दीपक गोस्वामी।
हमारे सांसदों को सिर्फ अपने सुख और सम्मान की पड़ी होती है।
ताजा मामला सपा सांसद आज़म ख़ान और उन्नाव रेप केस का है।
जब सासंदों के अपने सम्मान पर बात आई तो क्या महिला, क्या पुरूष हर सांसद आज़म ख़ान के खिलाफ खड़ा हो गया है। दुहाई दी गई महिलाओं की अस्मिता और सम्मान की।
महिला सांसदों ने आजम खान के खिलाफ ऐसा मोर्चा खोला कि उनकी टिप्पणी को देश की सभी महिलाओं का अपमान करार दे दिया।
आज़म ख़ान को माफी मांगनी पड़ी और मांगनी ही चाहिए थी क्योंकि करतूत ही ऐसी थी।
लेकिन जो सांसद कल तक आज़म ख़ान के मामले में राष्ट्र भर की महिलाओं के सम्मान और अस्मिता की दुहाई दे रहे थे, उनके मन में इसी राष्ट्र की ही एक अन्य महिला उन्नाव रेप पीड़िता के लिए कोई सहानुभूति नहीं है।
पुरूष तो छोड़िए, एक महिला सांसद भी सामने नहीं आई है। मानो कि केवल संसद में बैठीं महिलाओं का सम्मान ही सब कुछ है। आम महिला मरती है तो मरती रहे।
सांसद रमा_देवी के लिए सभी लड़ने खड़े हो गये, उन्नाव रेप पीड़िता के लिए लड़ना अपना दायित्व नहीं समझा?
सांसद और विधायकों का यही हाल है। वे खुद को विशेषाधिकार प्राप्त समझते हैं।
आम जनता से ऊपर समझते हैं. तभी तो जनहित के मुद्दों पर सदन में झगड़ते हैं, संसद चलने नहीं देते हैं। लेकिन जब बात आती है अपना वेतन बढ़ाने की तो सब एकजुट हो जाते हैं।
ये पाखंडी हैं ससुरे।
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