधीबाबा ने आजादी जो करवाई है उनको जाके पूज गँवार दारी'

सत्रह रुपए खरचके मैंने आजादी का परब मनाया

सुना है दूर दिल्ली में नई लिस्ट आई है सत्रह रूपैया जिनकी गाँठ है उनको सेठ ठहराया है

सेठानी जी ओ दोपदी तुमने सत्रह रुपए का आटा नोन लेके गजब मनाई आजादी।

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मैं कौन हूँ

बकरी पटवारी के पास नहीं गई बकरी होने का सर्टिफ़िकेट लेने गाय नहीं गई पटवारी के पास गाय हूँ ऐसा सर्टिफ़िकेट लेने भैंस नहीं गई हिरनी नहीं गई ऊँठनी नहीं गई मोरनी नहीं गई कुतिया नहीं गई मगर हम जंगल की नार कहा एक नारी ने 'कुतिया जा जाके अपने आदिवासी होने का सर्टिफ़िकेट ला जा जाके औरत होने का सर्टिफ़िकेट ला' बताओ ज्ञानी ध्यानी सभी पिरानी कोई औरत होने का सर्टिफ़िकेट कैसे दे जो पेटीकोट दरोग़ा ने नहीं उतारा वो कविता करने वाले वो कविता पढ़ने वाले वो कोमल मन के जीवों ने कहा उतारो और बताओ दुनिया को कि तुम औरत हो कि आदिवासी हो कि कविता लिखती हो कि तुम्हारे संग रेप हुआ है कि तुम्हारी औलाद मरी है कि तुम मजूर हो कविलोग और पढ़नेवालों सुन लो देके कान मैं कुतिया हूँ मैं कुतिया हूँ मैं क्रीम नहीं लगाती मैं काली कुतिया हूँ।

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संविधान

औरत के बहुत अधिकार है ऐसा अम्बेडकर जी संविधान नाम की पोथी में लिख गए है औरत के बहुत अधिकार है 1. औरत उसी टेम नंगी हो जाए जब उसका आदमी कहे 2. आदमी अगर कहे तो औरत दूसरे आदमी के आगे मिनट भर में नंगी हो जाए 3. औरत जेठ के आगे देवर के आगे नंदोई के आगे नेता के आगे अफ़सर के आगे मास्टर के आगे डॉक्टर के आगे वक़ील में आगे पंसारी के आगे पुलिस के आगे जज के आगे पंच के आगे पटवारी में आगे नंगी हो जाए 4. औरत का अधिकार है कि वह अगर नंगी न होना चाहे तो मर जाए 5. औरत हमेशा शरीर ढँकके रखे या बलात्कार करवाए 6. औरत का अधिकार है कि वह बलात्कार का मजा ले और पुलिस में न जाए 7. औरत को बलात्कार करवाने पर सरकार २५००० रुपए का ईमान देगी 8. औरत गाली खाए 9. औरत बंदरिया जैसी जब चाहे नाच दिखाए और भाड़ में जाए 10. औरत तुलसी बाबा के भजन मंदिर में जाके गाए अम्बेडकर की पोथी में यह सब लिखा है सब अधिकार सरकार और समाज ने दिए है ऐसा हम औरतों को अपनी आँख से दिखा है ।

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रात

कनस्तर में आधा किलो आटा था फैला दिया साब दो टेम की मेरी रोटी थी आटे में बारूद छुपाई है क्या कहते हो बारूद आटे में नहीं हम माथे में छुपाते है - लोहा हड्डियों में हमें भी यह धरती प्यारी है हमें भी धान प्यारा है नरमदा हमारी भी मैया है मटका लात मारी फोड़ दिया तमंचा पानी में कौन छुपाता है मंदिर के कुएँ से लाई पंडितजी एक टेम ही भरने देते है गोदड़ियाँ फाड़ दी रेडीओ फेंक दिया जब कुछ न मिला तो फोड़ दिया आदमी का सर तूने खून छिपाया है तूने आग छिपायी है तूने प्रेम तूने जीने की आस छुपाई है तूने सरकार गिराने का पिलान छिपाया है बहता रहा खून देर तक उन्होंने पानी पिया उन्होंने हँसी उड़ाई हमने लौकी अकेली उबाल में खाई ऐसे रात बिताई।

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रेप

'तेरा रेप हुआ या पचीस हजार को आई है' बोला हँसा और बोला 'तेरा रेप कौन करेगा सतयुग में दोपदिया पाँच खसम किए है कलयुग पचास करेगी तेरा रेप हुआ है झूठी मक्कार काला कालूटा बदन देख अपना बासभरी बालभरी बगलें सूंघ अपनी तू कहती है तेरा रेप हुआ है कल बोलेगी बच्चा होगा परसों बोलेगी मेरा है पंच का है सरपंच का तेरा रेप हुआ है हँसा बोला हँसा 'तू सनसनी फैलाने आई है हमें डराने आई है नेता बनने आई है रूपैया बनाने आई है अपने खसम का मुँह देख बम्मन ने जो रेप किया दरबार ने रेप किया तो तुझपे अहसान किया तेरी सात पीढ़ी तारी है तू कहती है तेरा रेप हुआ है' कहा नहीं कुछ बस जरा आँख डबडबाई मुँह ही मुँह बड़बड़ाई 'नहीं साब बच्चा नहीं होगा अब बिदरोह होगा आज लिख भी सकूँ न पूरा शब्द सही सही एक दिन ऐसा आएगा जब कोई किसी का हाथ खींचके बलात्कार न करने पाएगा।

