ममता यादव।
वह बगल में खड़ी एक सरकारी महिला कर्मचारी से बात कर रही थी एक और परिचित सज्जन आ गए। दोनों से परिचय पुराना है। महिला बोली संघर्ष इंसान को तपाकर सोना बना देता है तुम भी वैसी ही हो गई हो काम में फील्ड में व्यवहार से।
तभी बगल में खड़े सज्जन बोले हां ये तो सही बात है मैं आपको 5-6 साल पहले से देख रहा हूँ अब तो सच में सोना हो गई हो। उसे ऊपर से नीचे तक घूरते हुए वो कह रहे थे।
वो उनपर तीखी नजर डालती है नीचे हाथ करे मुठ्ठी भींचती है। लड़की का मन के साथ दिमाग भी कसैला हो गया। इनकी एक लाइन उसे हमेशा नागवार गुजरती है कभी सेवा का मौका दीजिये न।
कुछ फील्ड की मजबूरियां होती हैं वो चुप रहती है और मुंह घुमा लेती है। वह चल दी वहां से सोचते हुये लड़की तुम कहीं भी पहुंच जाओ कुछ भी कर लो शरीर से इतर सब नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
वो झटक देती है इस नेगेटिविटी को और सोचती है छोड़ न यार अच्छे लोग भी तो हैं जो काम को सराहते हैं प्रोत्साहित करते हैं। ये नाली के गिजगिजे कीड़ों की परवाह क्या करना चल बहुत काम है। तभी एक फोन आता है आपका एक इंटरव्यू चाहिए छापना है जानकारी दे दीजिये। वो व्यस्त हो जाती है।
रात इसी उधेड़बुन में निकल जाती है क्या महिलाओं के साथ ये जो अनदेखी परिस्थितियां बनती हैं पुरुषों के साथ भी बनती हैं, जो सुनने में लगती हैं छोटी सी तो बात है मगर भीतर तक हिला जाती हैं?
मोरल ऑफ द स्टोरी लड़कियों बहुत बहुत बहुत स्ट्रांग होकर और मन पक्का करके निकला करो।
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