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बुंदेली व्यंग्य:नंगन से भगवान डरात तो जा तो सरकार है

वीथिका            Apr 29, 2016


shirish-pandeyश्रीश पांडे। बड़े सौकाउं पनवाड़ी मित्र प्यारे से कैन लगे कि सिंहस्थ मेला चलने का? हम-तुम सोई नहा-धो के दान-पुण्य कर आइये। काय से ई मेला में देश विदेश से पुण्य परताप लूटबे लोग-बाग मय लुगाई लरका-बच्चा के आ जा रए... और फिन जो मेला तो अपने पिरदेश में लगो। प्यारे ने कई सई कै रै तुम पनवाड़ी। लेकिन नहाबो का नहाबे से पुण्य परताप मिल जैहें का। काय से अगर नहाबे से मिलत होते तो पूरे उत्तर भारत में गंगा, जमना पवित्र नदियां बहतीं सो ऊमें डुबकी मार-मार कें, उते लोगन ने सबरे पुण्य लूट लये होते और तो और उते पापी पैदा लो नईं होते। सो नहाबे से पुण्य परताप किए मिलत, किए नईं, जो कैबो तो मुश्किल है। पे इत्तो सो पक्को है कि एक तो अपने बुंदेलखंड में पानी की बूंद नईंया, कब से सबरन जी भर के नई नहाओ...सो उते सबरो परिवार क्षिप्रा नदी में लोर-लोर के ऐन नहा सकत। मुख्यमंत्री अपने विज्ञापनन में हाथ जोड़-जोड़ के सिंहस्थ आबे की जोहार कर रए। लेकिन इत्ती भीड़ और गर्मी में मय परिवार के जाबो नहाबे से मांगो पड़ जाने पनवाड़ी। उते नहाबे के झगड़ा सोई हो रये। नहाबे के बारे में एक कोदाईं नागा साधुअन को नंगो जलवा है, तो कऊं अफसरन को विशेष शाही स्नान। अफसरन से याद आओ कि पैलां शाही स्नान में अफसरन ने साधुअन से पैलां नहा लओ, ऐई से नागा साधुअन को मुंडा सनक गओ। सरकार पे व्यवस्था बिगारबे को आरोप वे लगान लगे सो अलग। नंगन से भगवान डरात तो जा तो सरकार है। ऐई से सरकार ने कई ऐसो न भओ है और न वे आगे होन देहें। यनि पुण्य लूटबे को पैलो हक नागा साधुअन को बनो राने। देखो लो शाही सबारी निकर रईं साधु संतन की। जे वैराग्य को तानाबाना ओढ़ के संसार में रम रये। उनकी जा चाहत अबईं लो बनी है कि उनको खुलेआम स्नान जनता देखो, ताली पीटे। माया बड़ी विचित्र है सब वस्तुएं त्याग दईं उन्ना लो त्याग दये, लेकिन मन में तो दिखाबे को संसार बसो है। देश में शंकराचार्य का से का बोल देत तुम देखई रये। इत्तो सो सई भओ कि अब महिलाएं एक्शन में हैं। वे पुरुषन की सबरी परंम्पराएं निपटाए दे रईं। पैलां शनि मंदिर में घुस के उनकी पूजा करी, फिर केरल की एक मस्जिद में प्रवेश करके हजार बरस पुरानी परम्परा तोड़ दई। पनवाड़ी ने कोंटें में लम्म्म्म्म्म्बी सी पीक मारी अंगौछे से मौं पौंछो और नओ पान गलुआ में दबाओ फिर प्यारे से कई सई कै रये प्यारे परम्परा तोड़वे में अपनो देश जिते देखो उते आगे दिखत। अब देखो सिंहस्थ में किन्नरन की शाही सवारी निकरी। जब से सरकार ने उने थर्ड जेंडर को खिताब दे दओ तब से वे फॉर्म में दिख रये। नौकरी में आरक्षण की बात चर रही सो अलग। अपने सांसद का नाईं कर सकत। संसद चल नई सकत। काय से जिए विपक्ष में राने ऊको लोकतंत्र में इत्तई काम बचो कि संसद नईं चलबे देने चाये कछु हो जाए। ऐई में उनको सांसदत्वपूर्ण हो जात। प्यारे ने कई काए खां मूड खपा रये तुम नेतन के पछारें। तुम तो प्लान बनाओ सो कड़ चलिए उज्जैन बागबे। लरकन-बच्चन की छुट्टी सो हो गई और हम औरें उते मनयाई नहा लैबी संगै लुगाईन खां पुण्य लूटबे की खुशी दैबे को मौका है सो अलग...।


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