नवीन रंगियाल।
मनोरंजन, कटाक्ष और व्यंग्य से स्वास्थ्य ठीक रहता है, इसका जीवन में होना बेहद महत्वपूर्ण है।
किसी ने कहा भी है ‘Comedy is a serious business ’. इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए, लेकिन जब यह बेहद गंभीर जेस्चर, सचमुच ‘कॉमेडी’ हो जाए तो इसके अपने खतरे भी हैं, इसके अपने नुकसान हैं. यह ‘कॉमेडी’ एक गंभीर ‘खतरा’ है।
जब कर्नाटक के कांग्रेस नेता केआर रमेश कुमार ने विधानसभा में कहा, ‘जब बलात्कार रोक ना पा रहे हों तो लेट जाओ और इसका आनंद लो ’
अगर कोई इस बयान में भी बहस की गुंजाइश को देखता है तो शायद अब हम मनुष्य नहीं रहे।
अगर कोई न्यूज चैनल आज शाम को अपने प्राइम टाइम में इस विषय पर बहस कराएगा तो मैं सचमुच हैरान होऊंगा।
ठीक उसी तरह, जब रमेश कुमार के इस बयान के बाद विधानसभा में हंसी के ठहाकों से हैरान हूं।
बहरहाल, इस टिप्पणी या बयान की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है, क्या इस टिप्पणी का कोई जवाब, कोई बचाव या इस पर कोई सहमति-असहमति हो सकती है?
किसी महिला या युवती से यह पूछा जा सकता है कि अगर आपके साथ बलात्कार की घटना होती है और आप उसे रोकने में, खुद को बचाने में सक्षम नहीं हैं तो क्या आप इस ज्यादती को ‘प्लेजर’ में परिवर्तित कर इसका आनंद उठाएगीं?
किसी अपराध को रोकने में कोई सफल नहीं होता है तो क्या वो उस हिंसा को, उस कृत्य का मजा उठा सकता है?
मसलन, मैं खुद की हत्या रोकने में कामयाब नहीं हो सका तो मुझे अपने गले को रेते जाने का लुत्फ उठाना चाहिए।
संभवत: केआर रमेश कुमार के बचाव में यह तर्क दिया जाएगा कि उन्होंने तो सिर्फ बलात्कार की बात की थी, जिसके केंद्र में ‘प्लेजर’ है. उन्होंने हत्या, मारपीट, चाकुबाजी के बारे में नहीं कहा.
क्या केआर रमेश कुमार यह मूलभूत तथ्य नहीं जानते कि हर वो चीज जिसकी शुरुआत जबर्दस्ती से होती है, वो जुर्म है, अपराध है?
हालांकि केआर रमेश कुमार ने यह बयान विधानसभा संचालित करने के संदर्भ में दिया गया था, लेकिन इसके केंद्र में तो महिलाएं ही हैं।
क्या इसे महिलाओं से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, इसे एक सामाजिक मानसिकता के नंगे होने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए?
या इस पर तब ही हंगामा बरपाना ठीक होता, अगर वे सीधे महिलाओं को लेकर ही यह टिप्पणी करते?
दरअसल, यह टिप्पणी व्यंग्य में कही गई थी, लेकिन जब इसे मजाक और चुटकुला मानकर विधानसभा में निर्वाचित होकर बैठा पूरा सदन ठहाका लगाता है, तो यकीन मानिए आप एक बेहद खतरनाक और भद्दे सामाजिक परिवेश में प्रवेश कर चुके हैं।
हम अक्सर चुटकुलों पर नहीं, उसके अर्थ पर हंसते हैं, उसका अर्थ हमें आनंद का रस प्रदान करता है।
जाहिर है विधानसभा में बैठे तमाम सदस्य अर्थ को दरकिनार रखकर सिर्फ चुटकुले पर हंस रहे थे, चुटकुले के परिणाम की खिल्ली उड़ा रहे थे...और मेरा यकीन कीजिए, यह बात उससे भी ज्यादा खतरनाक है, जो केआर रमेश कुमार ने कही।
औघटघाट
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह टिप्पणी उनके फेसबुक पेज से ली गई है।
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