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क्या हम अभी भी ग़ुलाम नहीं हैं ?

वीथिका            May 29, 2016


dr-ram-shrivastavराम श्रीवास्तव। एक मेरे मित्र थे श्री एम एल ज्ञानी,इन्दौर प्रीमियर बैंक के उच्च अधिकारी, अच्छे विचारक थे। उनके पुत्र महेन्द्र ज्ञानी IAS से रिटायर हुए। स्व० ज्ञानी जी का कहना था " भारत की परेशानियों के तीन कारण हैं , एक- यहां की आबो-हवा बहुत अच्छी है ,अगर यह कनाडा जैसी होती तो कोई फुटपाथ पर सोता नहीं मिलता। दूसरा कारण- यहाँ की ज़मीन बहुत उपजाऊ है ,कहीं भी एक मुट्ठी ज्वार फैंक दो पेट भरने लायक पैदा हो जावेगा। अगर हमारी ज़मीन इसराइल जैसी होती तो हमें पता चलता पेट कैसे भरा जाता है। अभी तो मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है। तीसरा कारण- तीन सौ साल ग़ुलामी में रहते—रहते हमारे ख़ून में गुलामी की बू इतनी घुस गई है कि अगली दो तीन पीड़ियों तक जब तक हमारे बटक पर बैटन नहीं पड़ेगे हमें काम करने की आदत ही नहीं है। आपात काल में डंडे पड़ते थे तो भला कोई ट्रेन एक मिनिट भी लेट हो सकती थी या किसी की रिश्वत लेने की हिम्मत होती थी ? " आपके चिन्तन से और स्व०ज्ञानी जी के विचारों से यह सिद्ध हो रहा है कि हम आज भी मानसिक रूप से अंग्रेज़ और अंग्रेज़ीयत के ग़ुलाम हैं ....तभी तो पिछली विधान सभा के 52 सत्तारूढ़ तथा विपक्ष के माननीय विधायकों का दल पर्यटन विकास निगम के ख़र्चे पर यूरोप के टूर पर गया था , यह सीखने कि वहॉ प्रजातांत्रिक व्यवस्था कैसे चलाई जाती है ....पर यह स्वीकार करने में हमें शर्म आती है कि अधिकांश माननीय गण बंकिमघम महल के सामने खड़े होकर इंग्लैण्ड के राजकुमार की शादी के बाद निकली शाही सवारी में हाथ हिलाकर ग़ुलामों की तरह इस्तक़बाल कर रहे थे । अगर इस समाचार में हक़ीक़त है तो फिर क्या हम अभी भी ग़ुलाम नहीं हैं ?


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