आ गया गणतंत्र दिवस

वीथिका            Jan 26, 2015


अयोध्या से कुंवर समीर शाही भारत १९४७ में जब आजाद हुआ, तो `इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट १९४७’ के द्वारा भारत का शासन चला। भारतीय संविधान बनाने का काम २८ अगस्त १९४७ को डॉं. भीमराव अंबेडकर की देखरेख में शुरू हुआ। २६ नवंबर १९४९ को संविधान को पास कर दिया गया, पर यह लागू हुआ २६ जनवरी १९५० को। इस दिन को इसलिए भी चुना गया क्योंकि देश की गुलामी के दौरान २६ जनवरी १९३० को पूर्ण स्वराज का नारा दिया गया था। भारत के गणतंत्र होने का पहला जश्न २६ जनवरी १९५० को मनाया गया। उन दिनों आज के राष्ट्रपति भवन को गवर्नमेंट हाउस कहा जाता था। इस भवन के दरबार हॉल में २६ जनवरी १९५० की सुबह दस बजे भारत को गणतंत्र घोषित किया गया और डॉंक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारत के पहले राष्ट्रपति की शपथ दिलाई गई। इसके बाद ३१ तोपों का सलामी से लोगों को उस घटना की खबर पहुंचाई गई थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति के साथ सभी लोग एक जुलूस के रूप में ईिवन स्टेडियम (आज के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम) पहुंचे और वहां भारत का पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया। करीब १५ हजार से ज्यादा लोगों ने इस समारोह में हिस्सा लिया था। इस पहले गणतंत्र दिवस में विदेशी मेहमान के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो ने हिस्सा लिया था। पहले चार साल इसका आयोजन नेशनल स्टेडियम के अलावा िंकग्सवे, लालकिला और रामलीला ग्राउंड पर हुआ। १९५५ से इसे राजपथ पर आयोजित किया जा रहा है। इस साल अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में आ रहे हैं। दिल्ली से बाहर हर राज्य और वेंâद्रशासित प्रदेश अपने स्तर पर गणतंत्र दिवस का आयोजन करते हैं। पिछले साल मुंबई के मेरिन ड्राइव पर दिल्ली की तरह गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन किया गया। गणतंत्र दिवस समारोह २६ को आरंभ होता है और २९ जनवरी को बीिंटग रिट्रीट के साथ समापन होता है। २९ तारीख की शाम को विजय चौक पर इस समारोह का आयोजन होता है। इसके मुख्य अतिथि भारत के राष्ट्रपति होते हैं। उनके सामने सेना के तीनों अंग-थल सेना, वायु सेना व नौसेना के बैंड अपने संगीत से लोगों का मन मोह लेते हैं। इन चार दिनों तक विजय चौक के आसपास की सभी इमारतों पर लाइिंटग की जाती है और दूर-दूर से लोग रात को इसे देखने आते हैं। राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार २६ जनवरी को बच्चों को झांकियों के अलावा जिस क्षण का सबसे ज्यादा इंतजार रहता है, वह है वीरता पुरस्कार प्राप्त बच्चों को देखने का। हर साल कुछ चुने हुए उन बच्चों को भी परेड में शामिल किया जाता है, जिन्होंने अद्भुत बहादुरी दिखाई है। इस पुरस्कार के शुरू होने की कहानी भी दिलचस्प है। २ अत्तूâबर १९५७ को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक समारोह के दौरान टेंट में आग लग गई थी। उस समारोह में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। एक १४ साल के स्काउट हरीशचंद्र ने बहादुरी दिखाकर अपने चावूâ से टेंट को चीरकर हजारों लोगों को बाहर निकलने का रास्ता दिया था और उनकी जान बचाई थी। इस घटना को देखने के बाद नेहरू जी के सुझाव पर बच्चों के लिए इस पुरस्कार की शुरुआत की गई और पहला सम्मान हरीशचंद्र को मिला। पुरस्कार में बच्चों को एक मेडल, र्सिटफिकेट और नकद राशि दी जाती है। इन बच्चों को स्कॉलरशिप भी दी जाती है, ताकि उनकी पढाई ठीक से हो सके और वे एक बेहतर नागरिक बनें। बग्घी की जगह बुलेटप्रूफ कारों ने ली एक समय था जब गणतंत्र दिवस परेड में भारत के राष्ट्रपति अपने विदेशी मेहमान के साथ छह घोड़ों द्वारा खींची जाने वाली बग्घी में बैठकर समारोह स्थल तक पहुंचते थे। उनका सुरक्षा दस्ता भी घोड़े पर सवार होता था। परंतु १९८४ में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सुरक्षा कारणों से बग्घी की जगह बुलेटप्रूफ कारों ने ले ली। हालांकि पिछले साल बीिंटग रिट्रीट में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इस बग्घी का प्रयोग कर लोगों को खुश कर दिया था। गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य आकर्षण पहली बार दिल्ली की रिपाqब्लक डे परेड में भारतीय सेना की महिलाएं भी मार्चपास्ट करेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महिलाओं को आगे लाने की मुहिम के तहत इस बार यह निर्णय लिया गया है। इसी तरह पहली बार दिल्ली के राजपथ पर दुनिया के सबसे तेज `कोबरा कमांडो’ की टीम लोगों के सामने होगी। इस टीम के सदस्य बिना किसी मदद के जंगलों में ११ दिनों तक लड़ाई जारी रख सकते हैं। भारत के जंगलों और नक्सली इलाकों में लड़ाकों से लोहा लेने के लिए इस दल का गठन किया गया है।


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