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बोलबात

सुना है दूर दिल्ली में सरगनाओं की बैठक जमी है बीड़ी-सिगरेट चाय-दारू पी पीकर 'कौन है ये दोपदी?' 'ये मर्द है, औरत के पास जीभ नहीं जो कविता बनाए औरत के पास बस बच्चादानी होती है।' 'अरे भई ये सवर्न है बम्मन बनिया है दलित आदिवासी जंगल में चरनेवाले मैला ढोने वाले गधा-दिमाग़ वो क्या जाने कविताई' 'छिनाल है जी छिनाल मर्दों के मुँहलगी है इससे कविता करती है' दोपदिया के हाथ तोड़ दो वो चुप न होगी इस रांड का मुँह तोड़ वो चुप न होगी इसका रेप करो इसकी बिटिया उठवा लो इसको थाने बुलवा लो वो चुप न होगी लाओ लाओ गोली लाओ गोली से भी चुप न होगी एक मारोगे सौ जागेंगी हजार आएँगी पचास हजार आएँगी लाख आएँगी करोड़ आएँगी न सिपाही से डर से न नेताजी के डर से दोपदी चुप न होगी चिल्लाती रहेगी लड़ती रहेगी जन्म लेगी बार बार बात कहेगी मरती रहेगी।

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पेटीकोट

नहीं उतारा मैंने अपना पेटीकोट दरोगा ने बैठाये रखा चार दिन चार रात मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट मेरी तीन साल की बच्ची अब तक मेरा दूध पीती थी भूखी रही घर पर मगर मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट मेरी चौसठ साल की माँ ने दिया उस रात अपना सूखा स्तन मेरी बिटिया के मुंह में मगर मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट. नक्सल कहकर बैठाया रखा चार दिन चार रात बोला, 'बीड़ी लेकर आ' बीड़ी का पूड़ा लेके आई 'चिकन लेके आ रंडी' चिकन ले के आई 'दारू ला' दारू लेके आई. माफ़ करना मेरी क्रांतिकारी दोस्तों मैं सब लाई जो जो दरोगा ने मंगाया मेरी बिटिया भूखी थी घर पर दरोगा ने माँगा फिर मेरा पेटीकोट मैं उसके मुंह पर थूक आई भागी, पीछे से मारी उसने गोली मेरी पिंडली पर मगर मैंने उतारा नहीं अपना पेटीकोट।

पेटीकोट - 2

आपने बताया है आदिवासी औरत पेटीकोट नहीं पहनती आदिवासी औरत पोल्का नहीं पहनती एक चीर से ढँक लेती है शरीर आप सर आप मेडम आप सदियों से नहीं आए हमारे देस आपने कहा बैठा नहीं सकता कोई दरोगा किसीको चार दिन चार रात थाने पर आप सर आजादी से पहले आए होगे हमारे गाँव वो आजादी जो आपके देश को मिली थी 1947 में आप नहीं आए हमारे जंगल आपको नहीं पता पखाने न हो तो हम औरतें नहीं छोड़ती अपने खसम कि दो रोटी लाता है रात को एक टेम लाता है पर लाता है लात मारता है पर रोटी लाता है रोटी है तो दूध है दूध है तो मेरा बच्चा आप नहीं आए हमारे गाँव नहीं तो पूछते क्यों औलाद से माया रखती है दोपदी क्या करेगा तेरा बच्चा भूखा दिन काटेगा जंगल जंगल भटकेगा और मरेगा आप नहीं आए हमारे गाँव नहीं तो बताती ये जंगल बचाएगा ये जानवर बचाएगा ये गोली खाएगा ये किसी आदिवासन को लेकर भाग जाएगा यहीं हमारी रीत है आप नहीं आए हमारे गाँव नहीं तो बताती कि जो लोग आते है आपकी तरफ से उनकी निगाह बड़ी लम्बी है आप एक चीर से शरीर ढाँकने की बात करते हो हम पेटीकोट पोल्के में नंगे दिखते है

