नजर-ए-यार

वीथिका            Jan 09, 2015


नजर-ए-यार आज दिल कहता है फिर उसको याद किया जाये। उसके इंतजार का गुनाह फिर क्यां न किया जाये।। फिर से रंग भरें सोई हुई तमन्नाओं में। क्यां न उदास लम्हों को फिर बहार किया जाये।। कुछ और किया जाये चाहतों में इजाफा और दर्द सहा जाये। जो हमसे दूर हैं उन्हें क्यों न फिर से पास बुलाया जाये।। वफाओं के नाम पर होती हैं जफायें कैसी-कैसी। क्यों न हर जफा-ए-लिबास तार-तार किया जाये।। मेरे तमाम ख्वाब मेरी जिंदगी का सरमाया हैं 'मल्हारÓ क्यों न ये ख्वाब भी आज नजर-ए-यार किये जायें। मल्हार


इस खबर को शेयर करें


Comments