दोस्त दोस्त ना रहा

वीथिका            Feb 05, 2015


संजय जोशी 'सजग ' लद गए वो जमाने जब यह गाना हिट हुआ करता था कि ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे ,तोडेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेगे । स्वार्थ है जहां दोस्ती नहीं वहां । स्वार्थ हमारा जन्म सिद्ध अधिकार हो गया है। स्वहित की भावना के सर्वोपरि चलते दोस्ती कभी -कभी बेमानी सी लगने लगती है । न काहू से दोस्ती न काहू से बैर भी एक लोकोक्ति है पर राजनीति के धरात्तल पर सटीक नही बैठती रोज नए समीकरणों से रोज नए दोस्त को पकड़ना और छोड़ना आदत सी हो गई है कई बार मजबूरी में बेमेल दोस्ती का बोझ ढोना पड़ता है । मेरा एक दोस्त कहने लगा कि 'मेरे दोस्त पिक्चर अभी बाकी है'.. आने वाली है लेकिन आज के दुश्मन कल के दोस्त और आज के दोस्त कल के दुश्मन बनने में वक्त कहाँ लगता है मेरा एक लगोंटिया दोस्त है , गहरे मित्र के लिए एक कहावत प्रचलित है" एक दाँत से रोटी तोड़ने वाले " हम थे पर जब से मैं मोहल्ले की एक सामाजिक और धार्मिक संस्था का सचिव क्या बन गया वह मेरा क़टटर दुश्मन हो गया हर बात काटना और मेरे बारे में लोगों को उल्टा -सीधा बकने लगा ,जबकि उस संस्था से मुझे आर्थिक लाभ क्या बल्कि जेब हल्की करनी पड़ती थी, मौके -मौके पर । और हंसकर बोला फोकट में ये हाल है अगर गलती से लाल बत्ती मिल जाती तो क्या करता मेरा परम मित्र । ऐसा दोस्त कहां किसी के पास होता है…कुछ दोस्त पल भर में भुला दिये जाते हैं कुछ दोस्त पल पल याद आते हैं। अजीब दाँस्ता है दोस्ती की अब वह कहने लगा पर कलमुंही राजनीति ने ऐसा प्रभाव छोड़ा की दोस्ती भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रही । कभी -कभी विज्ञान का सिद्धांत भी फेल हो जाता है और समान ध्रुवों में आकषर्ण और असमान ध्रुव में विकर्षण पैदा हो जाता है यह केवल राजनीति मे ही सम्भव है देखो बिहार और महाराष्ट्र में यहीं तो हुआ । मैंने उसे समझाया कि राजनीति तो अपने ऊपर से जाती है ये सब राजनीति की बातें छोड़ो अपने काम से काम रखोऔर उसी में मस्त रहो । फिर से अपना राजनीतिक ज्ञान बघारते हुए बोला कि दिन भर न्यूज़ पर राजनीति की चर्चा सुनकर दिमाग तो खराब हो ही जाता है अब यह रोज सहने के आदि हो गए हैं फिर चिंतित होकर कहने लगा कि क्या होगा मैंने कहा वो तो फिर मिल जायेंगे अपने स्वार्थ अनुरूप । अपुन ने तो रेडियो का रुख किया जबसे तबसे बहुत सुकून में हूँ । इसके दो फायदे हैं एक तो रिमोट की भीख नहीं मांगनी पड़ती और दूसरे आँखों और दिमाग दोनों पर जोर नहीं पड़ता । वो कहने लगा कि निःस्वार्थ दोस्ती तो सुदामा और कृष्ण की थी l वह एक दोस्ती की मिसाल है । आज के आधुनिकता भरें युग में सच्ची दोस्ती के गुणों को लोग भूल ही गये हैं।दोस्त शब्द दो तत्वों से बना है, एक सच्चाई और दूसरा कोमलता।पर आजकल दोनों ही गायब है जैसे घोड़े के सर से सींग । जैसे किसी ने सही ही तो कहा है सबसे कमज़ोर आदमी वह है जो अपने लिए दोस्त न खोज पाए और उससे भी कमज़ोर आदमी वह है जो अपने दोस्तों को खो दे। फिर इस गाने के बोल सच लगते है ---दोस्त दोस्त ना रहा ..ज़िंदगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा । मैने कहा कि आप जैसे मित्र ही हमारे जीवन में बने रहें और समय -समय पर दोस्ती का रसपान कराते रहे ।


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