दलित समाज के मसीहा बाबू जगजीवन राम

वीथिका            Apr 05, 2015


मल्हार मीडिया डेस्क आजादी के बाद भारतीय राजनीति में ऐसे कम ही नेता रहे हैं जिन्होंने न केवल मंत्री के रूप में अकेले कई मंत्रालयों की चुनौतियों को स्वीकारा बल्कि उन चुनौतियों को अंतिम अंजाम तक पहुंचाया. आधुनिक भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष रहे जगजीवन राम को मंत्री के रूप में जो भी विभाग मिला उन्होंने अपनी प्रशासनिक दक्षता से उसका सफल संचालन किया. जगजीवन राम का एक ऐसा व्यक्तित्व था कि जो वह एक बार ठान लेते थे उसे पूरा करके ही छोड़ते थे. उनमें संघर्ष का जबरदस्त माद्दा था. चुनौतियों का सामना करना उन्हें भाता था. उनके व्यक्तित्व ने अन्याय से कभी समझौता नहीं किया. वह हमेशा दलितों के सम्मान के लिए संघर्षरत रहे. एक दलित परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर छा जाने वाले बाबू जगजीवन राम का जन्म बिहार की उस धरती पर हुआ था जिसकी भारतीय इतिहास और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है. बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 को बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था. उन्हें जन्म से ही आदर से बाबूजी के नाम से संबोधित किया जाता था. उनके पिता शोभा राम एक किसान थे जिन्होंने ब्रिटिश सेना में नौकरी भी की थी. जगजीवन राम अध्ययन के लिए कोलकाता गए वहीं से उन्होंने 1931 में स्नातक की डिग्री हासिल की. कोलकाता में रहकर उनका संपर्क नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुआ.   जगजीवन राम ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन में अपनेनी राजनीतिक कौशल और दूरदर्शिता का परिचय दिया. यही वजह रही कि वह बापू के विश्वसनीय और प्रिय पात्र बने और राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गए. उन्होंने सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. जगजीवन राम का वैधानिक जीवन तब शुरू हुआ जब वह 1936 में बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित हुए. अगले साल वह बिहार विधानसभा के लिए चुन लिए गए और जल्द ही उन्हें संसदीय सचिव बना दिया गया. 2 सितंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक कामचलाऊ सरकार का गठन हुआ. नेहरू के मंत्रिमंडल में जगजीवन राम को अनुसूचित जातियों के अकेले नेता के रूप में शामिल किया गया. उस समय वह केंद्र में सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री थे और श्रमिक वर्ग के प्रति उनकी सद्भावना को देखते हुए उन्हें श्रम मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया. यहीं से बाबू जगजीवन राम का संघीय सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में सफर शुरू हुआ. बाबू जगजीवन 1952 से 1984 तक लगातार सांसद चुने गए. वह सबसे लंबे समय तक (लगभग 30 साल) देश के केंद्रीय मंत्री रहे. पहले नेहरू के मंत्रिमंडल में, फिर इंदिरा गांधी के कार्यकाल में और अंत में जनता सरकार में उप प्रधानमंत्री के रूप में. केंद्र सरकार में अपने लंबे कॅरियर के दौरान उन्होंने श्रम, कृषि संचार रेलवे और रक्षा जैसे अनेक चुनौतीपूर्ण मंत्रालयों का जिम्मा संभाला. उन्होंने श्रम के रूप में मजदूरों की स्थिति में आवश्यक सुधार लाने और उनकी सामाजिक आर्थिक सुरक्षा के लिए विशिष्ट कानून के प्रावधान किए जो आज भी हमारे देश की श्रम नीति का मूलाधार है. जगजीवन राम को भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है. वह स्वतंत्र भारत के उन गिने चुने नेताओं में से एक थे जिन्होंने राजनीति के साथ ही दलित समाज के लिए नई दिशा प्रदान की. उन्होंने उन लाखों-करोड़ो दमितों की आवाज उठाई जिन्हें सवर्ण जातियों के साथ चलने की मनाही थी, जिनके खाने के बर्तन अलग थे, जिन्हें छूना पाप समझा जाता था और जो हमेशा दूसरों की दया के सहारे रहते थे. पांच दशक तक सक्रिय राजनीति का हिस्सा रहे जगजीवन राम ने अपना सारा जीवन देश की सेवा और दलितों के उत्थान के लिए अर्पित कर दिया. इस महान राजनीतिज्ञ का जुलाई, 1986 में 78 साल की उम्र में निधन हो गया.


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