तालिबान ने प्रकाशित की मुल्ला उमर की जीवनी

वीथिका            Apr 05, 2015


मल्हार मीडिया डेस्क अफ़गान तालिबान ने एकांत में रहने वाले अपने नेता मुल्ला मोहम्मद उमर की जीवनी प्रकाशित की है. मुल्ला उमर के अफ़ग़ान तालिबान के सर्वोच्च कमांडर के रूप 19 साल पूरे होने की ख़ुशी में ऐसा किया गया है. पांच हज़ार शब्द की यह जीवनी अफ़ग़ान तालिबान की मुख्य वेबसाइट पर छापी गई है. इसमें उनके जन्म और परवरिश के बारे में विवादित तथ्यों को स्पष्ट किया गया है.इसके अनुसार मुल्ला उमर का पसंदीदा हथियार आरपीजी 7 है. इसमें कहा गया है कि वह एक साधारण जीवन जीते हैं और उनमें हंसाने का एक 'ख़ास' हुनर है. जीवनी में कहा गया है कि उमर कहां हैं, यह कोई नहीं जानता पर वह दिन-प्रतिदिन की देश-दुनिया के ख़बरों से "जुड़े रहते" हैं.अमरीकी विदेश विभाग ने मुल्ला उमर के सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा है.अफ़गानिस्तान पर अमेरिकी-नेतृत्व में हुए 2001 के हमलों के बाद से मुल्ला उमर को नहीं देखा गया है.अल-क़ायदा के नेता ओसामा बिन लादेन के लिए मुल्ला उमर का समर्थन इस अभियान का मुख्य कारण था. अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि तालिबान ने अपने नेता के 19 साल पूरे होने पर उनकी जीवनी क्यों छापी. लेकिन कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामी राज्य के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करने का प्रयास हो सकता है. टिप्पणीकारों और तालिबान पर नजर रखने वाले मुल्ला उमर के जन्म और विरासत सहित कई अन्य तथ्यों पर सहमत नहीं हो पाए हैं.प्रकाशित जीवनी के अनुसार वह मुल्ला का जन्म 1960 में देश के दक्षिण में कंधार प्रांत के ख़ाकरेज़ ज़िले के चाह-ए-हिम्मत नामक गांव में हुआ था. जीवनी में तालिबान अपने सर्वोच्च नेता को मुल्ला मोहम्मद उमर 'मुजाहिद' के नाम से संबोधित करता है. इसमें कहा गया है कि वह होतक जनजाति के तोम्ज़ी क़बीले से हैं.आगे कहा गया है कि उनके पिता मौलवी गुलाम नबी एक "सम्मानित विद्वान और सामाजिक शख़्सियत" थे. मुल्ला उमर के जन्म के पांच साल बाद ही उनकी मौत हो गई थी जिसके बाद उनका परिवार उरूज़गान प्रांत में आ गया. इस जीवनी में कहा गया है कि सोवियत सेनाओं के अफ़गानिस्तान पर आक्रमण के बाद मुल्ला उमर "अपने धार्मिक दायित्व का निर्वाह करने के लिए" मदरसा छो़ड़ कर जिहादी बन गए. जीवनी के अनुसार उनके सैन्य अभियानों में 1983 से 1991 के बीच रूसी सैनिकों से लड़ते हुए मुल्ला उमर चार बार घायल हुए और उनकी दांई आंख भी फूट गई.वर्ष 1994 में मुल्ला उमर ने सरदारों के बीच चल रही "गुटीय लड़ाई" से निपटने के लिए इस्लामी मुजाहिद्दीन का नेतृत्व किया जिसके बाद 1992 में कम्युनिस्ट शासन के पतन हो गया.इसके बाद 1996 में उन्हें "अमीर-उल-मोमीन" का ख़िताब दिया गया और वह सर्वोच्च नेता बन गए. जीवनी में कहा गया है कि क़ाबुल पर कब्ज़ा करने के बाद मुल्ला उमर ने वहां इस्लामिक अमीरात ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान की स्थापना की और 'शरीयत क़ानून को बर्दाश्त न कर पाने वाली' 'दुनिया की घमंडी काफ़िर ताकतों' के ख़िलाफ़ संयुक्त सैन्य आक्रमण शुरू किया. जीवनी के "करिश्माई व्यक्तित्व" वाले भाग में कहा गया है कि मुल्ला उमर शांत स्वभाव के हैं और अपना आपा या साहस नहीं खोते.इसमें कहा गया है कि उनके पास न तो घर है, न ही कोई विदेशी बैंक खाता. मुल्ला उमर मिलनसार हैं और कभी खुद को अपने सहयोगियों से बड़ा नहीं समझते. जीवनी में "वर्तमान परिस्थितियों में उनकी दैनिक गतिविधियां" नाम का एक हिस्सा है जिसमें कहा गया है कि "वर्तमान की गंभीर परिस्थितियों में उन पर लगातार दुश्मन नज़र रख रहे हैं. लेकिन उनकी दिनचर्या में कोई ख़ास बदलाव नहीं देखा गया है.जीवनी के अनुसार मुल्ला उमर "क्रूर काफिर विदेशी हमलावरों के ख़िलाफ़ जिहादी गतिविधियों का ध्यान से निरीक्षण करते हैं." आगे कहा गया है कि "वह देश और विदेश में होने वाली हर दिन की घटना पर नज़र रखते हैं.कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मुल्ला उमर पाकिस्तान सीमा में या सीमा पर से संचालन कर रहे हैं. साभार बीबीसी


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