बुंदेलखंडी व्यंग्य:बहुअन कौ शासन

वीथिका            Jan 18, 2016


shirish-pandeyश्रीश पांडे पनवाड़ी ने पान में कत्था लगाउत-लगाउत प्यारे से कई, ...काय बा खबर तुमने टीवी में देखी जौन में बहू सास की दम से कुटाई कर रई हती। हओ देखी.. और काय पनवाड़ी तुम जा खबर लाइव नईं देख पाए जा में दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में औरतें, औरतन खां लातन, घूंसन से धुनाई की रईं हतीं। पनवाड़ी बोले- ऐसो का? प्यारे बोले, हओ!! ...पनवाड़ी गलुआ में पान दबा के कैन लगे...का कइये प्यारे, कैसो जुग आ गओ कि बहुयें अब मौं से नईं हाथ-गोड़े से हिंसक होन लगीं...। हओ पनवाड़ी अब लो परिवारन में सास को शासन होत हतो। तब वे हिटलर सी बनी बहुअन खां अपनी उंगरियन पे नचाउत हतीं। वे समझ हतीं कि बहुएं बस आदेश मानबे और सेवा खां बनी हैं। बहुएं तो बेई नौनी होतीं जिनके मौं में जबान न हो, मूड ओढ़ें दिनरात घर द्बार के सबरे काम-काज निपटाएं और चिमानी रयें। काय से उनने खुदई बहु बनके जेई जानो समझो हतो, लेकिन पनवाड़ी अब वे दिना हिरा गये। अब तो बहुअन को शासन है। पैलां सबको को ख्याल फिन अपनों ऐसी हती अपनी संस्कृति की बिसेसता। पे अब संस्कृति गई चूल्हे में। हओ सई कई प्यारे, अब बे दिना नई रए। अब तो पैलां खुद की खुशी, खुद की मौज, ऊ के बाद घरवाये और लरकन-बच्चन की, फिन मन भओ तो सास की। मतलब सास की सेवा मनयाई है, मन भओ सो करी, नई ता दपक दई। पनवाड़ी बोलो- समय बड़ो गतिशील है प्यारे, पैलां ठंड पड़त हती ख्ौंच के अब तो ठंड, ठंड के मौसम में ठंडा सी गई लगत। मांगाई सरग में पौंच गई। पईसा नहीं पूज रओ, ऊपर से बहुअन के नखरे बिलात हो गए और खाबे-पीबे और घूमबे-फिरबे के सैकरन बिकल्पन ने परिवार को 'कॉन्सेप्टई’ नष्ट कर दओ। 'हम दो हमाए दो’ से आगे को परिवार सरकार नई मानत तो बहुएं कां से मानहें। ऐई से जब सासें बहुअन खां हिसाब से रैबे की कातीं, तो बे उने खलनायिका सी लगन लगतीं। पर जा विचारधारा बे सोई समझ लें, जो अब लो सास नईं बनी, लेकिन भविष्य में बनबे बारी हैं। जैसे बो सीरियल हतो न कि 'सास भी कबउं बहू हती’। काय से जित्ते कानून बने बे बहुअन की तरफदारी के बने, एकउ कानून ऐसो नईंया जौन में सास खां बहु से मिलबे बारी प्रताड़ना की चर्चा लो होए। ऐयी से जो कानून आज उनको मजा दै रओ, कल बोई सबरो मजा निकार लैहे, जब बहुएं सासें बनहें। पनवाड़ी ने कई- बिजनौर की एक बहु ने अपनी सास खां जैसो कड़ो करेजो करके कूटो वैसो कबउं न देखो हुइए। सास-बहु को संबंध भारत-पाक संबंध से कमतर नईंया कि झगड़ा बंदई नई होत। लेकिन सच्चाई तो जे है कि चाये देश हो या घर-द्बार, चलत सब प्यार-सहकार से न कि तकरार से। सो अब टेम है कि सास समझदार बने न कि शासक और बहुएं बुद्धिजीवी बने न कि बेहूदा। समाज की ऐसी व्यवस्था भगवान ने बनाई कि सास के बाद बहूं खां सास को उत्तराधिकार मिलत, सो वे सास की टेनिंग खां उदार मन माने, न कि मनमाने ढंग से मारें कूटें। और सासन खां चाइए कि वे बहुअन खां बिटियन सो रखो। तबई घर, घर घाईं बनो राने नई ता राम जाने आगे का-का होने। लेखक जनप्रचार संदेश के संपादक हैं और यह व्यंग्य उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।


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