चमचों का डिस्पोजल होना

वीथिका            May 30, 2015


संजय जोशी 'सजग ' चमचों का है जहान क्योंकि चमचे ही महान है चमचागिरी एक कला है जिसे इसका ज्ञान नहीं वह अज्ञानी कहलाता है चमचों पर केवल चमची ही भारी रह सकती है जहां चमची होती है वहां चमचे अपने आप को उपेक्षित महसूस करते है। चमचागिरी एक मनोविज्ञान है और जो मनोविज्ञान समझता है वह इसमें पारंगत होता है चमचाचन्द हमेशा से ही कर्मचन्द और ज्ञानचंद का पक्का दुश्मन रहा है । जैसे चमचा कढ़ाही का पूरा माल हिलाता है वैसे ही चमचे सब जगह सब को हिलाने का काम करते है । चमचे वहीं कहते है जो उनके आका नहीं कह सकते है चमचों के बयान पर चुप्पी साधना यह दर्शाता है कि मौन ही स्वीकृति का लक्षण है । अनादि काल से आज तक चमचे ही मजे में रहे है जिसने नहीं की चमचागिरी उसे दुगना काम करने के बाद भी कभी दो शब्द तारीफ के सुनने को नहीं मिलते और चमचे बिना काम के ही अपने से ऊपर वाले की निगाह में श्रेष्ट ही नहीं सर्वश्रेष्ठ कहलाते है । चमचे अपने आप को पावरफुल समझते है पर वे वो फूल होते है जिनके कंधे पर ही रखकर बंदूक चलाई जाती है । चमचों से सावधान ब्रह्म वाक्य केवल ट्रकों के बेक साइड पर पाया जाता है कोई भी चमचा अपने आप को चमचा कहलाना पसंद नही करता है हालांकि चमचा दूसरों को दुखी देख कर मन ही मन खुश होता है । कहते है कि सबके दिन फिरते है ,सो लुहार की तो एक सुनार कीl चमचें अपनी पॉलिसी बदलते देर नहीं करते है चमचे नाम का प्राणी हर परिस्थिति को भूनने भुनाने की कूबत रखता है सब काम ऑन डयूटी करने में सिद्ध हस्त होता है। साब के यहां शादी के कार्ड बाटने से लेकर बिदाई तक के हर कार्य में अग्रणी होता है । घटिया से घटिया काम भी बड़ी शिद्धत से कर साब का एकमेव चमचा होने का दम भरता है उसमे न लाज होती हैं न शर्म सिर्फ स्वार्थ साधने का काम करता है । चमचों का कोई सिद्धांत नहीं होता है । चमचा गिरी याने …गीरि हुई चमचा गिरी से कोई क्षेत्र अछूता नहीं है हर नेता के अपने चमचे होते है बिना चमचों के नेता अपने आप को अकेला महसूस करता है चमचों से झूठी तारीफ सुने बिना रहने से वह अवसाद में चले जाता है इनको भी चमचा बिन सब सून लगने लगता है । चमचों का उपयोग वहीं कर सकता है जो इसमें पारंगत हो चमचा बनाना और बनना दोनों ही एक आर्ट है । आज चमचे हर जगह बहुतायत में पाये जाते है चमचे दलों के दलदल में ,आफिसों में संगठनो में अपनी गहरी पैठ रखते है ,चमचे अपनी कारगुजारियों और चालाकी के बल पर लाभ का मौका हथिया ही लेते है । जिसकी चमचा गिरी करते है वह अच्छी तरह जानता है कि इसे खुश कर ,और छोटे -छोटे लाभ देकर दूसरों के समाने टुच्ची हरकत कर इसे अच्छा बताने का प्रयास ही चमचा गिरी की जान है । क्योंकि चमचा एक सिंद्धांत विहीन प्राणी होता है जो सिर्फ अपने लाभ के लिए तो पापड़ बेलता है चमचा गिरी के । कभी -कभी लगता है चमचे वर्तमान युग में अहम भूमिका निभा रहे है वो वहीं काम करते है जो उनके आका को पसंद है चमचों को भी उनसे बड़े वाले चमचे जब मिलते है तो उनको उनकी औकात दिखा ही देते है तब पुराने चमचों का डिस्पोजल की तरह उपयोग कर कचरे की तरह फेंक देते है आये दिन ऐसे चमचे अपनी उपेक्षा पर आंसू बहाते रहते हैं और मन ही मन सोचते होंगे ,काश हम भी मेहनत और ईमानदारी से जीते तो आज यह दिन नहीं देखने पड़ते । चमचे यह जानते है कि उनका उपयोग किया जा रहा है फिर भी अपना उल्लू सीधा कर ही लेते है और वे चमचागिरी करने की कला में अपने को पारंगत समझते है । यूज़ करो और फेंक दो उसे डिस्पोजल कहते है चमचे भी आजकल ऐसे ही हो गए है पर क्या करें यह एक मनोवृति बन चुकी है और युगों -युगों तक चलती रहेगी। चमचों को चमचागिरी में ही चमचमाहट नजर आती है ।


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