आप जरूर ही नहीं आए हमारे गाँव।

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मन की बात

प्रधानजी जब तब रेडियो पर बताते हो मन की बात कि मन लगाके पढ़ो आगे बढ़ो काला धन मत रखो आप किससे बात करते हो प्रधान जी सेठलोग रेडियो कहाँ सुनते वो तो देखते है सेठानियों का नाच उनके घर टीवी है और हमारे बच्चे नहीं करते परीक्षा का टेंसन उन्हें पैदा होते ही पता होता है कि उन्हें तो फेल होना है हमारे यहाँ कोई आत्महत्या नहीं करता प्रधानजी यहाँ हत्याएँ ही होती है बता आते है आपको मामाजी कि सुसेड हो गई प्रधानजी आपने बताया था कि सबको काले धन का पंद्रह हजार रुपया दोगे सेठों की पेटी गाँव देहात के हवाले करोगे आप पुल बनवा दो आप उससे अस्पताल खुलता दो आप स्कूल चला दो बातों से बात नहीं बनती आप हमें बस पढ़ने लिखने लायक हो जाए ऐसा मास्टर भिजवा दो रूपिया तो हम जुटा लेंगे धरती देगी जंगल देगा महुआ नीम करोन्दा देंगे मामाजी से कहना हमारी लाड़लियों को साइकल नहीं चाहिए पैर चाहिए खड़े होने को और अटल बिहारी सड़क जाती है मसान, कच्चा मसान था गाँव में तो लोग बरसात में सड़क को करते है मसान बाकी साल उसपर भूत नाचते है प्रधान जी हमारी मन की बात भी कभी सुनना अकेले में जो चिंता करते हो इतनी देश की उसमें गुनना।

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फटफटी चलाने का सपना

शर्माती थी पहले कहते अब नहीं शर्माऊँगी, अपना सपना बताते क्या शरम फटफटी दौड़ाने का सपना है मेरा मेड़ मेड़ दौड़ाऊँगी किसी का खेत नहीं उजाड़ूँगी जैसे उजाड़ती है सरकार किसी का सर नहीं फोड़ूँगी जैसे फोड़ते है सेठों के लाल मोनु बोला मम्मी तू पागल है विधायक मंत्री लोग हवाई जहाज में आते जाते है तू फटफटिया दौड़ाने का सपना सजाती है दुनिया किधर से कहाँ पहुँच गई तुम चलाते थे फटफटी माँग माँग के साइकल से भी धीमी, माथा फटने से भय खाते थे फिर कैसे कर दिया माथा अपना फोड़ो फोड़ो, अब माथा फोड़के सपना तोड़ न पाओगे मोनु मरना और मारना लेकिन डरना मत लड़ना, लड़ते रहना और तू डरना मत सपने को मत मरने देना उनको मर्डर करने देना पर तू मरना मत जब वारंट निकलेगा हम फटफटी पर भाग जाएँगे मगर फटफटी कहाँ से लाएँगे आओ आओ सपना देखे कि खरचा इस पर न धेला न सिक्का बस अपनी गर्दन कटवाना है सरकारों की कालर पकड़के अपने सपने पूरे करवाना है।

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सलवार की गांठ

अम्मा ने समझाया बार-बार जिनगी में बहुत जरूरी हो गयी गांठ खींच कर लगाई गांठ पर गांठ बांध-रखना अच्छे से खुल न जाये यहाँ- वहां खेलते- कूदते हुए उठते बैठते हुए ,आते समय ,जाते समय देख लेना, समझ लेना, जान लेना, बूझ लेना टोय टोय लेना गांठ, कस कस लेना गांठ सखी दोपदी ! कैसे बताऊँ अम्मा को! कैसे समझाऊं अम्मा को! खेत में, खलिहान में, रास्ते में, स्कूल में परिवार में, पड़ोस में गांव में देश में कितनी तेज़ तेज़ धार वाली आँख बाँधू संभालू लाख कहाँ- कहाँ ! कैसे-कैसे!! खुल-खुल जाती गांठ खोल खोल दी जाती गांठ अम्मा लगाती जाती गांठ पर गांठ खुल खुल जाती गांठ खोल दी जाती गांठ।

आग

कविता अब नारा बना ली जाएगी कविता अब झगड़ा बना ली जाएगी कविता को नाव बना लूँगी और पार करूँगी पदुमा जिसके ऊपर पुल नहीं बनाया कविता को इस्कूल बना लूँगी और तैयार करूँगी ऐसे बच्चे जो सवाल उठाएँगे जो मना करेंगे जो फ़रार होंगे जो प्रेम करेंगे कविता को बिस्तर बना लूँगी और सोऊँगी दिनभर की मजूरी-मारपीट के बाद कविता को दूध बनाऊँगी बेटा तुझे पिलाऊँगी कविता को रोटी बनाऊँगी गाँव भर दुनिया भर को जिमाऊँगी पापा सुन लो कविता को खसम करूँगी मैं और कविता को रख दूँगी जहाँ अपनी बिटिया की लाश रखी थी दिया नहीं कविता जलाऊँगी मैं जिसने सोलह साल में देख ली नौ मौत छह डिलेबरियाँ उसके लिए अँधेरा कविता है मार कविता है झगड़ा कविता है घाव कविता है घर कविता है तुम लोगों को बहुत परनाम कविता बनाना बतलाया इस कविता से मिज़स्ट्रेट के दफ़्तर आग लगाऊँगी मैं ।

@दोपदी सिंघार (https://www.facebook.com/dopadi.singhar?fref=tsकी फेसबुक वाल से साभार) 10 Aug 2016


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