मल्हार मीडिया ब्यूरो।
कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई खत्म हो गई है। गुरुवार को दोपहर 2.30 बजे से फिर मामले की सुनवाई शुरू होगी। मंगलवार को इस मामले में याचिकाकर्ता छात्राओं की ओर से पेश वकील देवदत्त कामत ने दलीलें पेश की थीं। इस दौरान उन्होंने दक्षिण अफ्रीका और तुर्की के कानूनों का हवाला दिया था। आज याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रोफेसर रविवर्मा कुमार अदालत में पेश हुए।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रोफेसर रविवर्मा कुमार ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम का हवाला दिया। उन्होंने कहा, नियम कहता है कि जब शिक्षण संस्थान यूनिफॉर्म बदलना चाहता है तो उसे छात्रों के माता-पिता को एक साल पहले नोटिस जारी करना पड़ता। अगर हिजाब पर बैन है तो उसे एक साल पहले सूचित करना चाहिए।
रविवर्मा ने कहा कि हिजाब पर कोई पाबंदी नहीं है और सवाल यह उठता है कि किस अधिकार या नियम के तहत मुझे (छात्रों को) कक्षा से बाहर रखा गया है। अधिनियम (कर्नाटक शिक्षा अधिनियम) के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं हैं और न ही हिजाब पहनने पर प्रतिबंध के नियम हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता रविवर्मा ने कहा कि कॉलेज विकास समिति के पास छात्रों पर पुलिस कार्रवाई का अधिकार नहीं हो सकता है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने उनसे पूछा - आप कहना चाहते हैं कि कॉलेज विकास समिति को यूनिफॉर्म निर्धारित करने का कोई अधिकार नहीं है।
वकील रविवर्मा ने कहा, एक विधायक (जो समिति का अध्यक्ष भी है) एक राजनीतिक दल या एक राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा हो, ऐसे में क्या आप छात्रों के कल्याण के बारे में सोच सकते हैं? उन्होंने कहा कि इस तरह की समिति का गठन हमारे लोकतंत्र को मौत का झटका देता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता रविवर्मा ने कहा, शासनादेश में किसी अन्य धार्मिक चिन्ह पर विचार नहीं किया गया है। सिर्फ हिजाब ही क्यों? क्या यह उनके धर्म के कारण नहीं है? मुस्लिम लड़कियों के साथ भेदभाव विशुद्ध रूप से धर्म पर आधारित है।
सरकार अकेले हिजाब को क्यों चुन रही है? चूड़ी पहने हिंदू लड़कियों और क्रॉस पहनने वाली ईसाई लड़कियों को बाहर नहीं भेजा जाता है।
याचिकाकर्ता छात्राओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने अदालत के सामने दक्षिण अफ्रीका की एक अदालत के फैसले का उल्लेख किया। इसमें मुद्दा यह था कि क्या दक्षिण भारत से संबंध रखने वाली एक हिंदू लड़की क्या स्कूल में नाक का आभूषण (नोज रिंग) पहन सकती है।
कामत ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका की अदालत ने फैसले में कहा था कि अगर ऐसे छात्र-छात्राएं और हैं जो अपने धर्म या संस्कृति को व्यक्त करने से डर रहे हैं तो उन्हें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। यह जश्न मनाने की चीज है न कि डरने की। कामत ने कहा कि दक्षिण अफ्रीकी अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि धर्म और संस्कृति का सार्वजनिक प्रदर्शन विविधता का एक उत्सव है जो हमारे स्कूलों को समृद्ध करता है।
इससे पहले सोमवार को सुनवाई के दौरान इन छात्राओं ने हाईकोर्ट से कहा था कि मुस्लिम छात्राओं को स्कूल की यूनिफॉर्म के रंग से मेल खाता हुआ हिजाब पहनने की अनुमति दी जाए। ये छात्राएं उडुपी के प्री यूनिवर्सिटी (पीयू) कॉलेज की हैं। छात्राओं का कहना है कि हिजाब पहनना अनिवार्य धार्मिक प्रथा है और इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है। केंद्रीय स्कूलों में भी यूनिफॉर्म के रंग का हिजाब पहनने की अनुमति होती है।
इस विवाद के बीच राज्य में कुछ स्थानों पर लड़कियों ने प्री परीक्षा का बहिष्कार कर दिया है। कुछ स्थानों पर अभिभावक ही बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं। शिवमोग्गा शहर के कर्नाटक पब्लिक स्कूल में कई छात्राओं ने कक्षा 10वीं की प्रारंभिक परीक्षा का बहिष्कार कर दिया है। स्कूल की एक छात्रा हिना कौसर ने बताया कि मुझे स्कूल में प्रवेश करने से पहले हिजाब हटाने के लिए कहा गया था। इसलिए मैंने परीक्षा में शामिल नहीं होने का फैसला किया है।
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