छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
चोटी चुढेल की दहशत बुंदेलखंड तक जा पंहुची है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के गांव में एक महिला ने दावा किया कि आंगन में झाडू लगाते समय उसकी चोटी कट गई। इस घटना के बाद से गांव गांव में दहशत का माहौल है। टोने टोटको का दौर शुरू हो गया है। वहीं महिलाओ ने रात में सफेद कपडा बांधकर सोना शुरू कर दिया है। चोटी कटने की पहली घटना छतरपुर जिले के भगवां थाना क्षेत्र के ग्राम रमियाखेरा से प्रकाश में आई।
यहां 62 वर्षीय वृद्धा प्रेमबाई लोधी ने दावा किया कि वह दोपहर में घर के आंगन में झाडू लगा रही थी। तभी हल्के से धक्के के बाद उसकी चोटी जमीन पर कट कर गिर गई। चोटी कटते ही महिला दहशत के कारण बेहोश हो गई। पुलिस को 100 डायल पर सूचना दी गई। पुलिस ने महिला को स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती करा दिया। महिला की बहू मायाबाई के अनुसार वह घटना के समय पडोसी महिला के साथ घर में बैठी थी। तभी चोटी कटने के बाद उसकी सास बेहोश हो गई।
अभी तक बुंदेलखंड से दूर दिल्ली और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सो से चोटी कटने की घटनायें सुर्खियो में थी। इन अफवाहो को देखते हुये ग्रामीण अंचलों सहित शहरी इलाकों तक में टोने टोटके शुरू हो गये थ। छतरपुर शहर के महोबा रोड, विश्वनाथ कालोनी सहित निम्न बस्तियो के अधिकांश घरों में प्याज, लहसून, नीबू, मिर्च की माला दरवाजे पर लटकी देखी जा सकती है। साथ ही नीम की पत्तियों को भी टांगा जा रहा है।
विश्वनाथ कालोनी निवासी गायत्री रैकवार ने बताया कि इन टोटकों के अलावा घर की बाहरी दीवारों पर हल्दी के हाथे लगाये जा रहे हैं। देवी स्थानों पर पीली चूडियों को मूर्ति से स्पर्श कराकर चूडियां पहनी जा रही हैं। इन अफवाहों से टोने टोटके करने वालों की मांग बढ गई है। सबसे अधिक रोचक है कि महिलाओं ने अपने सिर में सफेद कपड़े बांधने शुरू कर दिये हैं। खासकर रात में सेाते समय कपड़ा आवश्यक रूप से बांधा जा रहा है। जिससे उनकी चोटी पर चुड़ेल का प्रकोप ना हो सके।
महिलाओ में यह चर्चा भी है कि भारत और पाकिस्तान के युद्ध हालातों में यह चुडेल दुश्मनों द्वारा भेजी गई है। जो चोटियां काटने का काम कर रही है। इन बेतुकी बातो पर चिकित्सक शरद चौरसिया का कहना है कि अफवाहों के हाथ पैर नहीं होते। यह केवल मनोवैज्ञानिक असर है। खासकर महिलाओं के मनोमस्तिष्क पर अधिक असर होता है। इन दिनों सोशल मीडिया सहित न्यूज चैनलों पर चोटी कटने की घटनायें प्रमुखता से दिखाई जा रही हैं। जो इस तरह की अफवाहों को और अधिक प्रसारित करती हैं।
समाज सेविका दीपाली अग्रवाल का कहना है कि जागरूकता की कमी और अशिक्षा के कारण इस तरह की अफवाह फैलाने वाले सफल हो जाते हैं। ऐसे समय में जागरूक महिलाओं की भूमिका अहम हो जाती है। जिसके लिये उन्होंने काम करना शुरू कर दिया है। पड़ोस और मोहल्ले की महिलाओं को उनके द्वारा समझाईश दी जा रही है कि इन अफवाहों से बचकर टोने टोटकों पर विश्वास ना करें। सनद रहे कि हर बारिश के मौसम में कोई ना कोई अंधविश्वासी अफवाहें उड़ना शुरू हो जाती हैं।
पिछले वर्ष बरसात के मौसम में ही सील टंकने की अफवाह जोरों पर थी। एक कीडे की करामात को अंधविश्वासीयों ने अफवाह का रूप दिया। लोगों की जेबें भी ढीली हुईं। वहीं पंडितों और गुनियाओं की जमकर चांदी कटी। अफवाहों का अफसोसजनक पहलू है कि एक ओर इंडिया को डिजीटल करने के प्रयास जारी हैं, वहीं चोटी चुडेल जैसी अफवाहें टोने-टोटको को हवा दे रहे हैं। डिजीटल जैसी सोच को इस तरह की अफवाहें झटका देने का काम करती हैं।
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