सम्मान लौटाना समाज और पाठक का तिरस्कार करने जैसा:कुसुम त्रिपाठी

वामा, वीथिका            Oct 20, 2015


राहुल चौकसे ‘लेखन को समाज सराहता है फिर उसके बाद प्रतिष्ठित मंच समाज के आइने के रुप में आपको अपने मंच से सम्मानित करता है। सम्मान को लौटाना समाज और पाठक का तिरस्कार करने बराबर है और मैं इसे गलत मानती हूं।’ यह कहना है वर्ष 2009-10 में अपनी किताब ‘समाजवादी देशों की महिलाएं और सिंहावलोकन’ पर साहित्य अकादमी पुरुस्कार प्राप्त समाजसेवी व महिला मुद्दों पर कार्य कर रही लेखिका कुसुम त्रिपाठी का। महिला मुद्दों पर 18 किताबें लिख चुकीं व कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों से जुड़ी मूलत: मुंबई निवासी श्रीमती त्रिपाठी जेंडर सेंसिटीविटी विषय पर भाग लेने भोपाल आई थीं। इसी दौरान हुई मल्हार मीडिया की कुसुम त्रिपाठी से बातचीत महिला मुद्दों पर आपके योगदान के बारे में बताइये? मुंबई में वर्ष 1979 में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान पुलिसकर्मियों द्वारा मथुरा रेप केस में आवाज उठाई। उसके बाद महाराष्ट्र में दहेज, स्त्रीधन,रेप केस, घरेलू हिंसा, परित्यक्ता आंदोलन, रखैलों से होने वाली औलादों को संपत्ति के हक पर काम किया। अ•ाी •ाी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठा रहे हैं। आपके द्वारा लिखी गई 18 किताबों में क्या खास है? इतिहास में अधिकतर पुरुषों को नायक रखकर लिखा गया है। इसे ‘ही-स्टोरी’ भी कहा जा सकता है। मैंने अपने शोध से महिलाओं के योगदान को उभारते हुए इतिहास को लिखने की कोशिश की है। ‘शी-स्टोरी’ मेरे लेखन में आपको दिखेगी। महिलाओं की वर्तमान दशा कैसे देखती हैं आप? वर्तमान परिदृश्य में महिलाएं बाजारवाद में उत्पाद हो गर्इं हैं। साम्प्रादायिक में सबसे ज्यादा पीड़ित भी महिलाएं होती हैं। सुप्रीम कोर्ट का डांस बार का फैसला फिर महिलाओं को मनोरंजन के लिए बाजार को उपलब्ध करवाएगा। पूंजीवाद में भी महिलाओं को समान अवसर नहीं मिल रहा है। महिलाएं अब भी छलावे की शिकार हैं और स्थिति ठीक नहीं है। श्रम उद्योग में कांट्रेक्ट पर महिलाओं का ही सबसे ज्यादा शोषण हो रहा है। महिला हितोें की रक्षा में कानून और न्याय व्यवस्था पर क्या कहेंगी आप? कानून और न्याय व्यवस्था सही है पर जमीनी स्तर सच्चाई उलट है। पीड़िताओं के प्रति संवेदनशीलता नहीं है। जांच और पूछताछ में फूहड़ता और घिनौनापन होता है। अधिकतर जांच पुरुष अधिकारी ही करते हैं। सवालों का स्तर इतना निम्न होता है कि गैर-पीड़ित भी शरमा जाए। यहां बड़ा बदलाव जरुरी है।


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