पुस्तक समीक्षा:बेहतरीन यादगार रचना 'अकाल में उत्सव'

वीथिका            Apr 09, 2016


ganga-sharan-singhगंगा शरण सिंह। कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं जिनके शीर्षक पर बरबस ध्यान चला जाता है। पंकज सुबीर जी की उपरोक्त औपन्यासिक कृति के साथ भी ऐसा ही हुआ, जब ये प्रकाशित होकर आई। अकाल और उत्सव में कहीं कोई साम्य होता नहीं और यहीं उत्सुकता का जन्म होता है। पंकज सुबीर की उम्र की तुलना में उनकी साहित्यिक उपलब्धियां बहुत ज्यादा हैं। कई सारे चर्चित कहानी संग्रह, कई संपादित श्रृंखलाएँ, "ये वो सहर तो नही" जैसा प्रशंसित और पुरस्कृत उपन्यास साथ ही फिल्मों की पटकथा, संवाद!!!! उनका बायोडाटा देखकर मुझे सदैव आश्चर्य होता है कि जीवन के इतने कम समय में कितना महत्वपूर्ण काम कर लिया है उन्होंने। "अकाल में उत्सव" के पार्श्व में है मध्य प्रदेश का एक गाँव सूखा पानी जहाँ किसान अपनी पुरातन गरीबी, लाचारी और बेबसी के बीच कुदरत के रहमोकरम पर किसी तरह जी रहा है। इसी के समानांतर एक और कथा चलती रहती है जहाँ हमारे तथाकथित महान लोकतंत्र के अधिनायक जिले के कलेक्टर और उनकी टीम एक लैप्स होने जा रहे बजट का उपयोग करने के लिए उत्सव का प्लान बना रहे हैं । सरकारी बैंक और उनके दलाल मिलकर पटवारी की मदद से अनपढ़ असहाय किसानों के खेत पर बग़ैर उनकी जानकारी के लोन ले लेते हैं और बाद में राजस्व विभाग कुर्की का आदेश भेजता है। कुर्की का पेपर मिलने के बाद किसान बदहवास हाल में सरकारी कार्यालयों और बैंक के चक्कर लगाता है ये बताने को कि उसने तो कोई ऋण लिया नहीं है पर वो सत्ता ही क्या जो गरीब की बात सुने? हमारे पूरे देश में तकरीबन इसी तरह का भ्रष्टाचार और अमानवीयता सर्वत्र फैली हुई है। जितनी भी बड़ी बड़ी बातें भ्रष्टाचार के विरोध में बोली जाती हैं वो सिर्फ़ चुनाव जीतने के लिए। गेहूँ की फ़सल लगभग तैयार है और उसी समय आकस्मिक तूफ़ान और बारिश के आने से पूरा क्षेत्र अकालग्रस्त हो जाता है। किसान पति पत्नी अपने घर के भीतर डरे सहमे बैठे हैं और सारे देवी देवताओं को मना रहे हैं कि ये तूफ़ान न आये । इसी समय बारिश की वो पहली कहर भरी बूँद टप से गिरती है और जिस तरह का असर उस दृश्य पर छोड़ती है वो अकल्पनीय है। मुझे याद नही आता कि किसी रचना में बारिश की एक बूँद ने इस कदर प्रभाव डाला होगा। यदि कभी इस रचना पर कोई फ़िल्म बनी तो निर्देशक के लिए इस दृश्य को साकार कर पाना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। हमारे समय की इस बेहतरीन यादगार रचना के विषय में बताने को अभी बहुत कुछ बचा हुआ है पर इस तरह सब कुछ संक्षेप में बता देना कथाकार के साथ अन्याय होगा। सभी साहित्यिक मित्रों से आग्रह है इसे खरीद कर पढ़ें और दूसरों को भी बताएं। लगभग 220 पृष्ठों के इस उपन्यास के पुस्तकालय संस्करण का मूल्य मात्र 150 रूपये है। लेखक:पंकज सुबीर प्रकाशक: शिवना प्रकाशक मूल्य:150 रूपये गंगा शरण सिंह के फेसबुक वॉल से


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