संजय जोशी सजग
मेरे एक मित्र शर्मा जी से ग्रुप की बात चल रही थी वे बोले वर्तमान में हवा का रुख ग्रुप एडमिन बनकर अपने वालों को ग्रुप में जोड़ने का चल रहा है। हमारी संस्कृति और सामाजिक मूल्य हमें ग्रुप में जुड़ने को मजबूर करते हैं और हम बेमन से जुड़ तो जाते है पर कुछ दिन बाद हमारे अंदर का भूत जागता है और कहता है क्यों न अपना ग्रुप बना लें ,अपने मित्रो को जोड लेंगे और शरमा शरमी वे जुड़ भी जायेंगे। सबको अपने स्मार्ट फोन का जलवा जो दिखाना है तो दिखायेंगे ही और चेटिंग का शौक जो है । नेट पैक का टेंशन देता रहता है। यह महती आवश्यकता में शुमार होने लगा है,पति,पत्नी ,बच्चे सभी किसी न किसी ग्रुप में व्यस्त और मस्त है।
उन्होंने बताया कि एक लड़की के पिता , लड़के के बारे में पूछताछ करने हेतु फोन करते है तो लड़के की माँ उठाती है सामान्य जानकारी के बाद एक कठिन प्रश्न आता है कि लड़का क्या करता? है तो माँ बड़े गर्व से उत्तर देती है अभी तो 4-5 ग्रुप का एडमिन है और जल्दी है 2-3 का और बन जायेगा। लड़की के पिताजी ने मत्था ठोंका और कहा, ठीक है बाद में बात करता हूँ। क्या जलवे तेरे एडमिन तेरे प्यार में कई पगला गए और दूसरों को भी पगलाने की तैयारी है।
ग्रुप का एडमिन होना ,सर्व शक्तिमान माना जाता है इसके बावजूद भी सबसे ज्यादा मजे उसी के लिए जाते है। वह भी एड़ा बनकर पेड़ा खाता रहता है । आये दिन समाचार आते रहते है कि ग्रुप एडमिन को अश्लील अथवा असामाजिक पोस्ट के लिए सजा हुई ,हिम्मत की दाद देना पड़ेगी जो खतरें उठा के भी एडमिन बनने का शौक रखता है, है न खतरों का खिलाडी।
वे बोले ग्रुप एडमिन एक ऐसी प्रजाति है जो ग्रुप में चाहे कोई भूचाल आ जाये ,पर किसी को नाराज करने की हिम्मत नहीं जुटाता है। और हमेशा समझौतावादी दृष्टिकोण रखता है पर ऐसा इसलिए करता होगा कि ग्रुप न टूट जाये ,मुखिया जो है और वह मुखिया मुख सा चाहिये की तर्ज पर सबको समान नजर से देखता है और एडमिन के अहम में वह बात भी भूल जाता है कि एक साधे सब सधे,सब साधे सधे न कोय।
ऐसे में एडमिन से तेज चलने वाले को रिमूव का प्रकोप भी झेलना पड़ता है और धीरे-धीरे आत्मग्लानि महसूस कर रहे सदस्यों में से कोई स्मार्ट अपना नया ग्रुप बना लेता है और सब को जोड़कर पहले वाले एडमिन को नीचा दिखाने का भरपूर प्रयास करता है। जो सदस्य दोनों ग्रुप में है वे दोनों ग्रुप में अपनी उपस्थिती को दर्ज करना मजबूरी हो जाती है दोनों ग्रुप के एडमिन नाराज न हो जाये।
यह पीड़ा कॉलोनी और ऑफिस के ग्रुप में ज्यादा भोगनी पड़ती है और यही हालात साहित्यक ग्रुपों के भी है। आओ ग्रुप—ग्रुप खेलें,एडमिन बनकर अपनी मन की तृष्णा को शांत करें । जिस तरह अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता उसी तरह अकेला एडमिन ग्रुप में क्या करे? तो जोड़ता है ऐसे लोगों को कि जिनपर उसका दबदबा कायम रहे। एडमिन दावे के साथ कहता है । आसान काम नहीं है एक दिन में नानी दादी याद आ जायेगी ,कितने प्रकार की खोपड़ियों को मैनेज करना पड़ता है जो करता है वहीं जाने ---
एडमिन बनकर दिखाते शान।
भूल कर सब मान अपमान।।
ग्रुप में जबरन जड़ने वाले दुखियारे क्या करें? एक मैसेज को कई बार देख—देख कर बोर होकर अनदेखा कर सिर्फ और सिर्फ ,गुड मार्निग ,गुड इवनिंग ,और गुड नाइट से अपनी उपस्थिति दर्ज करते रहते है। जन्म मरण के समाचार भी यहीं आने लगे हैं अंतिम यात्रा का मैसेज यहीं डालकर सूचना के नाम पर बरी हो जाते हैं। नहीं देखा तो गुनाह आपका ही है इसलिए बेचारा इस डर से सहमा रहता है कि कोई महत्वपूर्ण मैसेज छूट न जाये।
व्हाट्सएपने झुकना सिखा दिया है और कइयों को गर्दन की बीमारी का मरीज बना दिया ।पर समय के साथ -साथ चलने का शौक जो पाल रखा है ,सीनियर सिटिजन की अपनी कड़क आचार सहिंता होती है और वे कड़ाई से पालन भी करते हैं।
अब वे आक्रोशित होते जा रहे थे कहने लगे ग्रुपबाज एडमिन इतने खतरनाक होते हैं कि अगर आप ग्रुप छोड़ो तो आपको फिर जोड़कर ही दम लेते हैं। भले ही अपना दम निकल जाये। जैसे इनके ग्रुप में रहने की दबेलदारी हो ये आपकी भलमनसाहत को पूरी तरह भुनाने में सिद्धहस्त होते हैं पर न जाने क्यों हर ग्रुप एडमिन ऐसा करते है ।
कुछ ग्रुप बनाकर अच्छा कार्य करते हैं तो कुछ खाली—पीली बकवास। शक्ति का उपयोग करो न कि दूसरों के मोबाईल में अतिक्रमण करो। नहीं तो मोबाईल मैसेज देता रहे कि नो स्पेस। सबको स्पेस चाहिए पर स्मार्ट फोन ने सब को कैद सा कर दिया है।
फिर कहने लगे अच्छे उद्देश्य से ग्रुपों को चलाया जाये, उसमें रचनात्मकता हो,क्वॉलिटी मैसेज हो, रिपीटेशन न हो,एडमिन समर्पित हो, ईमानदारी से कुछ करने की कूबत रखता हो जिसमें भेड़चाल न हो तो ग्रुप और एडमिन का प्रयास सार्थक हो सकता है ऐसे कुछ अच्छे ग्रुप भी हैं कुछ अपवाद भी होते हैं ।
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