आसपास मौत पसर रही है

वीथिका            Jan 10, 2015


डॉ.लक्ष्मीनारायण पांडे हर आम और खास को सूचित किया जाता है विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि नपुंसक व्यवस्था के सौजन्य से हमारे आसपास मौत पसर रही है, राजाज्ञा से भूख भय और महामारी हमारे नसीब में पहले से लिख दी गई है, अब अचानक कहीं भी,कभी भी क्षति विक्षत वीभत्स लाशों के दहलाते दृश्य हमारे शासकों की अकर्मण्यता का सबूत दे रहे हैं, गाढी बारूदी गन्ध को चीरकर आती चीखों को अनसुना करके मुखिया पिलपिली आवाज में रिरियाता है, अत्याचारी के दरबार में कानून सलाम बजाता है, अपराधी के हुजूर में तन्त्र बुहारी लगाता है, वंशवाद से डरा सहमा समाजवाद आत्महत्या के लिए निकला है, सबको इत्तिला कर देना बडे बडे लोगों को बोनापन उजागर हो गया है, कह देना जिन्दगी जहालत से बिलबिला रही है, भाग्यविधाताओं की हवाई यात्राओं, हवाई वादों हवाई योजनाओं से बच्चों का पेट नहीं भरता, कहना सबसे कि पीढियों से चली आ रही विवशता, अभाव, अपमान अभी तक हमारे पास धरोहर हैं, कहना कविगण, लेखक गण, दारू में टुन्न होकर हमारी करुणकथा अभी भी लिखते हैं धर्माचार्य गण अभी भी पूर्वजन्म के पापों का परिणाम बताकर हमें और हमारी बदनसीबी को धिक्कारते हैं, कह देना सबसे खास लोगों के मनोविनोद के लिए हम आम आदमी बनकर जीने के लिए अभी भी विवश हैं ।


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