फेसबुकम- कुरुक्षेत्रम

वीथिका            Apr 30, 2015


संजय जोशी 'सजग' हमारा अतीत कई युद्धों की गाथा में समाया हुआ है बड़े-बड़े युद्ध हुए कई विनाश का कारण बनें ,सामाजिक संस्कृति को कई आघात लगे और अब सोश्यल साइट पर शाब्दिक वार का दौर यानि की फेसबुकम- कुरुक्षेत्रम सा बन गया है । रोज -रोज शब्दिक बाण चलते रहते है कइयों के दिल खुश तो कई के दिल आहत होते रहते है कुछ तो राहत महसूस करते है। सबसे पहले तो यह सामाजिक साइट होकर भी सामाजिक कम राजनीति का कुरुक्षेत्र ज्यादा बन गई है याने की राजनीति की भड़ास निकालने का मंच बन गयी है। भक्त -विभक्त में बंट गई है कार्टूनों को चेंपने में कोई भी कम नहीं है। कोई धृतराष्ट्र ,दुर्योधन ,अर्जुन तो कोई पार्थ की भूमिका निभा रहे है। शाब्दिक चीर हरण का दौर चल रहा है । सबके अपने दुःख है अतः सब अपने हिसाब से इसका दोहन कर रहे है सब अपने -अपने में ही मशगूल है। किसी को फेसबुकिया कहते सुनते है तो स्तरहीन लगता है सटोरियों में भी बुकी शब्द उपयोग होता है । चेटासुरों ने इनबॉक्स में हमला कर इसे मनोरंजन बॉक्स बना दिया है इन चेटासुरों से त्रस्त महिला मित्र अपनी व्यथा का इजहार आये दिन सबसे करती रहती हैं । चेटासुरों को इससे कोई फर्क नही पड़ता एक इनबॉक्स से अपमानित हो दूसरे इनबॉक्स में घुसपैठ करने की आदत लत बनती जा रही है, बेशरम जो ठहरे। चेटम --युद्धम जारी रहता है । facebook-war-cartoon-01 पेजा सुर का भी अपना दबदबा है हर एक मित्र का पेज है पेज लाइक करने के मैसेज इतनी अदा और मासूमियत से इन बॉक्स में टपकते रहते है कि हर पेज की पोस्ट को झेलो कुछ दूसरे मित्रों का ध्यान न रखने के उलाहने और ताने का बोझ सो अलग। टेगा सुरों ने भी फेसबुकम -युद्धम् में अपनी अहम भूमिका निभा रखी है टेगा सुरों को चेतावनी देने के बाद भी घुटने टिकाने में सफलता नहीं मिलती और अगली सूचना के बिना अनफ्रेंड होने की बेइज्जती चुपचाप सहने को मजबूर हो जाते है पर कुकुरमुत्तों की तरह टेगा सुर दिन दूने रात चौगुने हो रहे है । छदम युद्ध की तरह ही नकली आईडी ,नकली फोटो की भरमार है ये छद्म युद्ध की ही तरह वार करते रहते है । कट पेस्ट काम सेकंडो में ही संपन्न हो जाता है और कौन सृजन करता है का पता ही नहीं चलता और कट पेस्ट करने वाले झूठी लाइक पर लाइक पाते रहते है और सृजनकर्ता कई तलवारों के आघात जैसा दर्द सहन करता है। इस कुरुक्षेत्र में महिला मित्रों को मिलने वाले अधिक लाइक और कमेंट से भी कई खफा है और अंदर ही अंदर दुखी होकर आये दिन अपना रोना रोते रहते है। प्रशंसा पाने की होड़ की मानसिकता ने मनोरोगी बना दिया है फेसबुकिया, दाद बटोरने की जुगत में रोज कुछ ने कुछ चेंपेगा जरुर ,इस चेंपने की बीमारी से अच्छी -अच्छी पोस्टों की चोरी चकारी करने में शर्म नहीं गर्व की अनुभूति करता है। फोटो डालने के शौक ने इसे फोटो गैलरी सा बना दिया है हर तरह के फ़ोटो डालकर ख़ुश है ,कुत्ते,बिल्ली की किस्मत भी चमक गई उनके फोटो भी थोक में डलने लगे है मतलब फोटो ही फोटो कुछ का यहीं काम। अब तो सेल्फ़ी की बाढ़ आने लगी है । facebook-war-cartoon वर्चुअल वर्ल्ड बनाम रियल वर्ल्ड (आभासी और वास्तविक )की खाई बढ़ती जा रही है वर्चुअल दुनिया भले ही फेसबुकिया के इर्दगिर्द घूम रही हो पर वास्तविक दुनिया से कटा कटा सा अनुभव करने लगा है। आश्चर्य जब होता है एक ही छत के नीचे पारिवारिक सदस्यों को शुभकामना को यही चेंप कर बरी हो जाते है तो अड़ोसी- पड़ोसी .की बात करना तो बेमानी होगी। आये दिन फेसबुकम- कुरुक्षेत्रम दृश्य वर्चुअल वर्ल्ड में आम होते जा रहे है आलाप विलाप चलता रहता है। धारा 66 के बाद से आभासी युद्ध और घमासान होंगे ,सृजन और अभिव्यक्ति पसंद यँहा निराश जरुर होंगे . उनके अरमान धरे के धरे रह जायेंगे l आक्रामकता हावी होकर इसे और दूषित कर मोहभंग की ओ र ले जाने के लिए उत्प्रेरक का काम करेगी और फेसबुकम- कुरुक्षेत्रम .बनकर ...रह जायेगी । और बुद्धिजीवी ह्क्के बक्के होकर इस युद्ध को देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकते .......।


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